मेरे इस ब्लॉग का उद्देश्य =

मेरे इस ब्लॉग का प्रमुख उद्देश्य सकारात्मकता को बढ़ावा देना हैं। मैं चाहे जिस मर्ज़ी मुद्दे पर लिखू, उसमे कही ना कही-कोई ना कोई सकारात्मक पहलु अवश्य होता हैं। चाहे वह स्थानीय मुद्दा हो या राष्ट्रीय मुद्दा, सरकारी मुद्दा हो या निजी मुद्दा, सामाजिक मुद्दा हो या व्यक्तिगत मुद्दा। चाहे जो भी-जैसा भी मुद्दा हो, हर बात में सकारात्मकता का पुट जरूर होता हैं। मेरे इस ब्लॉग में आपको कही भी नकारात्मक बात-भाव खोजने पर भी नहीं मिलेगा। चाहे वह शोषण हो या अत्याचार, भ्रष्टाचार-रिश्वतखोरी हो या अन्याय, कोई भी समस्या-परेशानी हो। मेरे इस ब्लॉग में हर बात-चीज़ का विश्लेषण-हल पूर्णरूपेण सकारात्मकता के साथ निकाला गया हैं। निष्पक्षता, सच्चाई, और ईमानदारी, मेरे इस ब्लॉग की खासियत हैं। बिना डर के, निसंकोच भाव से, खरी बात कही (लिखी) मिलेगी आपको मेरे इस ब्लॉग में। कोई भी-एक भी ऐसा मुद्दा नहीं हैं, जो मैंने ना उठाये हो। मैंने हरेक मुद्दे को, हर तरह के, हर किस्म के मुद्दों को उठाने का हर संभव प्रयास किया हैं। सकारात्मक ढंग से अभी तक हर तरह के मुद्दे मैंने उठाये हैं। जो भी हो-जैसा भी हो-जितना भी हो, सिर्फ सकारात्मक ढंग से ही अपनी बात कहना मेरे इस ब्लॉग की विशेषता हैं।
किसी को सुनाने या भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए मैंने यह ब्लॉग लेखन-शुरू नहीं किया हैं। मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से पीडितो की-शोषितों की-दीन दुखियों की आवाज़ पूर्ण-रूपेण सकारात्मकता के साथ प्रभावी ढंग से उठाना (बुलंद करना) चाहता हूँ। जिनकी कोई नहीं सुनता, जिन्हें कोई नहीं समझता, जो समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं हैं, जो अकेलेपन-एकाकीपन से झूझते हैं, रोते-कल्पते हुए आंसू बहाते हैं, उन्हें मैं इस ब्लॉग के माध्यम से सकारात्मक मंच मुहैया कराना चाहता हूँ। मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से उनकी बातों को, उनकी समस्याओं को, उनकी भावनाओं को, उनके ज़ज्बातों को, उनकी तकलीफों को सकारात्मक ढंग से, दुनिया के सामने पेश करना चाहता हूँ।
मेरे इस ब्लॉग का एकमात्र उद्देश्य, एक मात्र लक्ष्य, और एक मात्र आधार सिर्फ और सिर्फ सकारात्मकता ही हैं। हर चीज़-बात-मुद्दे में सकारात्मकता ही हैं, नकारात्मकता का तो कही नामोनिशान भी नहीं हैं। इसीलिए मेरे इस ब्लॉग की पंचलाइन (टैगलाइन) ही हैं = "एक सशक्त-कदम सकारात्मकता की ओर..............." क्यूँ हैं ना??, अगर नहीं पता तो कृपया ज़रा नीचे ब्लॉग पढ़िए, ज्वाइन कीजिये, और कमेन्ट जरूर कीजिये, ताकि मुझे मेरी मेहनत-काम की रिपोर्ट मिल सके। मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आप सभी पाठको को बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद, कृपया अपने दोस्तों व अन्यो को भी इस सकारात्मकता से भरे ब्लॉग के बारे में अवश्य बताये। पुन: धन्यवाद।

Sunday, December 27, 2009

हरियाली के लिए कुछ कीजिये।

दुनिया में जितनी तेजी से पर्यावरनिये प्रदुषण बढ़ रहा हैं, लोग भी पर्यावरण के प्रति भी उतनी ही तेज़ी से जागरूक होते जा रहे हैं। हर कोई अपने तरीके से, अपने स्तर पर धरती को हरा-भरा बनाने में लगा हुआ हैं। कोई ग्रीन बिल्डिंग्स को तरजीह दे रहा हैं, तो कोई ग्रीन गजेट्स-ग्रीन व्हीकल्स का इस्तेमाल कर रहा हैं। यही नहीं लोग तो ग्रीन बिजनेस और ग्रीन जोब्स में अपना भविष्य तलाश रहे हैं। पर्यावरण के प्रति लोगो की बढती दिलचस्पी को देखते हुए लगता हैं कि-2010 में दुनिया होगी "ग्रीन वर्ल्ड"।

भारत समेत कुछ देश "ग्रीन (हरित) वर्ल्ड" की दिशा में कुछ कदम बढे भी हैं। जैसे कि=
हरित बिल्डिंग्स से सुधरेगा पर्यावरण,
हरित व्हीकल्स बनेंगे पर्यावरण के दोस्त,
हरित सिटीज़ से आएगी खुशहाली,
हरित जोब्स से संवरेगी युवाओं की किस्मत,
हरित गजेट्स से यूथ क्रान्ति,
हरित कोयला देगा उधोगो को नयी दिशा,
हरित तकनीक से बचेगी ऊर्जा,
हरित यूनीवरसीटीज़ में बनेगा करीयर,
हरित कपड़ो से होगी पर्यावरण सुरक्षा,
हरित खाद से बदलेगी खेती-किसानो का भविष्य,
आदि-आदि।

ग्रीन वेबसाइट्स = दुनिया में ऐसे संगठनो की कमी नहीं हैं, जो ग्रीन वेबसाइट्स, ग्रीन ब्लोग्स, और ग्रीन ईमेल्स के जरिये पर्यावरण संरक्षण का सन्देश औरो तक पहुंचा रहे हैं। इन वेबसाइट्स में पर्यावरण को बचाने से लेकर पर्यावरण सम्बन्धी कार्यक्रमों से युज़र्स को अपडेट रखा जाता हैं।
ग्रीन जोब्स = यानी वेस्ट रीसाईंकलिंग, वाटर सिक्यूरिटी, एग्रीकल्चर के अलावा हर उस काम से हैं, जिससे पर्यावरण को कम से कम नुक्सान पहुंचता हैं।
ग्रीन तकनीक = इनके जरिये ऐसे उपाय ढूंढे जा रहे हैं, जो ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा बचाए और कार्बन-डाई-ओक्साइड का उत्सर्जन कम से कम करे। आईबीऍम और माईक्रोंसोफ्ट जैसी दिग्गज कंपनियों ने तो इस दिशा काफी आगे कदम बढाते हुये, कई एनेर्ज़ी सेवर प्रोडकट्स बाज़ार में लांच भी कर दिए हैं, जिनकी काफी मांग भी हैं। इको फ्रेन्डली मीडिया प्लेयर, इको फ्रेन्डली आईपॉड, इको फ्रेन्डली कमप्यूटर, इको फ्रेन्डली मोबाइल, और इको फ्रेन्डली प्रिंटर। इतना ही नहीं, इ बाइक्स, सौर बाइक्स, गैस बाइक्स, और तो और बैट्री बाइक्स, आदि इसी के उदाहरण हैं।

केवल आम लोग ही नहीं बल्कि बहुत ही ख़ास और बड़े माने जाने वाले सेलिब्रितीज भी इस हरित दुनिया (ग्रीन वर्ल्ड) नामक अभियान से जुडे हुए हैं। आप अपनी इच्छा-मर्जी से ना सही, पर अपने आदर्श लोगो को देख कर तो आपको इस अभियान में पूरी सक्रियता से शामिल हो ही जाना चाहिए। ज़रा एक नज़र अपने प्रिय अभिनेता-अभिनेत्री, रोल-माडल, सेलिब्रितीज पर ड़ाल लीजिये, ताकि आप उनसे कुछ प्रेरित हो सके =
देशियों में = नेहा धूपिया, राहुल बोस, गुलज़ार, अभय दयोल, फरहान अख्तर, प्रीति जिंटा, सलमान खान, विद्या बालन, आमिर खान, जोन अब्राहम, अभिनव बिंद्रा, शोभा डे, रानी मुखर्जी, मल्लिका साराभाई, नसीरुद्दीन शाह, लिएंडर पेस, अरुंधती राय, जावेद अख्तर, बाईचुंग भूटिया, जूही चावला, आदि-आदि।
विदेशियों में = ब्रेड पिट, एंजेलीना जोली, जैकी चैन, जूलिया रोबर्ट्स, पामेला एंडरसन, और जेसिका पार्कर, आदि-आदि।
धन्यवाद।

FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Wednesday, December 23, 2009


काश ये फैसला सारे देशभर में लागू हो।


गुजरात सरकार ने सभी स्थानीय (पंचायती राज, नगर पालिका, नगर परिषद्, और नगर निगम) चुनावों में मतदान करना अनिवार्य बनाने का फैसला किया हैं। यह वो फैसला हैं, जोकि काफी पहले ही लागू हो जाना चाहिए था। गुजरात सरकार का यह फैसला लोकतंत्र के लिए, असली और सच्चे लोकतंत्र की राह में मील का पत्थर साबित होगा। ऐसा मुझे विश्वास हैं।


कुछ लोगो की आदत-फितरत ही ऐसी होती हैं कि-"खुद तो किसी को वोट देते नहीं और जब काम नहीं होता या कोई समस्या आती हैं तो जनप्रतिनिधियों को उल्टा-सीधा बकने लग जाते हैं।" पहले ऐसे सिरफिरे, अंटशंट बकने वालो को वोट देना चाहिए, उसके बाद अपने जन प्रतिनिधियों से अपने वोट का हिसाब मांगते हुए, कोसना चाहिए। जब वे लोग आपसे वोट मांगने आये थे, तब तो आपने उन्हें वोट दिया नहीं। अब जब आप विकास-कार्य के लिए जायेंगे तो वे क्यों आपका साथ दे?????? क्या हक़ हैं आपका उन जनप्रतिनिधियों पर, जिन्हें आपने कुछ दिया ही नहीं???


बहुत से लोग मत/वोट देने की अनिवार्यता का विरोध कर रहे हैं। विरोधियों के तर्क कुछ इस तरह हैं =


वोट देने का टाइम नहीं हैं??


क्या मिलेगा वोट देकर?


काम तो होते नहीं हैं, क्या फायदा?


मैं दुसरे शहर में रहता हूँ। वोट देने आता तो एक या कई दिन खराब हो जाते।

ऑफिस/दूकान/बैंक/स्कूल आदि के लिए देर हो रही थी।


मेरे एक वोट से क्या बन या बिगड़ जाएगा??

आदि-आदि कई तरह की नकारात्मक और बेसिर-पैर की बातें करते हैं।


इन लोगो को ज़रा यह सोचना चाहिए कि-"जब यह लोग अपने प्रतिनिधियों को वोट ही नहीं देते हैं, तो इन्हें (लोगो को) उन्हें (जनप्रतिनिधियों को) कोसने का हक़ कैसे मिल गया??, उन्होंने आपसे वोट माँगा और आपने नहीं दिया। अब आप उनसे विकास-तरक्की मांग रहे हैं, तो वो क्यों दे?? कुछ पाने के लिए कुछ खोना ना सही, पर कुछ देना तो पड़ता ही हैं। जब आप किसी को कुछ देंगे ही नहीं, तो आपको मिलेगा कैसे?" ज़रा यह सोचिये-"जब आप वोट नहीं डालते हैं, तो कैसे बेकार-निकम्मा-अपराधी किस्म का उम्मीदवार आपकी जगह किसी और का बोगस वोट पोल करवा डालता हैं। आपके वोट ना डालने से कितना बड़ा नुक्सान हो जाता हैं, इसका अंदाजा आप सहज रूप से लगा सकते हैं। अगर आप अच्छे-काबिल-और होनहार उम्मीदवार को जीताते हैं तो आपको विकास के साथ-साथ उसे कोसने-सुनाने-बुरा भला कहने का हक़ भी स्वत्य: मिल जाता हैं।"

वैसे भी यह कौनसा हिसाब-न्याय-और मज़बूत लोकतंत्र हैं, जहां 60-70% लोगो की भागीदारी से ही चुनाव संपन्न हो जाना मान लिया जाता हैं???? बाकी के 30-40% मतदाताओं के मन की थाह भी ली जानी चाहिए। सच्चा-मज़बूत-और असली लोकतंत्र तभी आयेगा जब 90-95% मतदान होगा। बाकी के 5-10% वोट (जो नहीं डाले जा सके) भी सिर्फ उन्ही के हो जो या तो गंभीर रूप से बीमार-विकलांग हो या फिर वही हो जो बाहर (अस्थाई रूप से) रहता हो। लम्बे समय से बाहर रहने वालो के वोट ट्रांसफ़र कर दिए जाने चाहिए, ताकि पुरानी जगह का वोट बेकार ना जाए और नयी जगह वोट पोल हो सके। इससे दोनों ही स्थानों पर मत-प्रतिशत में उल्लेखनीय बदलाव (उछाल-बढ़ोतरी) देखने को मिलेगी।

काश ये फैसला सारे देशभर में लागू हो।

धन्यवाद।

FROM =

CHANDER KUMAR SONI,

L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,

SRI GANGANAGAR-335001,

RAJASTHAN, INDIA.

CHANDERKSONI@YAHOO.COM

00-91-9414380969

CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Tuesday, December 15, 2009

देशद्रोही-देशविरोधी सांसद और लोकतंत्र।

जी हाँ, आपने बिल्कुल सही पढ़ा हैं। देशद्रोही-देशविरोधी सांसद, यही कह रहा हूँ मैं। अपने देश की सबसे बड़ी पंचायत (संसद) के कथित रूप से सम्मानित सदस्यों (सांसदों) को मैं देशद्रोही-देशविरोधी ना कहू तो क्या कहू?? इन्होने जो भूल की हैं वो कदापि क्षमा-योग्य नही हैं। अगर यह संसद-सदस्य ज़रा भी जागरूक-देशभक्त-और जनता के सच्चे प्रतिनिधि होते तो यह गलती बिल्कुल भी नही होती।

.

13.दिसम्बर.2001 को देश की सबसे बड़ी पंचायत, देश की आन-बान-शान, संसद भवन पर पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हमला कर दिया था। पाकिस्तान के आतंकियों ने सुनियोजित ढंग से संसद भवन पर हमला बोल दिया था। आतंकी पुरी तरह से प्रशिक्षित, ट्रेंड थे। आतंककारियों के पास भारी मात्रा में गोला-बारूद, संसद भवन का चप्पे-चप्पे का नक्सा, और संसद भवन में बेरोकटोक आवागमन के लिए विआईपी पास-गेट पास भी था। उनके पास संसद के चप्पे-चप्पे, कोने-कोने का नक्सा था, तभी तो घुसते ही अलग-अलग दरवाजो पर धावा बोल दिया था।

.

जिस तरीके से उन्होंने हमला किया, जिस प्लानिंग-होशियारी के साथ उन्होंने नापाक इरादे जताए, उससे साफ़ हैं कि-"उनका मकसद सिर्फ हमला करके भाग जाना ही नहीं था। बल्कि संसद के अन्दर घुस कर सभी संसद-सदस्यों (सांसदों), प्रधान मंत्री, और अन्य महत्तवपूर्ण मंत्रियो को मारने का था।" गौरतलब हैं कि-"संसद के अन्दर सुरक्षा कर्मी तो होते हैं, लेकिन बिना हथियारों के। उनके पास लाठी-डंडो के अलावा कोई हथियार नहीं होता हैं।"

.

यह तो शुक्र हैं कि-"सुरक्षा बलों ने तत्काल मोर्चा संभालते हुए उन आतंककारियों को मुंहतोड़ जवाब दिया। वरना वे संसद भवन के अन्दर प्रवेश कर जाते, और..................उसके बाद देश के पास कुछ भी नहीं बचता, सब कुछ तबाह-खत्म हो जाता।" यह अब तक का सबसे भीषण आतंकी हमला था। इस संघर्ष में काफी सारे लोग शहीद हो गए थे। यह वही शहीद हैं, जिनकी बदौलत आज भी संसद की आन-बान-शान बरकरार हैं।

.

लेकिन दुर्भाग्य देखिये आज 13.दिसम्बर.2009 को उन शहीदों को किसी ने याद करना भी उचित नहीं समझा। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह, विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवानी और कुछेक सांसदों (मात्र ग्यारह सांसद) ने ही उन्हें याद किया। बाकी अन्य मंत्रियो और सांसदों ने उन शहीदों के आगे दो मिनट भी शीश नहीं नवाया। क्या सन्देश दे रहे हैं देश के वर्तमान-भावी कर्णधार????, क्या साबित करना चाहते हैं देश के कोने-कोने से आये प्रतिनिधि (सांसद)???, शहीदों के लिए क्या और कितना एहसान-सम्मान हैं आप सबके दिल में??, यह आज दिखलाई दे गया हैं।

.

देश के शहीदों के प्रति, देश की इज्ज़त बचाने वालो के प्रति, आप सभी सांसदों का रवैया साबित कर रहा हैं कि-"आप सबमे देश के सांसद, देश के संसद-सदस्य, और जनप्रतिनिधि कहलाने की योग्यता नहीं हैं। आप सब देशविरोधी-देशद्रोही हैं।" जिनके दिल में शहीदों के प्रति सम्मान ना हो उन्हें देशभक्त कैसे कहा जा सकता हैं??, वे सच्चे भारतीय कैसे कहलाये जा सकते हैं??

.

यही लोकतंत्र की कमजोरी और दुर्भाग्य भी हैं। कुछ सवाल जिनके सही-सही जवाब मुझे समझ में नही आ रहा हैं जैसे कि-"आम जनता ऐसे लोगो को क्यूँ अपना जनप्रतिनिधि बना कर जिताती हैं?, क्यूँ जनता ऐसे देशद्रोहियों को संसद जैसी पावन जगह पर भेजती हैं?, क्यूँ लोकतंत्र होने के बावजूद लोगो से गलतियां हो जाती हैं??, राजशाही-राजतंत्र जाने के बाद तो स्थितियां बदल जानी चाहिए थी, अब तक क्यूँ नही बदली??, और सबसे बड़ा सवाल-"कब तक जनता भूल करती रहेगी और देश के ऐसे नकारा-निकम्मे रखवाले-प्रतिनिधि संसद सदस्य बनते रहेंगे?????"

.

इसलिए मेरी आप सभी भारतवासियों से यही अपील हैं कि-"अब तक जो होता आया हैं या अब तक जो हो गया हैं, उसे भूल जाईये। और अब एक नयी-अभिनव शुरुवात कीजिये, अगले (चाहे जब भी हो) चुनावों में उन्ही लोगो को अपना नुमाइंदा-प्रतिनिधि बना कर संसद भेजना हैं, जो देश भक्त हो, जो सच्चा भारतीय हो, जिसके दिल में शहीदों के प्रति मान-सम्मान का भाव हो।"

.

और सबसे अहम् और महत्तवपूर्ण बात--"आप चाहे जिसे भी चुने-भेजे, उसका (आपका अपना नुमाइंदा-प्रतिनिधि) का दिल से भारतीय होना जरुरी हैं, नाकि चेहर-मोहरे, हाव-भाव, रूप-रंग-भाषा या नागरिकता से।"

.

धन्यवाद।

.

FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Saturday, December 05, 2009

क्या गलत कहा बिगबी (अमिताभ बच्चन) जी ने????

अभी ताज़ा-ताज़ा ही अमिताभ जी ने अपने ब्लॉग (www.bigb.bigadda.com) पर एक बेहद झकझोर देने वाली टिप्पणी की हैं। एक ऐसी टिप्पणी जो सीधे-सीधे आमजन से जुड़ी हुई हैं। अमिताभ जी ने अपने ब्लॉग पर जो टिप्पणी की हैं, वह आम लोगो की भावनाओं का परिचायक हैं।

गत 26.नवम्बर.2009 को मुंबई पर हुए आतंककारी हमले को हुए एक साल हो गया हैं। काफ़ी सारे आतंकवादियों में सारे मारे जा चुके हैं। उनमे से सिर्फ़ एक आतंकी (कसाब) ही जीवित पकड़ा जा सका हैं। मुंबई, महाराष्ट्र, और सारे देश को कसाब की फांसी का इंतज़ार हैं, ना जाने कब यह इंतज़ार खत्म होगा??????? सरकार कसाब को फांसी तो दे नही रही, उल्टे कसाब की खातिरदारी की जा रही हैं।

कभी कसाब की जेल कसाब के कहने पर बदल दी जाती हैं, तो कभी कसाब को उसका मनपसंद खाना दिया जाता हैं। कभी उसके लिए कुछ किया जाता हैं, तो कभी कुछ। कसाब की खूब खातिरदारी सरकार द्वारा की जा रही हैं यानी सब कुछ कसाब के मनमाफिक ही हो रहा हैं। किसी को यह समझ में नही आ रहा हैं कि-"सभी लोगो की, सभी देशवासियों की भावनाओं की कद्र ना करते हुए क्यों सरकार कसाब को अभी तक ज़िंदा रखे हुए हैं???"

सभी आम जन की, सभी मुंबई वासियों की, सभी देश वासियों की भावनाओं को समझते हुए बिगबी जी ने अपने ब्लॉग (www.bigb.bigadda.com) पर बेहद सटीक टिप्पणी की है। ना जाने कितने लोग बेमौत मारे गए, कितने सैनिक शहीद हो गए, कितने बच्चे यतीम हो गए, और कितनी औरते विधवा हो गयी.............कोई आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं हैं। ज़रा उनकी टिप्पणी पर एक निगाह डाली जाए--"आज देश में कोई सुरक्षित, सबसे ज्यादा सुरक्षित , प्रधानमन्त्री से भी ज्यादा, कोई हैं। तो वो हैं.............कसाब।"

बिगबी (अमिताभ) जी ने कोई गलत टिप्पणी नही की हैं। उनकी टिप्पणी सारे भारतीयों की दिली भावनाओं की परिचायक हैं। उन्होंने अपने ब्लॉग के माध्यम से देश की आवाज़ उठायी हैं। अब देखना यह हैं कि-"आम जनों की, आम नागरिको की, और समस्त देशवासियों की भावनाओं को दरकिनार कर देने वाली सरकार क्या अब बिगबी जी की भावनाओं को भी दरकिनार कर सकती हैं???????"

मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि-"सरकार को जनाक्रोश भड़कने से पहले ही अक्ल आ जाए और वह जल्द से जल्द कसाब को फांसी कि सज़ा दे दे।" और यह भी कि-"अगर सरकार खुद कसाब को फांसी देने का साहस ना कर पाए तो, तू (भगवान्) कुछ ऐसा कर कि कसाब किसी भी तरह आम जनता के बीच आ जाए और जनता खुद ही अपना न्याय कर दे।"

धन्यवाद।

FROM =

CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,

SRI GANGANAGAR-335001,

RAJASTHAN, INDIA.

CHANDERKSONI@YAHOO.COM

00-91-9414380969

CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Saturday, November 14, 2009

....ऐसे बाल-दिवस का क्या औचित्य????

आज (14.नवम्बर.09) सारा देश नेहरू (देश के पहले प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू जी) का जन्मदिन बालदिवस के रूप में मना रहा हैं। लेकिन, मुझे इस बात का दुःख हैं कि-"आज का दिन लोग बाल-दिवस के रूप में मात्र इसलिए मना रहे हैं, कि-"नेहरू जी को बच्चो से बेहद प्यार था।"

आज के दिन को लोग (राजनितिक और कांग्रेसी विशेष तौर पर) नेहरू जी के जन्मदिन को बाल-दिवस के रूप में मना रहे हैं, लेकिन क्या किसी ने नेहरू जी के प्रिय बच्चो की तरफ़ देखा हैं???? लोगो को 14.नवम्बर.09 के दिन तो नेहरू जी याद हैं, लेकिन आश्चर्य हैं कि-"उन्हें नेहरू जी के प्रिय बच्चे याद नही हैं......"

देश भर में, सरकारे (राज्यों और केन्द्र दोनों की) बाल अधिकारों, बचपन को बचाने, आदि को लेकर जागरूक होने का दावा करती हैं, और इसके लिए काफ़ी सारे क़ानून-अधिनियम भी बनाए गए हैं। परन्तु यह एक बड़े दुःख की, दुर्भाग्य की बात हैं कि-"जितनी ज्यादा धज्जियाँ बाल अधिकारों और बचपन को बचाने से जुड़े सभी तरह के कानूनों-अधिनियमों की उड़ती हैं, उतनी धज्जियाँ शायद ही किसी और क़ानून की उड़ती होगी।"

अपवाद-स्वरुप (कुछेक जगहों को छोड़कर) कोई भी घर ऐसा नहीं हैं, जहां छोटे-छोटे बच्चे साफ़-सफाई ना करते हो। कोई भी दफ्तर, कार्यालय, ढाबा-रेस्तरां, आदि ऐसा नहीं मिलेगा जहां बाल-मजदूर छोटे-मोटे काम ना करते हो। सब कुछ सरेआम-सबके सामने, आँखों-देखी हो रहा हैं, लेकिन कोई रोकने या आवाज़ उठाने की जेहमत ही नहीं उठाना चाहता। वे इस बारे में किसी को कुछ कह नहीं सकते, हम इस बारे में किसी को कुछ कहना नहीं चाहते, ऐसे में उन्हें न्याय-इन्साफ मिलना तो मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हैं।

हर साल 14.नवम्बर को हम सब जवाहर लाल नेहरु जी को याद करते हैं। हर साल हम सब मिलकर नेहरु जी का जन्मदिन बाल-दिवस (चिल्ड्रेन्स डे) के रूप में मनाते हैं। जगह-जगह काफी भाषण बाजी होती हैं, जगह-जगह इस मुद्दे पर बहुत कुछ लिखा जाता हैं। लेकिन क्या यह सब करना सार्थक हैं?????????? क्या इससे उन असंख्य बाल-मजदूरों को न्याय मिल सकता हैं?, जिनकी सारी ज़िन्दगी इन्साफ के बिना ऐसे ही गुज़र जायेगी।

बेहतर होगा कि-
हम सब मिलकर बाल-अधिकारों की रक्षा करे।
हम सब मिलकर बचपन को नष्ट होने से बचाए।
हम सब मिलकर हर साल नेहरु जी के साथ-साथ बच्चो के बारे में भी सोचे।
नेहरु जी के सब आदर्शो में से, सबसे बड़े आदर्श (बच्चो से स्नेह) को अपना आदर्श माने।
नेहरु जी की तरह, हम भी बच्चो से प्यार करे और उनमे देश का भविष्य देखे।

वैसे भी, बच्चो के बिना नेहरू जी को याद करना अधूरा ही हैं। नेहरू जी, को पूर्ण रूप से तभी याद किया जा सकता हैं, जब उन्हें बच्चो के साथ याद किया जाए। बच्चो के प्रति उनके अपार प्रेम के कारण ही हम सब उन्हें चाचा नेहरू के नाम से भी जानते हैं। इसलिए कह रहा हूँ कि-"आप नेहरू जी के साथ-साथ बच्चो की भी सोच लीजिये, हो सकता हैं, आप भी किसी बच्चे के लिए सच में ही चाचा-नेहरु साबित हो......."

धन्यवाद।

FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Sunday, November 08, 2009

ऑनर किलिंग का क्रूर से क्रूरतम सच।

संस्कृति, परिवार, धर्म, समाज के नाम पर तथाकथित ग़लत काम करने पर दोषी की ह्त्या को ऑनर किलिंग कह कर सदियों से महिमामंडित किया जा रहा हैं। पिता अपनी बेटी को, भाई अपनी बहन को, और पंचायते अपने ही समाज के लोगो को मार कर अपने को धन्य समझते हैं।

इस क्रूर से क्रूरतम व्यवहार के लिए अगर कोई दोषी हैं तो वे धर्म के ठेकेदार हैं, पर पंडे, पुजारी, मौलवी, पादरी, आदि सब बच निकलते हैं। जिन नियमो को समाज का नियम माना जाता हैं, असल में इन्हे धर्म के नाम पर ही सौपा जाता हैं। और धर्म के ठेकेदार-दूकानदार ही थोपने वालो में अग्रणी होते हैं। वे नही चाहते कि-"कोई नई पहल करे या कोई बंधी-बंधाई लीक से हट कर चले।"

सरकारे और पुलिस-प्रशासन इस क्रूर-घिनौने खेल को देखती रहती हैं, क्योंकि उसकी कोई शिकायत नही करता और ना ही कोई गवाही देता हैं। हैरत की बात तो यह हैं कि-"पुलिस महकमे में ऊपर से लेकर नीचे तक, कांस्टेबल से लेकर एस.पी. तक ऑनर किलिंग को जायज़ मानते हैं।"

विज्ञान, आधुनिक शिक्षा, और तकनीक ने बहुत से सकारात्मक परिवर्तन अपनेआप ला दिए हैं। पंडो, मौलवियों, और पादरियों का रूतबा कम हो गया हैं, उनकी पूछ-परख कम हो गई हैं। धर्म अपना अंधविश्वास बेच रहा हैं, पर उसे तर्क का सामना करना पड़ रहा हैं। क़ानून अब ईश्वर या खुदा की देन या समाज की परम्पराए नही हैं, आम आदमी के अपने बहुमत से बनाए गए हैं। इसीलिए लोकतंत्र ने धर्म की अंधेरगर्दी, गुंडाराज, और हठधर्मिता पर सबसे गहरी चोट पहुंचाई हैं।

ऑनर किलिंग इज्ज़त के नाम पर की जाती हैं। क्या इज्ज़त को लेकर सज़ा सिर्फ़ लड़कियों, युवतियों, औरतो, महिलाओं, आदि स्त्री जाति को ही दी जानी चाहिए???? इज्ज़त मिटाने, ख़राब करने, या लूटाने को लेकर पुरूष को सज़ा क्यों नही दी जाती??? क्या इज्ज़त को बचाने या बरकरार रखने की जिम्मेदारी सिर्फ़ स्त्री की ही हैं??? क्या पुरूष की कोई ड्यूटी-कर्तव्य नही हैं??

ऑनर किलिंग अब बुरी लगती हैं, अखरती हैं, पर अफ़सोस यह हैं कि-"शिकायत उनसे होती हैं, जो ख़ुद धर्म के दुकानदारों के शिकार हैं, जो उनकी कठपुतलियाँ हैं।" अगर इस तरह के अन्याय-अधर्म से बचना हैं तो धर्म की कट्टरता फैलाने वालो के ख़िलाफ़ क़ानून बनने चाहिए। सती-डायन, भागी बेटी-बहु-बीवी-बहन-माँ, आदि के रूप में स्थापित महिलाओं पर ऑनर किलिंग जैसा अत्याचार बंद होना चाहिए। सज़ा इन महिलायों को ऑनर किलिंग के नाम पर मारने वालो को नही, बल्कि इसके लिए उकसाने वालो मिलनी चाहिए। सज़ा नही कड़ी-से-कड़ी सज़ा।



धन्यवाद।

FROM =

CHANDER KUMAR SONI,

L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,

SRI GANGANAGAR-335001,

RAJASTHAN, INDIA.

CHANDERKSONI@YAHOO.COM

00-91-9414380969

CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Saturday, October 31, 2009

कहाँ हैं क़ानून नाम की चिड़िया???????

अभी कल देर रात शहर में हुई एक वारदात से सनसनी फ़ैल गई। शहर के प्रमुख बुद्धि-जीवियों में से एक, शहर के सबसे बड़े अखबार के कार्यकारी सम्पादक, और मेरे ब्लॉग-गुरु श्री कीर्ति राणा जी पर 3-4 लोगो ने अकारण हमला कर दिया। श्री राणा जी किसी विवाह-समारोह से लौट रहे थे, की रास्ते में यह घटना हो गई। जब शहर का विशिष्ट आदमी ही सुरक्षित नही हैं, तो आम जनता का तो पूछो ही मत। कहाँ हैं क़ानून नाम कि चिडिया????

इस घटना की जिसे ख़बर मिली वह हक्का-बक्का रह गया। यह हमला किसी आम या राह-चलते व्यक्ति पर नही हुआ था, यह हमला शहर की जानी-मानी हस्ति पर हुआ था। मुझे भी इस घटना की सूचना अगले दिन (आज) अखबारों से मिली। जैसे ही मैंने अपने ब्लॉग-गुरु पर हमले की ख़बर पढ़ी, मैं भी सकते में आ गया। मैंने तुंरत उन्हें (राणा जी को) फ़ोन किया। किसी कारण से फ़ोन अटेंड ना हो पाने पर मैंने एस एम एस भेज कर अपना आक्रोश जताया।

प्रिय पाठको, मैं जानता हूँ कि-"आप क्या सोच रहे हैं??" आप यही सोच रहे हैं ना, कि-"मैंने इससे पहले शहर में बढ़ते अपराधो पर क्यों नही लिखा??" आपका यह सोचना बिल्कुल जायज़ हैं। मुझे नित्य-रोज़ शहर में बढ़ते सभी तरह के, हर तरह के अपराधो की जानकारी मिलती रहती थी। लेकिन मैंने इस सम्बन्ध में, कभी भी, कुछ भी नही लिखा। हाँ, एक बार 26.जुलाई.09 को जरूर लिखा था, जब शहर में एक बड़ी और सनसनीखेज चोरी हो गई थी।

किसी ने सत्य ही कहा हैं कि-"दूसरो के दुख-दर्द, तकलीफ-पीडा का अहसास तभी होता हैं, जब हम ख़ुद या हमारा कोई प्रिय व्यक्ति इस दौर से गुज़रता हैं।" मेरे साथ भी कुछ-कुछ ऐसा ही हुआ हैं। मैं सब कुछ जानते-बूझते हुए भी अनजान बना रहा, लेकिन जब मेरे अपने निकटतम व्यक्ति के साथ कोई बुरी घटना होने की ख़बर मिली, तो मेरी आँखें खुल गई।

मुझे अब पता चल गया हैं कि-"ना चाहते हुए भी, जाने-अनजाने में मैं कितना मतलबी-स्वार्थी हो गया था??" मैं हालांकि भावुक, संवेदनशील, और नरम दिल वाला जागरूक युवक हूँ। लेकिन पता नही कैसे अनजाने में स्वार्थी हो गया?, जिसके लिए मैं क्षमा चाहता हूँ।

मुझे अब सबक मिल गया हैं। अब मैं आप सब पाठकगणों से वादा करता हूँ कि-"मैं ज्यादा से ज्यादा जागरूक-संवेदनशील रहूंगा और स्वार्थ-मतलबीपन से ज्यादा से ज्यादा दूर रहूंगा।"

एक बार पुन: माफ़ी मांगते हुए..........

धन्यवाद।
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Thursday, October 22, 2009

चेतन्या.......

यह कोई साधारण नाम नही हैं। यह उस नन्ही परी का नाम हैं, जिसका आगमन हमारे घर में 05.अक्टूबर.2009 को रात करीब पौने ग्यारह बजे हुआ था। काफ़ी लंबे समय से (मेरी शादी के बाद से ही) इस खूबसूरत, अनमोल पल का सभी को बेहद बेसब्री से इंतज़ार था।

लड़का हो या लड़की, मुझे और मेरे घरवालो को इस बात से कोई सरोकार नही था। मैं और मेरे सभी घरवाले/परिजन लड़की हो या लड़का, दोनों को ही ईश्वर का अनुपम उपहार मानते हैं। यही कारण था कि-"मेरे घरवालो ने नन्ही परी का पूरा जोशो-खारोशो से स्वागत किया था। 15.अक्टूबर.2009 को नन्ही परी का नामकरण था। लड़की होने के बावजूद और कुछ लोगो की दकियानूसी बातों के बावजूद, नामकरण संस्कार हमने काफ़ी हर्षोउल्लास के साथ संपन्न किया।"

चेतन्या.....हमारे घर की लक्ष्मी हैं, जो ऐन दिवाली के मौके पर हमारे घर आई हैं। हम सब लोग बहुत खुश हैं, हम सबकी खुशी की कोई सीमा नही रही हैं। काफ़ी लंबे समय के इंतज़ार के बाद मैं पिता बना हूँ। यह मेरे लिए अति-सौभाग्य की बात हैं, जो मेरी पहली संतान लक्ष्मी के रूप में हुई हैं। यह वो हसीं पल हैं, जिसका इंतज़ार हम सभी को बेहद बेसब्री से था।

पुरे घर में खुशियों की बहार आ गई हैं। मैं बता नही सकता कि-"मैं कितना खुश हूँ, मुझे अपनी इस अपार खुशी को व्यक्त करने को शब्द ही नही मिल रहे हैं। सारे घर-परिवार में हर्ष-उल्लास का माहौल हैं।" सभी को खेलने के लिए एक छोटी-सी नन्ही परी (चेतन्या) मिल गई हैं। मैं एक नन्ही परी का पिता बन कर बहुत खुश हूँ।.........

FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Thursday, October 08, 2009

मेरे घर आई एक नन्ही परी।

जी हाँ, 05.अक्टूबर.2009 सोमवार को मेरे घर एक नन्ही परी का आगमन हुआ हैं। मेरी पत्नी ने सामान्य डिलिवरी से लक्ष्मी को जन्म दिया हैं। जच्चा-बच्चा बिल्कुल स्वस्थ हैं। काफ़ी लंबे समय के इंतज़ार के बाद मैं पिता बना हूँ। यह मेरे अति-सौभाग्य हैं जो मेरी पहली संतान लक्ष्मी के रूप में हुई हैं।

मुझे इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार था। ऐन दीपावली के मौके/शुभ अवसर पर मेरे घर में लक्ष्मी का आगमन हुआ हैं। मैं बता नही सकता कि-मैं कितना खुश हूँ, मुझे अपनी इस अपार खुशी को व्यक्त करने को शब्द ही नही मिल रहे हैं।

सारे घर-परिवार में हर्ष-उल्लास का माहौल हैं। यह वो हसीं पल हैं, जिसका इंतज़ार हम सभी को बेहद बेसब्री से था।

पुरे घर में खुशियों कि बहार आ गई हैं। सभी को खेलने के लिए एक छोटी सी गुडिया मिल गई हैं। मैं एक नन्ही परी का पिता बन कर बहुत खुश हूँ।.........

FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Thursday, September 17, 2009

{{{{{ माफ़ी-नामा }}}}}
दोस्तों मेरा ब्लॉग लिखने का बहुत मन होता हैं। दिल-दिमाग में बहुत कुछ हैं, जो मैं लिखकर आप सबसे शेयर करना चाहता हूँ। लेकिन मेरे पास थोड़ा-सा वक्त ऑनलाइन होने का तो हैं, लेकिन लिखने का नही हैं। मेरी शादी पिछले साल 07.दिसम्बर.2008 को हुई थी। और 07.सितंबर.2009 को मेरी शादी को पूरे 9 महीने हो गए हैं। कुछ ही (उँगलियों पर गिनने लायक) दिनों में मैं पापा बन जाऊँगा।

मैं जानता हूँ कि-"मेरा यह फैसला आपको पसंद नही आयेगा। लेकिन अभी फिलहाल मेरी मजबूरी हैं, बच्चा होने के बाद मैं और मेरे सारे घरवाले आगंतुको और मेहमानों का स्वागत-सत्कार करने में व्यस्त हो जायेंगे।"

इस अति-व्यस्तता में मुझे ब्लॉग लिखने या ऑनलाइन होने का बिल्कुल भी वक्त नही मिल पायेगा। वैसे भी एक पिता होने के नाते मुझे मेरी पहली संतान को वक्त तो देना ही चाहिए। कृपया अपना अपार सहयोग और स्नेह बनाए रखे। आप लोग मुझे/मेरे ब्लॉग को बेहद मिस करेंगे और मैं भी आपको उतनी ही शिद्दत से मिस करूँगा। लेकिन पापा रोज़-रोज़ तो बना नही जाता हैं, इसलिए..................

जहाँ तक मेरा अंदाजा हैं, मैं आगामी 3 माह तक ब्लॉग नही लिख पाउँगा। लेकिन मेरा पक्का, पुरा, और इमानदारी से प्रयास रहेगा कि-"मैं ब्लॉग लिखने में ज्यादा लंबा अन्तराल ना देते हुए, बीच-बीच में ब्लॉग लिख लिया करूँ।" बाकी आगे इसके लिए समय मिलेगा या नही, यह तो भविष्य के गर्भ में हैं।

हालांकि यह मेरा निजी, व्यक्तिगत ब्लॉग हैं। मैं लिखू या ना लिखू, छोटा लिखू या बड़ा, अच्छा लिखू या बुरा, ख़ुद का लिखू या दूसरो का, मौलिक लिखू या किसी अन्य का लिखा लिखू, सभी मुद्दों पर लिखू या किसी एक विशेष मुद्दे पर, रोजाना लिखू या हफ्ते में, कैसे लिखू, क्या लिखू, क्यों लिखू, कब लिखू, कितना लिखू, आदि तमाम बातों पर मेरा एकमात्र नियंत्रण हैं।

लेकिन मेरी ऐसी सोच, ऐसे विचार नही हैं। मैं इसे मेरा ब्लॉग नही, बल्कि आप लोगो का, आप पाठक-गणों का ब्लॉग मानता हूँ। मेरा ब्लॉग आप सबके स्नेह, प्यार, और आर्शीवाद से ही चला हैं, चल रहा हैं, और आगे भी चलता रहेगा। अगर आप मेरे ब्लॉग पर प्रकट किए गए, मेरे विचारों को नही पढेंगे, तो मेरा लिखना व्यर्थ और समय की बर्बादी हैं। आप हैं, तभी मेरा ब्लॉग हैं। अगर आप नही होते, तो यह ब्लॉग कभी अस्तित्त्व में ही ना आता।

विशेष =
मैं भले ही ज्यादा ना लिख पाऊं, लेकिन छोटा-मोटा, कुछ भी (चाहे हाय-हेल्लो ही क्यों ना हो) लिख कर अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज कराता रहूंगा। यह मेरा आप सबसे पक्का वादा हैं।

कृपया मेरा ब्लॉग पढ़ते रहे और अपना सहयोग/स्नेह/प्यार मुझपर सैदेव बनाए रखे।

धन्यवाद।
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Monday, September 07, 2009


कृपया इधर ध्यान दीजिये =


मेरी शादी पिछले साल 07.दिसम्बर.2008 को हुई थी। और आज 07.सितंबर.2009 को मेरी शादी को पूरे 9 महीने हो गए हैं। कुछ ही (उँगलियों पर गिनने लायक) दिनों में मैं पापा बन जाऊँगा। 23.जुलाई.2009 को मैंने (श्री कीर्ति राणा जी की प्रेरणा से) अपना पहला ब्लॉग पोस्ट किया था और आज ०7.सितंबर.2009 को मैं यह आखरी (अस्थाई रूप से आखरी) ब्लॉग पोस्ट कर रहा हूँ।


दोस्तों, शुरू से लेकर आज तक (यह आखरी ब्लॉग भी) मैंने जितने भी ब्लॉग पोस्ट किए हैं, सभी मैंने श्री कीर्ति राणा जी की प्रेरणा से ही पोस्ट किए हैं। ब्लोगिंग/ब्लॉगर की दुनिया में मैं श्री कीर्ति राणा जी की प्रेरणा से ही आया हूँ। वे मेरे प्रेरणा-स्रोत हैं।


मैं जानता हूँ कि-"मेरा यह फैसला आपको पसंद नही आयेगा। लेकिन अभी फिलहाल मेरी मजबूरी हैं, बच्चा होने के बाद मैं और मेरे सारे घरवाले आगंतुको और मेहमानों का स्वागत-सत्कार करने में व्यस्त हो जायेंगे।"


इस व्यस्तता में मुझे ब्लॉग लिखने या ऑनलाइन होने का बिल्कुल भी वक्त नही मिल पायेगा। वैसे भी एक पिता होने के नाते मुझे मेरी पहली संतान को वक्त तो देना ही चाहिए। कृपया अपना सहयोग और स्नेह बनाए रखे। आप लोग मुझे/मेरे ब्लॉग को बेहद मिस करेंगे और मैं भी आपको उतनी ही शिद्दत से मिस करूँगा। लेकिन पापा रोज़-रोज़ तो बना नही जाता हैं, इसलिए..................


जहाँ तक मेरा अंदाजा हैं, मैं आगामी 3 माह तक ब्लॉग नही लिख पाउँगा। लेकिन मेरा पक्का, पुरा, और इमानदारी से प्रयास रहेगा कि-"मैं ब्लॉग लिखने में ज्यादा लंबा अन्तराल ना देते हुए, बीच-बीच में ब्लॉग लिख लिया करूँ।" बाकी आगे इसके लिए समय मिलेगा या नही, यह तो भविष्य के गर्भ में हैं।


कृपया मेरा ब्लॉग पढ़ते रहे और अपना सहयोग/स्नेह/प्यार मुझपर सैदेव बनाए रखे।


एक और अपील = कृपया आप मेरे ब्लॉग-गुरु श्री कीर्ति राणा जी का ब्लॉग (www.pachmel.blogspot.com) जरूर देखे और फौलो (अनुसरण) करे।


धन्यवाद।


FROM =


CHANDER KUMAR SONI,


L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,


SRI GANGANAGAR-335001,


RAJASTHAN, INDIA.


CHANDERKSONI@YAHOO.COM


00-91-9414380969


CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Friday, September 04, 2009

छोटी-छोटी लेकिन दो महत्तवपूर्ण बातें।

एक =
"सरफरोशी की तमन्ना....." और "रंग दे बसंती....." जैसे सदाबहार राष्ट्रवादी गीतों की रचना जिस जेल में हुई थी, उस जेल को उत्तर प्रदेश की सरकार ने तुड़वा दिया हैं। भले ही अदालत की अनुमति से इस जेल को ढहाया गया हो, लेकिन क्या ख़ुद उत्तर प्रदेश की सरकार को इस स्थळ के महत्तव को समझते हुए, इस स्मारक की रक्षा नही करनी चाहिए थी?? इसलिए अब आज़ादी की लड़ाई के स्मारकों और ऐतिहासिक प्रतीकों को बचाना अब बेहद जरूरी हो गया हैं।

आज आज़ादी के इतने लंबे वक्त के बाद भी यह दोनों गीत ("सरफरोशी की तमन्ना....." और "रंग दे बसंती.....") देश के युवाओं और हर नागरिक में राष्ट्रबोध को जगा देता हैं। लेकिन जिस ऐतिहासिक स्थल (जेल) को संरक्षित किया जाना चाहिए था, उसे उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार ने अपने चंद राजनीतिक स्वार्थो की बलि चढ़ा दी हैं। अदालत की अनुमति के बावजूद यू.पी. सरकार का यह कदम घोर निंदनीय हैं।

दो =

अभी कुछ दिनों पहले भारतीय क्रिकेटर हरभजन सिंह उर्फ़ भज्जी का पुलिस द्वारा चालान करने की ख़बर आई। कुछ लोगो ने इसे ग़लत बताया तो कुछ लोगो ने इसे भज्जी का अपमान कहा। कुछ ने इसे पुलिस का नाटक करार दिया तो कुछ ने इसे हरभजन के प्रति भेदभाव कहा। लोग चाहे कुछ भी कहे, मैं इसे पुलिस की बिल्कुल सही कार्रवाई मानता हूँ। हरभजन ने गलती की हैं, तो क़ानून सज़ा देगा। पुलिस अगर भेदभाव करती भी हैं , तो भी हरभजन के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई बिल्कुल उचित हैं। "पहले उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करो फिर हमारे ख़िलाफ़ करना " की भावना त्यागनी होगी। पुलिस जिसके भी ख़िलाफ़ कार्रवाई करे, हमें उसका स्वागत करना चाहिए नाकि विरोध। हमें सिर्फ़ वही विरोध जताना चाहिए, जहाँ पुलिस बिना गुनाह के कार्रवाई करे। क़ानून सबके लिए एक हैं। चाहे छोटा हो या बड़ा, क़ानून की पालना करना हर किसी के लिए आवश्यक हैं। दूसरो को देखना छोडिये, यह देखिये कि-आप क्या कर रहे हैं?? बस।

वैसे भी भज्जी, लाखो लोगो के रोल मॉडल हैं। ऐसे में उन्हें कोई प्रेरक कृत्य करने चाहिए, जिसे उनके प्रशंषक भी अपनाए। भज्जी जी, को कोई अच्छा कार्य करना चाहिए, जिसे उनके प्रशंषक अपना कर, देश का कुछ भला कर सके। लाखो लोग उनके फैन हैं, उनके हर छोटी-बड़ी हरकत पर लोगो की नज़रे टिकी रहती हैं। उन्हें क़ानून तोड़ने की बजाय, क़ानून की सख्ती से पालना करनी चाहिए। ताकि उनसे प्रेरित होकर लोग भी क़ानून की पालना करने लग जाए। इसी में भज्जी की, उनके प्रशंषको की, और समग्र देश की भलाई हैं।

धन्यवाद।
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Monday, August 31, 2009

सच का सामना--हर पल, हर रोज़।


आज कल स्टार प्लस पर प्रसारित हो रहा एक कार्यक्रम बेहद चर्चित हो रहा हैं। इतना चर्चित की इसकी गूँज संसद में भी पहुँच चुकी हैं। और इस चर्चित कार्यक्रम का नाम हैं-"सच का सामना।"

जी हाँ, आप बिल्कुल सही समझे हैं। यह कार्यक्रम अपने प्रतिभागियों से कई सारे सवाल पूछता हैं, जो जितने सही और सच जवाब देता हैं, उसे उतनी ही बड़ी रकम इनाम में दी जाती हैं। जबसे यह कार्यक्रम टीवी पर शुरू हुआ हैं, तभी से यह विभिन्न विवादो के घेरे में हैं।

कोई इसे नैतिकता के लिए ग़लत ठहरा रहा हैं, तो कोई इसे समाज के लिए खतरनाक बता रहा हैं। कोई इसे पति-पत्नी के रिश्ते में दरार डालने वाला कह रहा हैं, तो कोई इसे बच्चो पर ग़लत प्रभाव डालने वाला बता रहा हैं।

यानी कुल मिलाकर, निष्कर्ष यही निकलता हैं कि-"इस कार्यक्रम का चारो तरफ़ विरोध ही हो रहा हैं। फिलहाल चहुओर इसकी निंदा ही हो रही हैं।"

व्यक्तिगत / निजी तौर पर मुझे इस कार्यक्रम को लेकर कोई आपत्ति / शिकायत नही हैं। ना तो मुझे इस कार्यक्रम के सवालों को लेकर कोई आपत्ति हैं ओर ना ही मुझे इस नाटक के सामाजिक / बाल मन / और नैतिक तौर पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर कोई शिकायत हैं। सीधी-सी बात हैं, यह महज एक टीवी कार्यक्रम हैं, अगर पसंद हो तो देखिये वरना ना देखिये।

अगर इस टीवी कार्यक्रम "सच का सामना" में अश्लील शब्दों/दृश्यों का प्रयोग होता तो विरोध उचित था, लेकिन सिर्फ़ सवालों को लेकर विरोध करना तो सरासर ग़लत हैं। फ़िर तो फिल्मों का काफ़ी विरोध होना चाहिए, जो बेहद अश्लील संवाद/दृश्य परोसते हैं।

वैसे मेरा स्पष्ट मानना हैं कि-"मैं, आप, और हम सबका हर पल, हर रोज़ सच का सामना होता हैं। एक पल, एक दिन भी हमारा ऐसा नही जाता हैं, जब हमारा सच का सामना नही होता हो।" अगर मेरी इस बात का यकीन नही हो रहा हो, तो जरा निम्नलिखित पढिये =
01. बचपन में हम खूब शरारते करते हैं, घरवालो से छुपकर। क्या घर वालो से कुछ छुपाना झूठ नही हैं?
02. शरारते करते या करने के बाद पकड़े जाने पर क्या हमने झूठ नही बोला?
03. भले ही वह बचपन की बात हो, पर झूठ तो झूठ ही होता हैं। चाहे जानबूझ कल बोले या बचपने में।

04. स्कूल ना जाने के लिए क्या हमने अपने माता-पिता से बहुत-से झूठे बहाने नही बनाए?
05. स्कूल जाने के बाद, जब हमसे होम वर्क का पूछा जाता, तो क्या हम झूठ का सहारा नही लेते थे?06. घर आने के बाद, जब घरवाले हमें होम वर्क करने का कहते थे, तो क्या हमने होम वर्क स्कूल में ही कर लेने या होम वर्क ना मिलने का झूठ नही बोला?
07. थोडी बड़ी क्लास्सेस में होने के बाद क्या हम ट्यूशन के बहाने से गेम खेलने नही जाते थे?
08. क्या हम परीक्षाएं नज़दीक आने के बाद ही नही पढ़ते थे? क्या ये सच नही हैं?
09. क्या हमने कभी बिना नक़ल किए कोई परीक्षा दी हैं?
10. कॉलेज में होने के बाद तो हमने झूठ बोलने की हद ही पार कर दी हैं। क्या नही?
11. क्या हमने कभी कॉलेज की क्लास्सेस बंक नही की हैं?
12. फ़ेल होने के बाद भी, क्या हमने कभी पढ़ाई के प्रति इमानदारी बरती हैं?
13. पढ़ाई ख़तम करने के बाद जब हम बिज़नस, व्यापार में आ गए, तो क्या हमने बेईमानी नही की?
14. क्या हमने कभी किसी अनजान ग्राहक को नही लूटा?

15. क्या अपने फायदे के लिए हमने अपने प्रतिद्वंद्वियों को नुक्सान नही पहुंचाया?
16. क्या हम पूरा आयकर अदा करते हैं?
17. क्या हम अपनी आय की पुरी सूचना देते हैं?
18. आदि।

यह तो सच से जुड़े कुछ सवाल थे। जिनका सामना हमारी रोज़-मर्रा की ज़िन्दगी में होता रहता हैं। और मैं यह भी अच्छी तरेह से जानता हूँ कि-"हम सबका, इनमे से ज्यादातर सवालों का जवाब हाँ में हैं।" अब कई और सवाल =
01. क्या डॉक्टर अपने मरीज को बिमारी की पुरी सूचना/जानकारी देता हैं?
02. क्या डॉक्टर अपने लालच/कमिशन के लिए गैर-जरूरी, और मेहेंगी दवाइयाँ नही लिखते?
03. क्या वकील अपने क्लाइंट को मुक़दमे की सही-सही स्थिति बताता हैं?
04. क्या वकील अपनी जेब भरने के लिए, मुक़दमे को अनावश्यक लंबित नही रखता हैं?
05. क्या इंजिनियर-ठेकेदार कुछ बचाने के लिए, निर्माण-कार्यों की गुणवत्ता नही ख़राब करता हैं?
06. क्या नेता-राजनेता आम जनता को उल्लू नही बनाते हैं?
07. क्या आम जन भी नेताओं की तरेह नही हो गया हैं?
08. क्या आम जनता ने कभी-कभी अपने स्वार्थो के लिए सही, योग्य और काबिल उम्मीदवार को नही हराया हैं?
09. क्या नौकरी पाने के लिए हमने कभी झूठे दस्तावेज प्रस्तुत नही किए हैं?
10. क्या सी.ए., सी.एस., या ऍम.बी.ए., बनने के बाद हमने बड़ी-बड़ी कंपनियों को टैक्स चोरी के उपाय नही सुझाए हैं?
11. आदि।

यानी कुल मिला कर बात यही हैं कि-"हर पल, हर रोज़, हमेशा हम सच का सामना करते रहते हैं। बचपन में हम इसलिए नही पढ़ते क्योंकि परीक्षा नज़दीक नही होती हैं। यानी हम जानते हैं कि-हमें परीक्षा में पढ़ना हैं, पर परीक्षा दूर होने के कारण, हम पढने में आलस कर जाते हैं। परीक्षा-फल सदा हमारा सच से सामना कराती रही हैं।"

यही स्थिति कॉलेज में पढने के दौरान भी होती हैं। कॉलेज में हम क्लास्सेस बंक मारते रहते हैं। परन्तु क्लास्सेस बंक मारते वक्त भी, हमारे दिमाग में पढ़ना भी याद रहता हैं। हम जानते हैं कि-"मौज-मस्ती के साथ-साथ पढ़ाई करना बहुत जरूरी हैं। यदि हम फ़ेल हो गए तो हमारी पढ़ाई छुट जायेगी। स्कूल में तो फ़ेल होने पर दोबारा पढ़ा जा सकता हैं, परन्तु कॉलेज में फ़ेल होकर दोबारा पढ़ना सम्भव नही होता हैं।" कॉलेज में फ़ेल होने का डर, हमारा सच का सामना कराता रहता हैं।

इसी तरेह, जब हम व्यापार में अनजान लोगो को लूटते है या आयकर चोरी करते हैं, तो भी हमारे मन में एक डर बना रहता हैं। आयकर अधिकारियों और माप-नाप-तौल विभाग के अधिकारियों के छापो का डर, हमें सच का आभास कराता रहता हैं।

कुल मिलाकर निचोड़ यह हैं कि-"जो मर्जी स्थिति हो, जैसे भी हालत हो, हम चाहे जो भी हो, हर पल, हर रोज़, हमेशा हम सच का सामना करते रहते हैं। हम जितना भी दूसरो से, जिम्मेदार लोगो, मास्टर्स, मोनिटर, शिक्षको, माता-पिता या अन्य जिम्मेदार/सक्षम अधिकारियों, आदि से छुपाये, सच्चाई हमें पता होती हैं। हम जिस मर्जी कारण से ग़लत कार्य करे या झूठ बोले, सच का सामना हमारा सदा होता रहता हैं। और आगे भी होता रहेगा।"

इसलिए सच का सामना कीजिये, सच से भागिए मत, और सच का सामना करने का विरोध तो बिल्कुल मत कीजिये। इसी में आपकी, हमारी, और सबकी भलाई हैं।

आओ, सच को मजबूती प्रदान करे।

धन्यवाद।

FROM =

CHANDER KUMAR SONI,

L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,

SRI GANGANAGAR-335001,

RAJASTHAN,

INDIA.

CHANDERKSONI@YAHOO.COM

00-91-9414380969

CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Thursday, August 27, 2009

जिद करो दुनिया बदलो।

उसैन बोल्ट आज कोई अनजाना नाम नही हैं। दुनिया के सबसे तेज़ दौड़ने वाले जमैका के नागरिक हैं उसैन बोल्ट। किसी ने कभी कल्पना भी नही कि होगी कि-"कोई इंसान इतनी तीव्र गति से भी दौड़ सकता हैं।" अभी कुछ ही दिनों पहले उन्होंने 1.59 सेकंडो में 100 मीटर दौड़ने का कारनामा कर दिखाया, और उसके दो दिन बाद ही 19.19 सेकंडो में 200 मीटर दौड़ने का रिकॉर्ड ही बना डाला। इन दो रिकारडो के बाद तो उसैन दुनिया के सबसे तेज़ धावक बन गए हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि-"जमैका के उसैन बोल्ट किस पृष्ठभूमि के हैं????????" बोल्ट एक छोटे से गाँव के रहने वाले हैं। उनके माता-पिता बेहद गरीब हैं। आज भी उसैन के गाँव में सड़के नही हैं, बिजली-पानी की ज़बरदस्त किल्लत हैं। उसैन को दौड़ने से पहले आम लोगो कि तरेह क्रिकेट खेलने का शौंक था, लेकिन उनके स्कूल टीचेर ने उनकी छुपी प्रतिभा को पहचान लिया। उन्होंने ही उसैन बोल्ट को क्रिकेट खेलने की जगह दौड़ने का सुझाव दिया।

बस, यही से उसैन की ज़िन्दगी का उद्देस्य ही बदल गया। अब उसैन ने क्रिकेट की जगह दौड़ने को ही अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया था। दुर्भाग्य देखिये, उनके पास दौड़ने के लिए उपयुक्त जूते तक नही थे। उनकी माता ने अडोस-पड़ोस से जुगाड़ करके जूते का इंतज़ाम किया था। यह उसैन की जिद का ही परिणाम था, कि-"आज वे दुनिया के सबसे तेज़ दौड़ने वाले व्यक्ति हैं।" उनके पिता ने तो कभी कल्पना भी नही होगी, कि उनका बेटा कभी इस तरेह उनका और अपने देश (जमैका) का नाम रोशन करेगा।

इसे ही कहते हैं, जिद करो दुनिया बदलो।
इतिहास इस तरेह के उदाहरणों से भरा पडा हैं।

पाकिस्तान के साथ युद्घ में भारत की पहली महिला प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी जी की जिद ही असरदार थी। एक तरफ़ भारत का पारंपरिक मित्र रूस मुँह मोडे खड़ा था तो दूसरी तरफ़ अमेरिका की कड़ी चेतावनी थी। लेकिन इंदिरा गाँधी जी ने ठान लिया था कि-"बस बहुत हुआ पकिस्तान का नापाक खेल। अब भारत किसी के दबाव में नही आयेगा। पकिस्तान को अब करारा सबक सिखाना ही पडेगा।" और इतिहास गवाह हैं कि-"उस युद्घ में इंदिरा जी की जिद ही चली थी। पाकिस्तान के करीब एक लाख सैनिको ने आत्म-समर्पण कर दिया था। जोकी आज भी वर्ल्ड रिकॉर्ड हैं। अभी तक के ज्ञात इतिहास में ऐसा कभी नही हुआ हैं, जब एक लाख के करीब सैनिको ने हथियार ड़ाल दिए हो।" यह सब इंदिरा जी की जिद का ही परिणाम था। सबसे बड़ी बात, इंदिरा जी की जिद के आगे अमेरिका को भी झुकना पड़ गया था।

इसे ही कहते हैं, जिद करो दुनिया बदलो।

इसी तरेह की जिद, आज़ादी के संघर्ष में भी थी। 1947 में आज़ादी के दिवानो की ऐसी जिद हुई, कि-"अंग्रेजो को हिन्दुस्तान छोड़ कर भागना पड़ गया।" स्वतन्त्रता सेनानियों ने ऐसी जिद पकड़ी कि, उन्हें आज़ादी के सिवा कुछ नज़र ही नही आया। भोजन-पानी, जमीन-जायदाद, परिवार, बीवी-बच्चे, आदि सब पीछे रह गए, बस एक ही जिद रह गई थी, कि-किसी भी तरेह से अंग्रेजो से मुक्ति मिल जाए, बस।

तो यह तो थे कुछ उदाहरण, जिससे यह साबित होता हैं कि-"जिद करने से दुनिया बदल जाती हैं।"

लेकिन यहाँ, यह समझना उचित नही होगा कि-"हर एक जिद सही होती हैं। जिद बिना सोचे-विचारे करना सही हैं।" जिद करते समय आप यह याद जरूर रखिये कि-"आपकी जिद जायज़ होनी चाहिए। आपकी जिद का कोई ठोस कारण होना चाहिए। आपकी जिद ग़लत या नाजायज़ नही होनी चाहिए। आपकी जिद में किसी का अहित, नुक्सान, या किसी का बुरा नही होना चाहिए। आपकी जिद में सबका भला, सबका विकास, सबकी तरक्की, और सबको साथ लेकर चलने की भावना होनी चाहिए। आपकी जिद में अपनापन, परोपकार, दया, दान, नि-स्वार्थता, और अच्छाई की भावना होनी चाहिए।"

तभी आपकी जिद एक सार्थक जिद मानी जायेगी। तभी आपकी जिद सफल हो पाएगी। नाजायज जिद को शुरुआत में एक बार सहानुभूति हासिल हो सकती हैं, लेकिन कामयाबी बिल्कुल भी हासिल नही हो सकती।

इसलिए आईये, सार्थक जिद करे और दुनिया बदले।

जिद करो दुनिया बदलो।

धन्यवाद।

FROM =

CHANDER KUMAR SONI,

L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,

SRI GANGANAGAR-335001,

RAJASTHAN, INDIA.

CHANDERKSONI@YAHOO.COM

00-91-9414380969

CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Sunday, August 23, 2009


साम्प्रदायिक सौहाद्रता की मिसाल।

आज का दिन (23.अगस्त.09) हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रमुख धर्मो के बीच साम्प्रदायिक सौहाद्रता की मिसाल हैं। आज एक तरफ़ हिंदू धर्मावलम्बियों का प्रमुख त्यौहार गणेश चतुर्थी हैं, तो दूसरी तरफ़ मुसलमानों का मुख्य त्यौहार (माह) रमजान का हैं। दोनों ही त्यौहार दोनों ही प्रमुख धर्मो के प्रमुख/मुख्य त्यौहार हैं।

मैं हिंदू या मुस्लिमो के इतिहास की गलियों में नही घूमना चाहूँगा। ना ही मैं अब, इस वक्त, हिंदू-मुस्लिम धर्मो के बीच व्याप्त तनाव या दोनों के पुराने इतिहास को नही याद करना चाहूँगा। विशेषकर-
इतिहास में क्या हुआ?,
मुस्लिमो ने हिन्दुओ पर क्या-क्या और कितने-कितने अत्याचार किए?,
मुस्लिमो ने हिन्दुओ पर क्या-क्या नाजायज़ कर लगाए?,
मुस्लिमो ने हिन्दुओ के बहन-बेटियों के साथ क्या-क्या किया?,
मुस्लिमो के बुर्के-प्रथा, या बहु-विवाह प्रथा की बुराइयां।

मुस्लिमो ने हिंदू लोगो का जीना कैसे हराम किया?,
या फ़िर आज़ादी के वक्त (1947 में) मुसलमानों ने हजारो-लाखो हिन्दुओ का कत्ले आम किया था।
आदि।


जैसे ज्वलनशील मुद्दों पर मैं यहाँ कोई भी जिक्र नही करना चाहता हूँ। आज, मैं सिर्फ़ और सिर्फ़, दोनों धार्मिक समुदायों के बीच साम्प्रदायिक सदभाव, प्रेम-प्यार, और धार्मिक सौहाद्रता की ही बात करूँगा।

मुझे आज भी, अभी तक यह बात समझ में नही आई हैं कि-
क्यों दोनों धर्मावलम्बी एक दूसरे के बैरी बने हुए हैं??,
क्यों दोनों समुदाय एक-दूसरे को फूटी आँख नही सुहाते हैं??,
बरसो से साथ-साथ रहने वाले, आज अलग क्यूँ हो गए हैं??,
दोनों धर्मो की शिक्षायों में प्रेम-प्यार प्रधान हैं, लेकिन एक-दूसरे को देखते ही यह शिक्षा धरी क्यों रह जाती हैं??,
माना कि-"इतिहास में कुछ मुस्लिम शासको से भूले/गलतियां हुई हैं," पर आज भी, बरसो बाद भी, दोनों समुदायों ने दुश्मनी पाल रखी हैं। क्या यह उचित हैं??,
माफ़ी देना या माफ़ करना भी दोनों धर्मो की प्रमुख शिक्षायों में से एक हैं। तो क्या दोनों धर्म, अपनी-अपनी शिक्षायों पर अमल करते हुए, एक-दूसरे को माफ़ नही कर सकते??


कुछ सवाल जो आज भी पुरी शिद्दत से जवाब मांग रहे हैं। वह सवाल, जिसके जवाब हिंदू-मुस्लिम एकता, साम्प्रदायिक सदभाव, प्रेम-प्यार, और धार्मिक सौहाद्रता, आदि के दुश्मनों को सोचने पर मजबूर कर देंगे =
01. बहुत सी जगह हिंदू मस्जिदों की देख-भाल, सार-संभाल करते हैं, क्या उन्हें ऐसा कर के कुछ मिलता हैं??, नही ऐसा वे अपने दिल से करते हैं।
02. बहुत सी जगह मुसलमान मंदिरों की देख-भाल, सार-संभाल करते हैं, क्या उन्हें ऐसा कर के कुछ मिलता हैं??, नही ऐसा वे अपने दिल से करते हैं।
03. बहुत सी जगह मन्दिर और मस्जिद बिल्कुल साथ-साथ बने हुए हैं, क्या उनसे आपको कोई सीख नही मिलती हैं??,

04. साईं बाबा को हिंदू और मुस्लिम, दोनों धर्मो के लोग समान रूप से पूजते हैं। क्या कोई साईं बाबा का असली धर्म बता सकता हैं??,
05. हिंदू धर्म के लोगो के लिए अमरनाथ एक बेहद प्रमुख तीर्थ हैं। लेकिन, क्या हिन्दुओ को पता हैं कि-"अमरनाथ की खोज एक मुसलमान गडरिये ने कि थी।"??,
06. ब्लड बैंको में खून देने वाले हिंदू और मुस्लिम दोनों होते हैं। तो क्या आपातकालीन स्थिति में आप ब्लड बैंको से खून नही लेते??,
07. यही स्थिति नेत्रदान-अंगदान के मामले में भी हैं। तो क्या आप जरूरत पड़ने पर आँख, गुर्दे, दिल, लिवर, या अन्य अंग प्रत्यारोपित नही कराते हैं??,
08. याद कीजिये, 1947 में (आजादी के संग्राम में) जब हजारो लोगो का कत्ले आम हो रहा था, तो कई हिंदू परिवारों ने मुसलमानों (विशेषकर बच्चो) को शरण दी थी। क्या यह भी भूल गए??,
09. शाहरुख़ खान, सलमान खान, फरदीन खान, नसीरुद्दीन शाह, सायरा बानो, शबाना आज़मी, आदि बॉलीवुड सुपर-स्टार मुस्लिम हैं। क्या बहुतायत हिंदू उनके दीवाने/फैन नही हैं??,

10. मांसाहार दोनों धर्मो में हैं। मुस्लिमो में ईद, बकरीद, और रमजान, आदि पर, तो हिन्दुओ में काली माता, आदि पर। किस धर्म में नही हैं मांसाहार का चलन??,
11. ऐ.आर रहमान, जिनके संगीत का जादू, हर किसी के सर पर चढ़ कर बोल रहा हैं। क्या आप जानते हैं कि-"वे भी मुस्लिम हैं।"??,
12. आदि।

उपरोक्त पढने के बाद, आप सबके दिमाग में घंटी तो बजी ही होगी। आप सबको अपनी भूल का एहसास तो हो रहा होगा। अभी तक आप सब ग़लत थे, जो हिंदू-मुस्लिम, दो भाई आपस में लड़ते रहे। यह अंग्रेजो की खतरनाक चाल थी। वह तो कबके चले गए, हम दो भाइयों (हिंदू और मुस्लिम) को लड़ता हुआ छोड़ कर। अब वक्त आ गया हैं कि-"हम अंग्रेजो की इस चाल को समझते हुए, आपस में एकता, साम्प्रदायिक सदभाव, प्रेम-प्यार, और धार्मिक सौहाद्रता, आदि का वातावरण बनाए।"


और अंत में,
सबसे बड़ी और महत्तवपूर्ण बात = भारतीय राष्ट्रीय धवज में तीन रंग हैं। सबसे ऊपर केसरिया रंग, बीच में सफ़ेद रंग, और नीचे हरा रंग। केसरिया रंग हिन्दुओ का प्रतिनिधित्व करता हैं, हरा रंग मुस्लिमो का प्रतिनिधित्व करता हैं। बीच में सफ़ेद रंग हैं, जोकि शान्ति का प्रतीक हैं।

केसरिया और हरे रंग के बीच में सफ़ेद रंग शान्ति के लिए ही दिया गया हैं। बीच में सफ़ेद रंग देने का कारण ही यह था कि-"दोनों प्रमुख धर्मो के बीच शान्ति बनी रहे।" अब आप सब सावधान हो जाइए कि-"अगर आप हिंदू-मुस्लिम एकता, साम्प्रदायिक सदभाव, प्रेम-प्यार, और धार्मिक सौहाद्रता, आदि के दुश्मन हैं, तो आप राष्ट्र के भी दुश्मन हैं।"

हिंदू-मुस्लिम शान्ति ही भारत की एकता का आधार हैं। और यह बात राष्ट्रीय ध्वज में भी परिलक्षित होती हैं। इसलिए हिंदू और मुस्लिम दोनों का समान रूप से सम्मान करना, भारत का भी सम्मान करना हैं।


धन्यवाद।

FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,

SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Saturday, August 22, 2009

{{{{{पायरेटेड सीडी/सॉफ्टवेयर के साथ-साथ ज़िन्दगी भी पायरेटेड}}}}}

जी हाँ, असल ज़िन्दगी की सच्चाई यही हैं। आप सबने अभी तक नकली,डुप्लीकेट, या पायरेटेड सीडी/सॉफ्टवेयर के बारे में ही सुना होगा। परन्तु अगर आप अपने अन्तर्मन् में झाँक के देखेंगे तो आपको भी यकीन हो जाएगा कि-"पायरेटेड सीडी/सॉफ्टवेयर के साथ-साथ ज़िन्दगी भी पायरेटेड हैं।"


आज हमारी ज़िन्दगी, हमारी सोच, हमारे हाव-भाव, और हमारे विचार, आदि कुछ भी हमारे अपने नही हैं। सब कुछ नकली (यानी मूल नही) हैं। हमारा अपना, हमारा ख़ुद का बनाया (सृजित किया) हुआ कुछ नही हैं। अगर यकीन ना हो रहा हो तो जरा सोचिये-

01. क्या हमारी ज़िन्दगी हमारी अपनी हैं????
02. क्या हमारे विचार हमारे अपने हैं????
03. क्या हमारी सोच हमारी अपनी हैं????
04. हम अपनी ज़िन्दगी क्या अपने हिसाब, अपनी मर्जी से जी रहे हैं????
05. क्या हम हमेशा दूसरो की एक्टिंग नही करते रहते हैं????
06. क्या हमारे हाव-भाव दूसरो लोगो की नही कॉपी होते हैं????
07. क्या हम उन लोगो के विचार नही अपनाते हैं, जो सफल हैं????
08. आदि।

हम सफल लोगो के हाव-भाव, विचार, और सोच को पुरी तरह से कॉपी करने में लगे रहते हैं। इस कोशिश में हम कामयाब हो या ना हो, पर हमें यह कामयाबी जरूर हासिल हो जाती हैं कि-"हमारे अपने मूल हाव-भाव, विचार, और सोच लुप्त-प्राय हो जाती हैं। कुछ भी हमारा अपना नही रह जाता हैं। हमारे पास कोई भी बात, कोई भी सोच, कोई भी विचार, और तो और ज़िन्दगी जीने का कोई भी अंदाज़/ढंग हमारा अपना नही रह जाता हैं।"

सबसे पहले आप यह सोचिये कि-"आप जी किसके लिए रहे हैं??, चाहे आप ख़ुद के लिए जिए या अपने परिवार या फ़िर किसी और के लिए। जीना तो आपको ही हैं ना?? चाहे आप ख़ुद के लिए जीए या दूसरो के लिए, जीना तो आपको ही हैं। जब आप ही नही जियेंगे तो इस बात का कोई भी अर्थ नही रह जाता हैं।"


सबसे पहले आप यह फैसला कीजिये कि-"आपको जीवन जीना हैं।" उसके बाद यह फैसला कीजियेगा कि-"ख़ुद के लिए जीना हैं या किसी अन्य के लिए।" शायद अभी भी आपको मेरी बात समझ में नही आई हैं।



मैं यह कहना चाहता हूँ कि-"आप किसी के स्टाइल, विचार, सोच, या हाव-भाव, आदि को कॉपी ना करे। जीवन एक बार ही मिलता हैं, ऐसे में इस अमूल्य जीवन को ख़ुद के विचारों, ख़ुद के स्टाइल के साथ जीना चाहिए। जीवन के सम्बन्ध में पुन:जन्म जैसी दकियानूसी अंध-विश्वासी बातों के फेर में नही पड़ना चाहिए। जीवन अनमोल हैं, एक बार ही मिलता हैं, ऐसे में इसे अपने हिसाब-अपनी मर्जी से, जी भर कर जीना चाहिए।

ऐसा नही हैं कि-"किसी की अच्छी आदतों, अच्छे विचारों, या अच्छे लाइफ-स्टाइल (जीवन-शैली) को कॉपी करना ग़लत हैं।" मैं तो यह कह रहा हूँ कि-"किसी की अच्छी सोच-विचार को या अच्छी आदतों-जीवनशैली को अपनाना बुरा नही हैं। बुराई तो तब हैं, जब आप अपना मूल रूप खो बैठो।"



भले ही आप दूसरो की नक़ल, कॉपी करते हो, दूसरो के विचारों, दूसरो की सोच को अपनाते हो, या फ़िर ख़ुद को दूसरो की आदतों-जीवनशैली में ढालते हो। लेकिन आपकी मौलिकता बनी रहनी चाहिए, दूसरो के चक्कर में पड़ कर ख़ुद को खो बैठना कहाँ की अकलमंदी हैं??

हमें दूसरो को कॉपी करना चाहिए, दूसरो की नक़ल उतारनी चाहिए पर अपना अस्तित्व बचाए रखते हुए। हमारा अस्तित्व रहेगा तभी हमारी पहचान रहेगी। हमारी पहचान, हमारी प्रसिद्धि हमारे अस्तित्व, मौलिकता पर ही निर्भर हैं। जिस दिन हमारी मौलिकता, मूलता, और अस्तित्वता खत्म हो जायेगी, उसी दिन हमारी पहचान भी खत्म हो जायेगी।

पायरेटेड सीडी/सॉफ्टवेयर की कितनी इज्ज़त होती हैं?, कैसी छवि होती हैं?, उनकी क्या पहचान होती हैं?, और उनका क्या हश्र होता हैं?, यह सब आप में से किसी से भी नही छुपा हैं। तो क्या आप चाहेंगे कि-बिना मूलता, मौलिकता, और पहचान, के हमारा हश्र भी पायरेटेड सीडी/सॉफ्टवेयर जैसा ही हो????

अगर नही तो आइये, हम और आप संकल्प ले कि-"कुछ अच्छाई प्राप्त करने के लिए हम दूसरो के हाव-भावों, विचारों, सोच, जीवनशैलीयों, स्टाईलो, और आदतों को कॉपी करेंगे, लेकिन इस शर्त पर कि-"हमारी मौलिकता बरकरार रहेगी।" हम दूसरो के चक्कर में अपने अस्तित्व, अपनी पहचान पर संकट नही आने देंगे।"

यकीन मानिए, अगर हम दृढ़ता से इस संकल्प पर कायम रहते हैं तो, हम अपनी मौलिकता, पहचान को ख़तरा पैदा किए बिना ही दूसरे लोगो की अच्छाइयों को ग्रहण कर सकते हैं। इससे हमारी अपनी मौलिकता भी बनी रहेगी और कोई यह भी नही कह सकेगा कि-"हमने सारी उम्र दूसरो की तरह जीने में निकाल ही दी हैं।"

और आख़िर में सबसे बड़ी बात, बुढापे में या मृत्यु-शैय्या पर आपको यह अफ़सोस, मलाल तो बिल्कुल भी नही रहेगा कि-"बहुत ही मुश्किलों से एक बार मिलने वाले जीवन को हम अपनी मर्जी से, अपने हिसाब से नही जी पाये। और अब जब पिछली गलतियों को सुधारते हुए, जीना चाह रहे हैं तो उम्र ही नही बची हैं।"

इसलिए मैं तो यही कहूंगा कि-"बुढापे या मृत्यु-शैय्या पर अफ़सोस, मलाल से बचना हैं तो उपरोक्त संकल्प पर दृढ़ता से कायम रहिये। आख़िर एक ना एक दिन तो ऊपर जाना ही हैं, तो क्यों ना अपनी मौलिकता, अपनी पहचान के साथ ऊपर जाया जाए। ताकि धरती वालो के साथ-साथ भगवान् भी याद रखे।"

धन्यवाद।

FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Wednesday, August 19, 2009

शाहरुख़ खान--नही मिटी प्रसिद्धि की भूख।

अभी पिछले कई दिनों से अमेरिका में शाहरुख़ खान जी (किंग खान) की तलाशी को लेकर काफ़ी हँगामा मचा हुआ हैं। पिछले दिनों स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में कोई कार्यक्रम पेश करने शाहरुख़ जी अमेरिका गए थे, वहाँ हवाई-अड्डे पर उनकी सामान्य जांच / पूछताश की गई थी।

शाहरुख़ जी ने इसे अपने मुस्लिम होने की वजेह मानकर ऐतराज़ जताया। कुछ लोगो ने इसे ग़लत माना था, तो कुछ लोगो ने इसे अमेरिका का आम-ख़ास सब लोगो के प्रति समान-रवैया माना था। कुछ लोगो इसे किंग खान (शाहरुख़ खान) के साथ हुई बदसुलूकी मान रहे थे, तो कुछ लोग इसे शाहरुख़ खान जी का पब्लिसिटी स्टंट मान रहे थे।

मैं निजी तौर पर इसे किंग खान (शाहरुख़ खान) जी का पब्लिसिटी स्टंट ही मानता हूँ। आख़िर उनकी महत्तावाकांक्षी फ़िल्म (माय नेम इज खान) जो रिलीज़ होने के करीब हैं। मैं इसे किंग खान जी का पब्लिसिटी स्टंट क्यों मानता हूँ??, ज़रा यह भी जानिए=
01. शाहरुख़ जी ने अपनी तलाशी/जांच का इतना बवाल क्यों मचाया?
02. अमेरिकी अधिकारियों के सवालों का जवाब सीधे-सीधे क्यों नही दिया?
03. बड़ी संख्या में इतने लोग अमेरिका जाते हैं, किसी ने आज तक आपत्ति नही जतायी, बल्कि अमेरिका जाने वाले भारतीयों की संख्या तो बढती ही जा रही हैं?
04. आम जन की बात छोडिये, बॉलीवुड के ही बहुत से हीरो-हिरोइन्स अमेरिका आते-जाते रहे हैं, किसी ने कभी कोई शिकायत नही की, क्यों?
05. बड़े-बड़े लोग (नेता, राजनेता,उधोगपति, आदि) अमेरिका जाते रहे हैं, लेकिन सभी अमेरिकी तलाशी/जांच में सहयोग करते हैं। किंग खान जी, क्या इससे अलग हैं?
06. आतंकी हमले के बाद अमेरिका काफ़ी सख्त-सतर्क हो गया हैं, क्या शाहरुख़ जी इस तथ्य से अनजान हैं??
07. अगर मान भी लिया जाए, कि-"शाहरुख़ जी का मुस्लिम होने के कारण अपमान किया गया हैं।" तो शाहरुख़ जी तुंरत वापस इंडिया क्यों नही लौट आए?
08. भारत वापस आने पर जो भी खर्चा आता, वो आत्म-सम्मान के आगे कुछ भी नही था। अगर सच में बेईज्ज़ती हुई थी, तो वापस आना बेहतर था।
09. भारत वापस लौट आते तो लोगो को भी अमेरिका की गलती नज़र आती।
10. असल में शाहरुख़ जी अपने अहम्, अकड़, आदि दुर्गुण होने के कारण अमेरिकी अधिकारियों को सीधे-सीधे सही जवाब नही दिया। जिसके कारण, उन्हें उनको अपनी कस्टडी में लेना पड़ा। 11. यह कहने की क्या आवश्यकता थी कि-"मुझे यहाँ कई लोग जानते हैं।" सीधे-सीधे कागजात दिखाते हुए, उनके सवालों का जवाब क्यों नही दिया?

12. वहाँ स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में उनहोंने अपने फैन्स से कहा कि-"अपने अपमान के कारण मैं दुबारा अमेरिका नही आना चाहूँगा, लेकिन आप लोगो के प्यार के कारण आना पड़ेगा।" यानी अपमान बड़ा नही हैं, कार्यक्रम से धनार्जन बड़ा हैं।
13. इतने बड़े स्टार बनने के बाद भी किंग खान को पब्लिसिटी की जरूरत हैं?
14. जब वे बॉलीवुड के सुपर स्टार हैं, और वे बॉलीवुड के बेताज बादशाह हैं, तब भी उन्हें पब्लिसिटी की जरूरत हैं?
15. अमूमन सभी फिल्मो के हिट जाने के बावजूद, क्या उन्हें पब्लिसिटी चाहिए।
16. सच चाहे जो भी हो, उन्होंने पब्लिसिटी पाने की नाकाम कोशिश की हैं।
17. पब्लिसिटी पाने की यह कोशिश उन्हें कुछ दिनों के लिए सुर्खियों में जरूर ला देगी, लेकिन वह अब उतने सम्मानित नही रह गए हैं।
18. जन-जन के हीरो बनने की कोशिश में उनहोने नुक्सान ही हासिल किया हैं।
19. काफ़ी बवाल मचने के बाद किंग-खान जी ने बड़प्पन दिखाने का नाटक किया। यह कहकर कि-"उन्हें किसी की माफ़ी नही चाहिए।" क्या आम जनता इतनी भोली हैं कि-"यह नाटक भी ना समझ पाये????"


सच तो यह हैं कि-"यह शाहरुख़ खान जी का पब्लिसिटी स्टंट था, जो उल्टा पड़ गया हैं। किंग-खान जी और उनके समर्थक जो मर्जी कहे, पर सच्चाई यही हैं।"

इस मामले में मैं ज्यादा कुछ ना कहता हुआ, इतना ही कहना चाहूँगा कि-"आप जैसे भी हैं, वैसे बने रहिये, इसी में आपकी और सबकी भलाई हैं। अपने आपको उभारना या हाईलाइट करना ग़लत नही हैं, पर आपका रास्ता सही होना चाहिए। अपने आपको उभारने के लिए कोई असाधारण कार्य कीजिये, कोई समाज-सेवा कीजिये, कठोर मेहनत कीजिये, या फिर कोई और तरीका ढूँढिये। अपनी महत्तावाकांक्षी फिल्मो के प्रचार/पब्लिसिटी के लिए, शाहरुख़ जी ही नही बल्कि सभी फिल्मकारों को, कोई सार्थक कदम उठाने चाहिए। नाकि ऐसा ओछा या भोंडा हथकंडा अपनाना चाहिए, जोकि सरासर ग़लत हैं।"


वैसे किसी ने सत्य ही कहा हैं कि-"रोटी, पैसा, और प्रसिद्धि की भूख कभी शांत नही होती हैं।" शाहरुख़ खान जी के मामले में ऐसा ही हैं।
धन्यवाद।
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Saturday, August 15, 2009

आज़ादी की 62वी वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत बधाई, पर क्या भारत वाकई आजाद हैं????

आज सारा देश और सारे देशवासी हर्ष-उल्लास से स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। आज के ही दिन, अपने वतन को 200 साल पुराने अँग्रेजी-शासन से मुक्ति मिली थी। बहुत ज्यादा, कड़े संघर्ष और बलिदानों के बाद भारत को आज़ादी की ताज़ी हवा में साँस लेने का मौका मिला था।

आज का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरो से लिखा गया हैं। लाखो लोगो ने अपनी प्राणों की आहुति दे दी थी, लाखो लोगो ने काला-पानी और अन्य कठोर यातनाओं का सामना किया था। किसी ने अहिंसक तरीका अपनाया, तो किसी ने हिंसक तरीका अपनाया। लेकिन, मकसद सिर्फ़ एक ही था, और वो था भारत माता को अंग्रेजी बेडियों से मुक्त करना।

सच ही हैं कि-"यह आज़ादी हमें इतनी आसानी से नही मिली। दुनिया भर में सबसे बड़ा,कड़ा,और संघर्स-पूर्ण आन्दोलन हम भारत-वासियों का ही था। दुनिया भर में जितने भी देशो में आज़ादी-स्वतन्त्रता की लडाइया हुई हैं, उनमे अपनी लड़ाई सबसे भीषण थी।"

हिन्दुस्तान से अंग्रेजो-गोरे लोगो को खदेड़ने में सभी आम-ख़ास भारतीयों का किसी ना किसी रूप में योगदान जरूर था। किसी का परोक्ष रूप से तो किसी का प्रत्यक्ष रूप से, किसी का बड़ा तो किसी का छोटा, किसी का अहिंसक तो किसी का हिंसक, किसी का मार-पीट भरा तो किसी का प्रेम-प्यार भरा। यानी, कुल मिलाकर सभी हिन्दुस्तानियों का, आजाद-मुल्क में साँस लेने के सपने को साकार करने, में योगदान था।

मैं इस बहस में कतई नही पड़ना चाहता हूँ कि-
01. आज़ादी की लड़ाई में कितने लोग परोक्ष-प्रत्यक्ष रूप से शामिल थे?
02. आजाद भारत का असली हीरो कौन हैं?
03. आज़ादी की लड़ाई असल में किसने लड़ी?
04. आज़ादी की लड़ाई में किसकी कितनी भूमिका हैं?
05. आज़ादी की लड़ाई में कितने लोग-नेता मारे गए, घायल हुए?
06. आजाद भारत के निर्माण-कर्ता कौन-कौन हैं?
07. आजाद भारत किसके आन्दोलन, किसकी विचारधारा पर बना हैं?
08. आजाद भारत का सपना किसके बलिदान, किसके नेतृत्त्व में साकार हुआ?
09. भारत को अंग्रेजी-हुकूमत से मुक्त कराने में किसकी विचार-धारा निर्णायक रही?
10. भारत माता को अंग्रेजो-गोरो के चंगुल से छुडाने में, किस-किसकी, कितनी-कितनी भूमिका रही?

11. आदि।

आज भारत माता को अपने सपूतो पर गर्व हैं। भारत माता के प्रति जो श्रद्धा और विश्वास उस वक्त स्वतन्त्रता सेनानियों और आम हिन्दुस्तानियों ने दिखाया था, और भारत माता को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों तक की बाज़ी लगा दी थी, उससे भारत माता को गर्व हैं।

खैर यह तो बात थी भारत माता, भारत का आज़ादी, और भारत के सच्चे सपूतो और स्वतंत्रता-सेनानियों की। अब बात करते हैं, भारत की आज़ादी और उससे जुड़े कुछ मुद्दों-मसलो पर। आज हम भले ही आजाद हो, भले ही आज हम आज़ादी की हवा में साँस ले रहे हो, पर कुछ अनुत्तरित सवाल अभी भी, आज भी मेरे दिमाग में कौंध रहे। आप भी जानिए =
01. क्या हमें याद हैं कि-हमें यह आज़ादी कैसे मिली हैं??
02. क्या हमें याद हैं कि-इसके लिए कितने लोगो ने अपने प्राणों कि आहुति दी हैं??
03. क्या हमें पता हैं कि-यह आज़ादी हमें कितने संघर्षो और कठोर यातनायों को झेलकर मिली हैं??
04. क्या हमें मालूम हैं कि-हम सब किनकी बदोलत आज़ादी की हवा में साँस ले रहे हैं??
05. क्या आज हम वाकई आजाद हैं??
06. क्या हमें वह आज़ादी मिल गई हैं, जिसका सपना हमारे पूर्वजो ने देखा था??
07. क्या हम उस आजाद भारत में रह रहे हैं, जिसका ख्वाब गाँधी जी ने देखा था??
08. क्या हमें आज भी स्वाधीनता का सही अर्थ पता हैं??
09. क्या आजाद भारत के प्रति, हमारे दिल में आज भी उतनी उमंग, उतनी खुशी हैं, जितनी हमारे पूर्वजो में थी??
10. क्या आज भी हम भारत माता के लिए, आवश्यकता पड़ने पर, वह सब कर सकते हैं, जो तात्कालीन स्वतंत्रता सेनानियों ने किया??
11. क्या हम (भगवान् ना करे, ऐसा हो) भारत की आज़ादी के लिए, पुन: इतिहास को दोहरा सकते हैं??
12. क्या आज भी हमारे दिलो में भारत बसता हैं??
13. वैसे तो अब ज्यादा स्वतंत्रता-सेनानी जीवित नही हैं। लेकिन, जो हैं, क्या उनके प्रति आपके हर्दय में मान-सम्मान हैं??
14. अच्छी पढ़ाई-लिखाई के बाद, सिर्फ़ धन-दौलत के लिए, आप विदेश जाना पसंद करते हैं या भारत की सेवा-मजबूती करना??
15. आज के और भविष्य के भारत के प्रति आपका नज़रिया-दृष्टिकोण सकारात्मक हैं या नही??
16. हाल ही में आई मंदी को देख, कही आपके मन में नकारात्मक भाव तो नही पैदा हुए??
17. गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के अलावा साथ-साथ बाकी दिन भी आप भारत-माता और शहीदों के समक्ष नत-मस्तक होते हैं??
18. नक्सलवाद, उग्रवाद, और आतंकवाद के ख़िलाफ़ क्या आपका सख्त रवैया हैं??
19. देश भर में फैली मूल-भूत, प्रथम आवश्यकताओं (रोटी, कपडा, मकान) की कमी / समस्या के समाधान के लिए आप गंभीर हैं??
20. बिजली, पानी, और सड़क जैसी आधार-भूत समस्याओं के प्रति आपका कैसा रवैया हैं??

21. स्वतन्त्रता संग्राम, और भारत की आजादी, आदि के सम्बन्ध में आपका इतिहास-ज्ञान कैसा हैं??
22. क्या आपको मालूम हैं कि-राष्ट्रीय गान, राष्ट्रीय गीत क्या-क्या हैं??
23. क्या आपको जन-गण-मन पूरा आता हैं??
24. क्या आपको वंदे-मातरम् पूरा आता हैं??
25. क्या आप राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गान, राष्ट्रीय गीत, राष्ट्रीय पशु-पक्षी, और राष्ट्रीय मुद्रा का सम्मान करते हैं??
26. क्या आप देश की सबसे बड़ी ताकत, सबसे बड़ी पहचान, और देश की आन-बान-शान, यानी लोकतंत्र की इज्ज़त करते हैं??
27. क्या आप बिना दबाव और स्वार्थ के वोट डालते हैं??
28. क्या आप जानते हैं कि-अगर आप वोट नही डालते हैं, तो आप लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं??
29. क्या आप चाहेंगे कि लोकतंत्र कमजोर हो??
30. कमजोर लोकतंत्र, कमजोर देश की निशानी हैं। क्या आप अपने आपको कमजोर देश के वासी कहलाना चाहेंगे??

31. क्या आपमें देश के प्रति, खुशी, उमंग, और गर्व की भावना हैं??
32. क्या आप जातिवाद, धर्मवाद, या पंथ-वाद का समर्थन करते हैं??
33. क्या आप भरष्टाचार, रिश्वतखोरी का विरोध करते हैं??
34. दिल से पूछिए, क्या आप सच्चे भारतीय हैं??
35. मेहेंगाई, गरीबी, भूखमरी, और अशिक्षा जैसी समस्याए मुँह बाए खड़ी हैं। क्या आपके पास कोई सुझाव या समाधान हैं??
36. रोटी, कपडा, मकान, नक्सलवाद, उग्रवाद, आतंकवाद, बिजली, पानी, सड़क, मेहेंगाई, गरीबी, भूखमरी, और अशिक्षा जैसी गंभीर परेशानियों का आपको कोई हल मालूम हैं??
37. अंग्रेजो-गोरो को तो हमारे पूर्वजो ने भगा दिया हैं, लेकिन अंग्रेजी को तो हम ही भगा सकते हैं। अगर अंग्रेजी को भगा नही सकते /या भगाना ना चाहते हो तो, कम से कम हिन्दी का मान-सम्मान तो बरकरार रखिये।

38. कही आप जाति, धर्म, समुदाय, रंग-रूप, राज्य या फ़िर किसी अन्य संकीर्णता से तो नही बंधे हुए हैं??
39. क्या आपको ख़ुद पर, अपनी भाषा पर, अपने राज्य पर, अपने देश पर, अपने देश की विविधता में एकता भरी संस्कृति पर, अपने देश की रीती-निति और परम्परायों पर, अपने देश की आर्थिक-राजनितिक-और वैश्विक स्थिति पर भरोसा / विश्वास हैं?
40. और सबसे बड़ी बात क्या आपको अपने सच्चे भारतीय होने पर फख्र, गर्व हैं??

ऊपर दिए गए सभी 40 सवालों को पढने के बाद, कृपया दिल से विचारिएगा कि-"क्या हम वाकई आजाद हैं???????" मेरा जवाब तो ना में हैं। और हो भी क्यों ना, इतनी ढेर-सारी परेशानियों-समस्याओं के रहते मेरा जवाब हाँ में कैसे हो सकता हैं?? रोटी, कपडा, और मकान जैसी मूल-भूत, प्रथम आवश्यकताओं तथा बिजली, पानी, और सड़क जैसी आधार-भूत ज़रूरतों, और नक्सलवाद, उग्रवाद, आतंकवाद, आदि की समस्यायों के होते मेरा उत्तर हाँ में कैसे हो सकता हैं??

इसलिए अब समय आ गया हैं कि-"हम सभी भारतीय एकजुट होकर भारत को एक विकसित और शक्तिशाली देश बनाए। बिल्कुल वैसा ही, जैसा कि-"महात्मा गाँधी, स्वतंत्रता-सेनानियों, और हमारे पूर्वजो ने सोचा था।"

तैयार हैं, इसके लिए?????????????


धन्यवाद।
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Saturday, August 08, 2009

उन्हें तो आप फांसी दे नही सकते...........
इसलिए हमें ही फांसी दे दो।

जी हाँ, आज हर हिन्दुस्तानी की यही पुकार हैं। सन 1947 (आज़ादी) से लेकर आज तक भारत आतंकवाद से झूझ रहा हैं। दुनिया भर में आतंकवाद का जन्म-दाता और जड़ पाकिस्तान हैं। और पाकिस्तान भारत का ही पड़ोसी देश हैं। जाहिर हैं, आतंकवाद से सबसे ज्यादा लंबे समय और सबसे ज्यादा पीड़ित भारत ही हैं।

असल में आतंकवाद को किसी ने देखा, भुगता, और निपटा हैं, तो सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दुस्तान ने ही। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, और अन्य सभी देशो ने तो आतंकवाद का संशिप्त रूप और थोड़े समय तक ही देखा-भोगा हैं। पर भारत तो आतंकवाद के जन्म, विस्तार, फैलाव, आदि का साक्षी रहा हैं। और अभी तक का इतिहास गवाह हैं कि-"भारत ने हमेशा सारे विश्व को इस तरफ़ से आगाह किया हैं, और अपनी ओर से पकिस्तान पोषित आतंकवाद को मुँह-तोड़ जवाब दिया हैं।" यह अलग बात हैं कि-"दुनिया ने हमेशा भारत की आतंकवाद-बारे बात-चेतावनी को नज़र-अंदाज़ किया हैं।"

चाहे वह पंजाब का आतंकवाद हो या जम्मू-कश्मीर का आतंकवाद। चाहे वह पूर्वी राज्यों का नक्सलवाद हो या दक्षिणी राज्यों का लिट्टे, सभी पाकिस्तान के आतंकवाद से ही प्रेरित हैं। दुनिया भर में जितने भी अतिवादी-उग्रवादी संगठन हैं, उन सभी की जड़े किसी ना किसी रूप में पाकिस्तान में हैं।


भारत ने दुनिया के करीब सभी देशो को आतंकवाद के बारे में बहुत कहा, बहुत चेताया। पर दुनिया ने माना ही नही, दुनिया ने इसे पाकिस्तान को बदनाम करने की भारतीय साजिश करार दिया। लेकिन अमेरिका पर 9/11/2004 को हुए बड़े हमले के बाद दुनिया चेती। अब दुनिया को पता चल गया था कि-"भारत आतंकवाद-बारे झूठ नही बोल रहा था, और हिंदुस्तान आतंकवाद से सर्वाधिक पीड़ित देश हैं।"

ना जाने कितने सैनिक और आम लोग इस आतंकवाद की भेंट चढ़ गए, ना जाने कितने बच्चे अनाथ-यतीम हो गए, और ना जाने कितनी औरतें विधवा हो चुकी हैं, इस नामुराद आतंकवाद के कारण। लेकिन अब हिन्दुस्तानी जनता में भारत सरकार के प्रति बेहद गुस्सा हैं। और हो भी क्यों ना??, आख़िर उनका गुस्सा जायज़ भी हैं।

दरअसल, भारत में पहले ही आतंकवाद काफ़ी फैला हुआ हैं, सरकार वैसे भी आतंकवाद-रोधी कानूनों की पालना सख्ती से नही कर रही हैं। ऊपर से पकड़े गए आतंकवादियों को फांसी ना देना, आग में घी का काम कर रहा हैं। मुंबई में पिछले साल 26/11 को होटल ताज में हुए को लेकर काफ़ी गुस्सा हैं। लोगो ने बाकायदा सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी-अपने गुस्से को जाहिर भी किया था। लोगो ने मुंबई हमले में पकड़े गए एक-मात्र जीवित आतंक-कारी को फांसी देने की पुरजोर मांग भी की थी।

आज हर भारतीय-हर हिन्दुस्तानी की यही मांग हैं कि-"पकड़े गए सभी आतंकवादियों को फांसी दी जानी चाहिए।" आम लोगो के सब्र का बाँध टूट रहा हैं, लोगो की सहन-शक्ति जवाब देने लगी हैं। लोग अब हर हाल सरकार और अदालत से उनके लिए फांसी की सज़ा चाहते हैं। लोग अब इसमे और ज्यादा विलंब-देरी नही सह सकते हैं।

वैसे भी अफजल और कसाब का कृत्य क्षमा-योग्य नही हैं। उन्होंने जो किया हैं, उससे तो मुझे लगता हैं कि-"उन्हें नरक में भी स्थान नही मिलेगा।" कसाब का मामला तो ज्यादा पुराना नही हैं, लेकिन अफजल का मामला तो बेहद पुराना हैं। कसाब के मामले में सब कुछ हैं-गवाह हैं, सुबूत हैं, प्रूफ़ हैं। यानी वह सब हैं, जो उसे सज़ा दिलाने के लिए काफी हैं। इसीलिए कसाब का मामला भी पुराना प्रतीत होता हैं।

अगर भारतीय जनता के गुस्से से बचना हैं और हिन्दुस्तान की सरहदों अ-क्षुन्न रखना हैं, तो इन पकड़े गए दोनों आतंक-कारियों को फांसी देनी ही होगी। यही आज हर हिन्दुस्तानी और हर आतंकवाद पीड़ित लोगो की मांग हैं।

मेरी सरकार से अपील हैं कि-"हर आम और आतंकवाद पीड़ित लोगो की भावनाओ का ख्याल रखते हुए, कद्र करते हुए अफजल और कसाब को तत्काल फांसी दी जाए।"

अफजल और कसाब को फांसी देने में हो रही देरी से आम हिन्दुस्तानी खीज उठा हैं। वह अब और इंतज़ार करने की स्थिति में नही हैं। आम आदमी भारत सरकार की इसी लापरवाही-नाकारापन-और लचीलापन को देख कर क्रोधित हैं। सरकार के रवैये से आम आदमी शर्मिन्दा हो रहा हैं। हिन्दुस्तानी जनता ख़ुद को ठगा सा महसूस कर रही हैं कि-"जिनको हमने अपना प्रतिनिधि बना कर संसद भेजा हैं, वह आतंकवाद के ख़िलाफ़ कोई प्रभावी कदम नही उठा रहे हैं।"

आम-जन कि भावनाएं कविता के रूप में कुछ यूँ हैं =
अफजल-कसाब को दे दो फांसी,
अरे अफजल-कसाब को दे दो फांसी।

उनको फांसी मिलने में हो रही देरी से हम शर्मिंदा हैं,
शर्म से गडे जा रहे हैं हम सभी हिन्दुस्तानी।

तुममे में नही हो दम उन्हें फांसी देने का,
तो हमें फांसी पर लटका दो।

तुम्हारे इस लचीलेपन-ढीलेपन-और नाकारेपन को हमारे बाद वाले सदा याद रखेंगे,
अबकी दफा आना हमारे दर पर वोट मांगने।

हम सब पर माटी का क़र्ज़ हैं,
हम वह भली-प्रकार फांसी पर लटक कर चुका देंगे।

धन्यवाद।


FROM =

CHANDER KUMAR SONI,

L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,

SRI GANGANAGAR-335001,

RAJASTHAN, INDIA.

CHANDERKSONI@YAHOO.COM

00-91-9414380969

CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Friday, July 31, 2009

दूध मांगोगे-खीर देंगे, कश्मीर मांगोगे-चीर देंगे।
जरा सोचिये-क्या आपकी ऐसी नियत हैं????

आज सारा देश कारगिल युद्घ की जीत का जश्न जोर-शोर से मना रहा हैं। आज कारगिल युद्घ को जीते 10 साल पुरे हो चुके हैं। कश्मीर घाटी पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया था। यह पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित भारत के प्रति पूर्ण युद्घ नही था, बल्कि पाकिस्तानी सेना ने आतंकवादियों का सहारा लेकर छदम युद्घ छेड़ा था। लेकिन पाकिस्तान की यह एक बड़ी भूल थी, उसकी उम्मीदों के विपरीत भारतीय सेना पूरी तरह से सावधान-चौकस थी।

यह पाकिस्तान द्वारा भारत के ख़िलाफ़ छेड़ा गया एक छदम युद्घ था। क्योंकि पाकिस्तान पहले भी कई बार सीधे युद्घ में मुँह की खा चुका हैं, इसलिए उसने आतंकवादी संगठनो और अपनी फौज को साथ मिलाकर भारत के ख़िलाफ़ छदम युद्घ छेड़ा। भारतीय सेना ने भी तुंरत-बिना विलंब कार्रवाई करते हुए दुश्मनों के छक्के छुडा दिए।

इस छदम युद्घ को भी बहुत जल्दी ही जीत कर भारत और भारतीय सेना ने भी पाकिस्तान को करारा जवाब दे दिया कि-"पूर्ण युद्घ के साथ-साथ अब तुम छदम युद्घ भी जीतने योग्य नही रहे।" इस युद्घ में सेना का सभी भारतीयों ने पूरा साथ दिया था। सरहद तक आम आदमियों ने सेना का कंधे से कंधा मिला कर साथ दिया था।

कारगिल युद्घ में सेना के साथ-साथ हर हिन्दुस्तानी ने भाग लिया था, चाहे वह किसी भी रूप में हो। इसी कारगिल युद्घ की ज़बरदस्त जीत पर बहुत सी फिल्मे भी बनी थी। करीब सभी की सभी फिल्मे हिट भी रही। इन सभी फिल्मो ने फ़िल्म से जुड़े सभी लोगो की झोली भर दी थी। कारगिल युद्घ पर बनी फिल्मो के डायलोग तो दर्शको की जुबान पर चढ़ गए थे।

ऐसा ही एक डायलोग था-"दूध मांगोगे-खीर देंगे, कश्मीर मांगोगे-चीर देंगे।" जहाँ तक मुझे याद हैं, यह वह डायलोग था, जो लोगो की जुबान पर सबसे ज्यादा चढा था। मुझे तो लगता है कि-"इसी डायलोग की वजह से वह फ़िल्म हिट गई थी।"

वैसे, दिल से एक बात कहूं???? यह जो डायलोग हैं-"दूध मांगोगे-खीर देंगे, कश्मीर मांगोगे-चीर देंगे।" हम सब, आप और में, हर हिन्दुस्तानी पर बिल्कुल सटीक बैठता हैं। इस डायलोग की सार्थकता को देखकर कई बार तो ऐसा महसूस होता हैं, कि-"यह डायलोग फ़िल्म में, हम सभी भारतीयों की प्रवृत्ति-आदत-मानसिकता को देख कर डाला गया हैं।"

जी हाँ, मैं बिल्कुल सही कह रहा हूँ। मेरी बात हो सकता हैं, आप सबको कड़वी लग रही हो। पर हैं सत्य, और वैसे भी सत्य कड़वा ही होता हैं। सच्चाई कभी भी आसानी से हज़म नही होती हैं। अगर यकीन / विश्वास नही हो रहा हो, तो ज़रा निम्नलिखित पढिये =

फ़िल्म में तो एक सैनिक कहता हैं कि-"दूध मांगोगे-खीर देंगे, कश्मीर मांगोगे-चीर देंगे।" जबकि असल जिंदगी में हम सब हिन्दुस्तानी, आप और मैं, यह कहने का साहस भी नही रखते हैं। हम सभी भारतीय लोग फिल्मों का अंधा-धुंध अनुकरण करते हैं, पर बहुत से मामलो में नकारात्मक अनुकरण।

पहले उदाहरण के तौर पर, इस फ़िल्म में दूध के बदले खीर देने की बात कही गई हैं, जोकि बिल्कुल सही बात हैं। पुरी दुनिया में सबसे ज्यादा और सबसे बढिया मेहमान-नवाजी हम भारतीय ही करते हैं। मेहमान-नवाजी के मामले में, मेहमान ही भगवान् हैं, हम सब आदर्श हिन्दुस्तानियों का ध्येय-वाक्य हैं। मेहमानों की सेवा करने में हम भारतीयों का कोई सानी नही हैं। सारी दुनिया जानती हैं कि-"हम भारत के लोग मेहमानों कि खातिर ख़ुद खाली पेट सो सकते हैं, लेकिन मेहमानों को भूखा नही सोने दे सकते।" मेहमान-नवाजी की इससे बेहतरीन नजीर और क्या हो सकती हैं????

दूसरे उदाहरण के तौर पर, इस फ़िल्म में कश्मीर मांगने पर चीर देने कि बात कही गई हैं। चीर-फाड़ करना भी बिल्कुल सही बात हैं। जब कोई हक़-अधिकार की चीज़ छीनता हैं, तो भी गुस्सा आना स्वाभाविक ही हैं। अपने हक़ की चीज़ की हिफाजत के लिए चीर-फाड़ करना बहुत जरुरी बात हैं।

इन दोनों उदाहरणों की बात बिल्कुल सही हैं, इसमे कुछ भी नकारात्मकता वाली बात नही हैं। लेकिन इसमे नकारात्मकता वाली बात हैं, तभी तो मैं अब आपका ध्यान इनमे मौजूद नकारात्मकता की ओर दिलाना चाहता हूँ। जरा नीचे ध्यान दीजिये =
01. फ़िल्म की तरह क्या आप दूध के बदले खीर देने की नियत रखते हैं?? बिल्कुल नही, अब आपका दिल इतना बड़ा कहाँ रह गया हैं, जो आप दूध लेकर खीर दे?? आज अपनी सबकी नियत इतनी खराब हो गई हैं कि-"हम दूध के बदले पानी भी ना दे।" क्या मैं ग़लत कह रहा हूँ??????
02. फ़िल्म की तरह आप चीर जरूर देंगे। क्यों चीरेंगे ना?, बोलिए। आख़िर आप फ़िल्म की दूसरी बात का अनुकरण जरूर करेंगे। आपको अपनी चीज़ इतनी प्यारी लगने लगी हैं कि-"आप उस चीज़ को अपने पास रखने के लिए किसी को भी चीर-फाड़ सकते हैं।" आपका दिल इतना छोटा हो गया हैं, कि अब कोई आपकी चीज़ को छु भी ले, तो आप उसे चीर डाले।

अभी भी वक्त हैं, इस तरफ़ सोचिये। आप ऐसे क्यों, कैसे, कबसे, ओर किस हद तक हो गए हैं?? ना तो आप दूध के बदले खीर दे सकते हैं और नाही आपमें इतनी सहन-शक्ति हैं कि आप किसी को बिना चीरे-फाड़े रह सके। ऐसे कैसे चलेगा??? जब आप खीर ही नही दे सकते हैं तो आप किसी को चीर कैसे सकते हैं?

आपने जब किसी को दूध के बदले खीर देना ही नही सीखा हैं, तो आपने यह कहाँ से सीख लिया कि- आप किसी को चीर डालेंगे????????? यह तो आपका हक़-अधिकार ही नही हैं। बहुत पुरानी कहावत हैं, दादी-नानी के जमाने की, कहते हैं ना-"जो प्यार करता हैं, वो मार भी सकता हैं।" तो आप कब मानेंगे इस सत्य बात को??

इसलिए इस बारे में मेरा आप सबको एक यही सुझाव-सलाह है कि-"पहले आप सबको दूध के बदले खीर देने कि नियत रखिये / आदत पालिए। फिर देखिये कि-"लोग कैसे आपके हक़ / अधिकार के लिए, आपकी जगह ख़ुद आकर, दुश्मनों को चीर-फाड़ डालते हैं।"

धन्यवाद।
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00919414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM