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धन्यवाद अमेरिका।
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मैं एक ऐसी बात के लिए अमेरिका का धन्यवाद प्रकट कर रहा हूँ जोकि आप सोच भी नहीं सकते। तमाम राजनितिक, कूटनीतिक, आर्थिक, द्विपक्षीय, विदेश मंत्रालय, मुद्रा-विनिमय, आदि प्रचलित और आम मुद्दों से हट कर मैं अमेरिका का एक ख़ास कारण से शुक्रिया अदा कर रहा हूँ।
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मैं पीटा (पीपल फॉर दी एथिकल ट्रीटमेंट फॉर एनिमल्स) का सदस्य हूँ। वो भी तब से जब मैं स्कूल में पढता था और मेरी उम्र महज सोलह-सत्रह साल ही रही होगी। ये उस वक़्त कि बात हैं जब मेरे उम्र के किसी भी बच्चे को इन सबके बारे में कुछ ज्ञान ही नहीं होता था। मेरे पास करीब सात सालो से पीटा के ईमेल्स आते रहते हैं। और मैं करीब 99% तक ईमेल्स पर उचित कार्रवाही करता हूँ। हाल ही में आये एक ईमेल से मेरा मन अमेरिका के प्रति श्रद्धावनत को गया साथ ही भारत के प्रति थोड़ा गुस्सा, थोड़ी नाराजगी का भाव उमडा।
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उस ईमेल में एक घटना का विस्तार से वर्णन लिखा हुआ था। उस ईमेल में सभी सबूत भी पेश किये गए थे। उस ईमेल में एक खबर लिखी थी = अमेरिका के न्यूयार्क में एक गाडी वाला अपने गाडी में एक कुत्ते को लेकर बाज़ार शोपिंग करने गया था, गाडी के सभी शीशे पूरी तरह से चढे हुए थे। तभी गर्मी के कारण कुत्ते कि तबियत बिगड़ गईं और वो बुरी तरह से हांफने और गाडी के अन्दर बेचैनी से घूमने लगा। आसपास के लोगो ने तत्काल पुलिस को खबर दी। पुलिस ने भी मालिक का पता ना चलने पर गाडी के शीशे को तोड़ा और जानवरों के अस्पताल की को एम्बुलेंस बुलाकर कुत्ते को भेजा।
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हालांकि उस ईमेल में कुत्ते की मौत की दुखद खबर के साथ एक अच्छी बात भी लिखी हुई थी। वो ये की पुलिस ने उस गाडी के मालिक/ड्राइवर को लापरवाहीपूर्वक कुत्ते की ह्त्या करने के जुर्म में छ: महीने की सज़ा और एक हज़ार डॉलर (करीब पैंतालिस से पचास हज़ार रूपये) का जुर्माना भी लगाया। मुझे उस ईमेल को पढ़कर बहुत ख़ुशी हुयी। मुझे अमेरिका की पुलिस की तत्परता, वहाँ की अदालत द्वारा तुरंत फैसला देना और जानवरों के लिए अलग से हॉस्पिटल होना और एम्बुलेंस द्वारा कुत्ते को ले जाना, आदि बातों ने काफी प्रभावित किया। मुझे ख़ुशी के साथ-साथ भारत पर गुस्सा और नाराजगी भी आई। कारण =
भारत में बड़ी संख्या में जानवर (सिर्फ कुत्ते ही नहीं बिल्ली, खरगोश, जैसे कई पालतू जानवर भी) बंद गाडी में भीषण गर्मी के कारण मारे जाते हैं।
यहाँ कोई कुछ बोलता ही नहीं।
यहाँ आम आदमी इस सम्बन्ध में जागरूक ही नहीं हैं।
यहाँ की पुलिस इंसान को ही कुछ नहीं समझती कुत्ते (या अन्य जानवर) को क्या समझेंगी??
इंसानों की मौत पर भी पुलिस देरी से पहुँचती हैं, वो भी मामला बढ़ने या ज्यादा बुलाने पर।
यहाँ की एम्बुलेंस आदमी के काम आ जाए यही काफी हैं, जानवर के लिए तो हॉस्पिटल ही नहीं हैं।
हैं, पर वो भी रामभरोसे ही हैं। इंसान ही हॉस्पिटल में दाखिल हो जाए गनीमत हैं।
वहाँ तो कुत्ते को भी एम्बुलेंस में डालकर हॉस्पिटल ले जाया जाता हैं।
यहाँ चाहे जितने जानवरों की ह्त्या करदो, कोई क़ानून, अदालत, या पुलिस कुछ नहीं करेगी।
वहाँ गलती से ही कुत्ते के मरने पर भारी सज़ा और जुर्माना भुगतना पड़ गया।
वहाँ भी मुर्गे, बकरे, पाडे, भैंस, गाय, आदि जानवर भारत के मुकाबले कई गुना ज्यादा कटते हैं, लेकिन फिर भी एक कानूनी तरीके से।
भारत में तो इंसानों को मारने पर भी जवानी से बूढ़े होने पर सज़ा मिलती हैं, कई बार तो मरने के बाद भी।
वहाँ अदालत और पुलिस दोनों ने त्वरित गति से सारे काम पुरे किये, और अपराधी को सज़ा दिलवाई।
महावीर और बुद्ध के देश में क्या जानवरों पर अत्याचार ख़तम नहीं हो सकता??
क्या ऐसा भारत में हो सकता हैं???
अगर नहीं, तो क्यों नहीं हो सकता???
और अगर हाँ, तो कब???
आदि-आदि।
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बहुत सी बातें और भी मन में उठ रही हैं, लेकिन फिर कभी।
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धन्यवाद।
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FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
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SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
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