मेरे इस ब्लॉग का उद्देश्य =

मेरे इस ब्लॉग का प्रमुख उद्देश्य सकारात्मकता को बढ़ावा देना हैं। मैं चाहे जिस मर्ज़ी मुद्दे पर लिखू, उसमे कही ना कही-कोई ना कोई सकारात्मक पहलु अवश्य होता हैं। चाहे वह स्थानीय मुद्दा हो या राष्ट्रीय मुद्दा, सरकारी मुद्दा हो या निजी मुद्दा, सामाजिक मुद्दा हो या व्यक्तिगत मुद्दा। चाहे जो भी-जैसा भी मुद्दा हो, हर बात में सकारात्मकता का पुट जरूर होता हैं। मेरे इस ब्लॉग में आपको कही भी नकारात्मक बात-भाव खोजने पर भी नहीं मिलेगा। चाहे वह शोषण हो या अत्याचार, भ्रष्टाचार-रिश्वतखोरी हो या अन्याय, कोई भी समस्या-परेशानी हो। मेरे इस ब्लॉग में हर बात-चीज़ का विश्लेषण-हल पूर्णरूपेण सकारात्मकता के साथ निकाला गया हैं। निष्पक्षता, सच्चाई, और ईमानदारी, मेरे इस ब्लॉग की खासियत हैं। बिना डर के, निसंकोच भाव से, खरी बात कही (लिखी) मिलेगी आपको मेरे इस ब्लॉग में। कोई भी-एक भी ऐसा मुद्दा नहीं हैं, जो मैंने ना उठाये हो। मैंने हरेक मुद्दे को, हर तरह के, हर किस्म के मुद्दों को उठाने का हर संभव प्रयास किया हैं। सकारात्मक ढंग से अभी तक हर तरह के मुद्दे मैंने उठाये हैं। जो भी हो-जैसा भी हो-जितना भी हो, सिर्फ सकारात्मक ढंग से ही अपनी बात कहना मेरे इस ब्लॉग की विशेषता हैं।
किसी को सुनाने या भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए मैंने यह ब्लॉग लेखन-शुरू नहीं किया हैं। मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से पीडितो की-शोषितों की-दीन दुखियों की आवाज़ पूर्ण-रूपेण सकारात्मकता के साथ प्रभावी ढंग से उठाना (बुलंद करना) चाहता हूँ। जिनकी कोई नहीं सुनता, जिन्हें कोई नहीं समझता, जो समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं हैं, जो अकेलेपन-एकाकीपन से झूझते हैं, रोते-कल्पते हुए आंसू बहाते हैं, उन्हें मैं इस ब्लॉग के माध्यम से सकारात्मक मंच मुहैया कराना चाहता हूँ। मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से उनकी बातों को, उनकी समस्याओं को, उनकी भावनाओं को, उनके ज़ज्बातों को, उनकी तकलीफों को सकारात्मक ढंग से, दुनिया के सामने पेश करना चाहता हूँ।
मेरे इस ब्लॉग का एकमात्र उद्देश्य, एक मात्र लक्ष्य, और एक मात्र आधार सिर्फ और सिर्फ सकारात्मकता ही हैं। हर चीज़-बात-मुद्दे में सकारात्मकता ही हैं, नकारात्मकता का तो कही नामोनिशान भी नहीं हैं। इसीलिए मेरे इस ब्लॉग की पंचलाइन (टैगलाइन) ही हैं = "एक सशक्त-कदम सकारात्मकता की ओर..............." क्यूँ हैं ना??, अगर नहीं पता तो कृपया ज़रा नीचे ब्लॉग पढ़िए, ज्वाइन कीजिये, और कमेन्ट जरूर कीजिये, ताकि मुझे मेरी मेहनत-काम की रिपोर्ट मिल सके। मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आप सभी पाठको को बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद, कृपया अपने दोस्तों व अन्यो को भी इस सकारात्मकता से भरे ब्लॉग के बारे में अवश्य बताये। पुन: धन्यवाद।

Monday, July 26, 2010

.

प्रोत्साहित किया क्या??

.

ना जाने क्यों लोग किसी को प्रोत्साहित करने को अपनी बेईज्ज़ती समझते हैं??? पता नहीं लोगो की क्या फितरत हैं कि-"प्रोत्साहित करने में तो सबसे पीछे रहते हैं, लेकिन हतोत्साहित करने को सबसे आगे रहते हैं??? मानो हतोत्साहित यूनियन के प्रधान हो।" मैं हमेशा अच्छे कार्य करने वालो को, नेकी या ईमानदारी या सच्चाई के रास्ते पर चलने वाले को यथासंभव प्रोत्साहित करता हूँ। अगर किसी कारणवश, या मजबूरीवश किसी को प्रोत्साहित नहीं भी कर पाता हूँ तो कम से कम हतोत्साहित तो कदापि नहीं करता।

.

कुछ उदाहरण =

1. जब कोई कर/टैक्स की चोरी नहीं करता हैं, तो आप उसे प्रोत्साहित करने की बजाय हतोत्साहित करते हैं। इतना ही नहीं आप उसे करचोरी करने के कई उपाय भी बता डालते हैं।

2. जब कोई सावधानीपूर्वक, नियमपूर्वक, निर्धारित रफ़्तार से वाहन (दुपहिया, तिपहिया, या चौपहिया) चलाता हैं, तो आप उसे प्रोत्साहित करने की बजाय अनगिनत गालियाँ निकालते हैं। जैसे--कितना धीरे चला रहा हैं, चलाना ही नहीं आता, सड़क जाम करके रख दी, गाडी थोड़ी तेज़ चला, कछुआ चाल से चल रहा हैं, आदि-आदि।

3. जब कोई सड़क के बीचो-बीच घायल-चोटिल पडा हो और कोई भलामानस उसे संभाले तो आप मदद करने की बजाय उसे हतोत्साहित करते हैं। ये कहकर--छोड़ ना क्यों पंगे में पड़ रहा हैं??, क्यों पुलिस के लफड़े में आने पर तुला हैं??, ये रोज़-रोज़ का काम हैं तू चल एम्बुलेंस आ जायेगी, आदि-आदि।

4. जब कोई बिजली की चोरी नहीं करता हैं तो आप उसे प्रोत्साहित करने की बजाय हतोत्साहित करते हैं। ये कहकर--बिजली महेंगी हो गयी हैं क्यों पूरा बिल भरते हो??, हमें देखो हम ऐश कर रहे हैं, या डरो मत बिजली निगम के अधिकारियों से मेरी सेटिंग हैं कोई कुछ नहीं बोलेगा, या कुण्डी मैं ला देता हूँ या लगा देता हूँ, आदि-आदि।

5. जब कोई पानी की वेस्टेज करता हैं तो भी आप उसको पानी की कीमत बताने की बजाय उसे प्रोत्साहित करते हैं। जैसे-वाह गाडी चमक गयी हैं, आप पुरानी गाडी को भी नयी बताने लगेंगे, बढ़िया हैं सड़क की मिटटी दूकान में नहीं घुसेंगी, या पानी की कोई कमी नहीं हैं करो जैसे मर्जी इस्तेमाल, आदि-आदि।

यानी प्रोत्साहन भी नकारात्मक बात को। प्रोत्साहन सकारात्मकता को ही देना चाहिए। याद रखिये--अगर आप नकारात्मकता को प्रोत्साहित कर रहे हैं तो आप सीधे-सीधे अच्छाई को हतोत्साहित कर रहे हैं।

.

याद रखिये--बूँद-बूँद से ही घड़ा भरता हैं। उसी तरह एक-एक व्यक्ति के सम्मिलित प्रयास से ही मकसद-लक्ष्य हल हो सकते हैं। अगर आप किसी को उसकी सच्चाई, ईमानदारी, नेकी या किसी अन्य अच्छाई-भलाई के लिए प्रोत्साहित नहीं कर सकते तो कम से कम उन्हें हतोत्साहित करके उनका हौसला तो मत डिगाइए।

.

तो प्रोत्साहित किया क्या??

.

धन्यवाद।

FROM =

CHANDER KUMAR SONI,

L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,

SRI GANGANAGAR-335001,

RAJASTHAN, INDIA.

CHANDERKSONI@YAHOO.COM

00-91-9414380969

CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Monday, July 19, 2010

.

कुछ नकारात्मकता भी आवश्यक।

.

अरे नहीं-नहीं, मैं किसी को नकारात्मक विचारों को अपनाने या सकारात्मकता को छोड़ने को नहीं कह रहा हूँ। मैं तो कुछ हद तक नकारात्मकता को सही ठहरा रहा हूँ।

.

अब आप कहेंगे, कि-"ये क्या बात हुई??, मेरा ब्लॉग सकारात्मकता का पर्याय रहा हैं, मैंने अपने ब्लॉग में सकारात्मकता को प्रोत्साहित किया हैं। आज क्या हो गया मुझे??, जो मैं नकारात्मकता को कुछ हद तक जायज़-उचित ठहरा रहा हूँ।" जी नहीं, मुझे कुछ नहीं हुआ हैं, और नाही मैं अपने असल और आधारभूत मुद्दे (सकारात्मकता) से भटक गया हूँ। मैं आज भी सकारात्मकता को लेकर दृढ़ संकल्पित-अडिग हूँ, लेकिन कुछ हद तक (ज्यादा नहीं) नकारात्मकता भी आवश्यक हैं। कैसे??? अब ये जानिये।

.

एक = जब हम कोई गाडी या अन्य कोई नया वाहन चलाना सीखते हैं, तो हमारे मन में कई तरह के अंत-शंट, उलटे-सीधे ख्याल (गिर जाना, चोट लगना, या एक्सीडेंट) आते हैं, जिसे हम भुलाकर कोई गाडी चलाना सीख पाते हैं। दोस्तों, वैसे तो ऐसे ख्यालो को नकारात्मक मानते हुए बचने की सलाह दी जाती हैं। लेकिन, ये बुरे-नकारात्मक ख्याल ही असल में हमारे गुरु साबित होते हैं। अगर कोई इन सबके बारे में नहीं सोचेगा, तो निश्चित रूप से वो गिरेगा या चोट खायेगा। संभावित खतरे का आभास होगा तभी तो प्रशिक्षु सावधानी बरतते हुए वाहन चलाना सीख पायेगा।

दो = जब हम कोई नया व्यवसाय-व्यापार शुरू करते हैं, तो हमारे जेहन-मन में कई आशंकाएं (काम-धंधा चलने या ग्राहकी आने, आदि) भी पनपने लगती हैं। और जैसे ही ये आशंकाएं हमारे मन में उभरने लगती हैं, तभी से हम उन आशंकायों को झुठलाने-निर्मूल साबित करने की कोशिशे करने लगते हैं। सोचिये, अगर आदमी के मन में व्यापार के फ़ैल होने, या ग्राहक के ना आने, या प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने, आदि के नकारात्मक विचार नहीं आयेंगे तो वो बचाव के उपाय कैसे और क्यों करेगा???

तीन = जब कोई शेयर बाज़ार, म्युचुअल फंड, या अन्य कही अपना पैसा लगाता-निवेश करता हैं, तो वहाँ भी मन में नकारात्मक ख्याल (कितनी रिटर्न आएगी?, पैसा डूबेगा तो नहीं?, पैसा बढ़ने की बजाय घटेगा तो नहीं, या कही मैं जोखिम तो नहीं ले रहा?? आदि-आदि) आते हैं। लेकिन, नकारात्मकता को कही पीछे छोड़ते हुए निवेशक पूरी सुरक्षा-गारंटी के साथ अपना पैसा लगाता हैं। अगर ये ख्याल ना आये तो निवेशक अव्वल तो पैसा ही नहीं लगाएगा और अगर लगा भी लिया तो दुसरे को डूबता देख या तो मुडके शेयर बाज़ार की तरफ रुख ही नहीं करेगा या फिर आत्म-ह्त्या जैसा घातक कदम उठा बैठेगा।

.

दोस्तों, उपरोक्त उदाहरणों मैं आप या आपका कोई जानकार भी हो सकता हैं। लेकिन, ये उदाहरण बेहद आम हैं। हर वक़्त सकारात्मकता उचित नहीं हैं, कुछ हद तक नकारात्मकता भी आवश्यक हैं, बशर्ते नकारात्मकता आप पर हावी ना हो। ज़िन्दगी का कोई भी क्षेत्र हो, नकारात्मक और सकारात्मक दोनों ही पहलु आवश्यक हैं। जीवन में दोनों ही बातें होनी चाहिए लेकिन पलड़ा-वजन सकारात्मकता का ही भारी होना चाहिए।

.

कभी-कभी अनर्गल-नकारात्मक भी सोचना चाहिए, लेकिन सिर्फ उतना जितना आवश्यक हो। हद से ज्यादा या सकारात्मकता से ज्यादा सोचना निश्चित रूप से नुकसानदेह हैं। हर विषय में सोचना जरुरी हैं।

.

धन्यवाद।

FROM =

CHANDER KUMAR SONI,

L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,

SRI GANGANAGAR-335001,

RAJASTHAN, INDIA.

CHANDERKSONI@YAHOO.COM

00-91-9414380969

CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Monday, July 12, 2010

.

कहाँ गए प्राचीन खेल???

.

गिल्ली डंडा, जंजीर, छुपनछुपाई, लूडो, सांप-सीढ़ी, कैरम, पकड़म-पकडाई, मार दडी, चौसर, शतरंज, कुश्ती, कबड्डी, खोखो, दौड़, आदि-आदि सभी प्राचीन खेल आज दुर्लभ (ग्रामीण क्षेत्रो को छोड़कर) होते जा रहे हैं। आज इन पुराने (लेकिन आधुनिक युग की परम-आवश्यकता) खेलो की तरफ से लोगो का रुझान दिन-प्रतिदिन घटता जा रहा हैं। युवापीढ़ी और किशोर वर्ग की रूचि भी इन खेलो की बजाय अन्य और आज के खेलो में ज्यादा नज़र आ रही हैं।

.

खेल कोई भी बुरा नहीं हैं, किसी भी खेल (चाहे वो देश का हो या विदेश का) को खेलने में कोई बुराई या आपत्ति नहीं हैं। मसला ये हैं कि-"इन आजकल के खेलो में प्राचीन खेलो जैसी बात नहीं हैं। जो गुण, जो शिक्षा, प्राचीन-पुराने खेलो में हैं, वो आजकल के आधुनिक खेलो में नहीं हैं।" आजकल के युवाओं की, किशोरवय उम्र के लोगो की रूचि क्रिकेट, बास्केटबॉल, फुटबॉल, रग्बी, वॉलीबॉल, जूडो-कराटे, कुंग फु, वीडियो गेम, आदि खेलो में ही रह गयी हैं।

.

ये बहुत ही गलत बात और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हैं। आप पाठक-गण इसे दुर्भाग्य माने या ना माने लेकिन मैं इसे मानता हूँ, और देर सवेर आप भी मानेंगे। जो दिमागी-शारीरिक मेहनत, जो कौशल, जो रणनीति, जो शिक्षा, इन आधुनिक खेलो में तलाशी जा रही हैं, वो दरअसल इनमें प्राचीन खेलो में आज भी मौजूद हैं।

.

व्यक्तिगत रूप से भले ही ये आधुनिक खेल अच्छे हो लेकिन सामाजिक रूप से कतई अच्छे नहीं माने जा सकते। कुछ उदाहरण =

01. जूडो-कराटे और कुंग फु आत्म-रक्षा और व्यायाम के लिए अच्छे जरूर हैं लेकिन कुश्ती और कबड्डी जितने नहीं। कुछ लोग इन दोनों में फर्क समझते हैं, लेकिन वे भूल जाते हैं कि-"इन दोनों खेलो का मकसद आत्म-रक्षा ही हैं।" लेकिन इन दोनों खेलो में दिन-रात का फर्क हैं। जिस शारीरिक दमखम और फुर्ती का परिचय कुश्ती-कबड्डी में देना होता हैं, वो जूडो-कराटे, और कुंग फु में कहाँ??

02. चौसर और शतरंज में जो दिमागी कौशल, सोच-समझ और तीव्र बुद्धि का प्रदर्शन होता हैं वो आजकल के विडियो गेम में कहाँ?? वीडियो गेम में दिमाग लगाना होता हैं, लेकिन तुलनात्मक रूप से कम। ये दोनों (चौसर और शतरंज) बौद्धिक खेल हैं, इन खेलो से धैर्य, एकाग्रता, और अनुशासन में बढ़ोतरी होती हैं।

03. जंजीर, छुपनछुपाई, दौड़, खोखो, और गिल्ली डंडा, आदि खेलो में जो भागना-बचना, छुपना-ढूंढना, और हाथ को कसकर मजबूती से पकड़कर भागना, आदि होता हैं वो आजकल के खेलो में कहाँ हैं??? क्रिकेट, बास्केटबॉल, फुटबॉल, रग्बी, वॉलीबॉल, आदि आधुनिक खेल एकाकी भावना पैदा करते हैं।

04. क्रिकेट, बास्केटबॉल, फुटबॉल, रग्बी, वॉलीबॉल, आदि खेल परोक्ष रूप से स्वहित साधने की शिक्षा देते हैं। इनमें शारीरिक मेहनत भी काफी कम होती हैं। जो गेंदबाज़ हैं या बल्लेबाज़ हैं वो ही क्रियाशील रहता हैं बाकी सब तो खेल का हिस्सा होते हुए भी मूक-दर्शक बने रहते हैं। जबकि जंजीर, छुपनछुपाई, दौड़, खोखो, और गिल्ली डंडा, आदि खेलो में सभी खिलाड़ी ना सिर्फ क्रियाशील रहते हैं वरन अहम् रोल भी निभाते हैं।

05. क्रिकेट में सिर्फ रन बनाने और आउट करने का ही महत्तव हैं, जो बल्लेबाज़ हैं वो रन को ही अहमियत देता हैं और जो गेंदबाज़ या फिल्डर हैं वो कैच करने तथा आउट करने को ही महत्तव देता हैं। सब का रोल एक समय में एक बार ही होता हैं। एक गेंदबाज़ और दो बल्लेबाजों के अलावा सभी खिलाड़ी (फिल्डर-क्योंकि वे बल्लेबाज़ का हाथ और गेंद की दिशा को देखकर ही एक्टिव होते हैं) करीब-करीब मूक-दर्शक ही होते हैं। लेकिन जंजीर, छुपनछुपाई, दौड़, खोखो, और गिल्ली डंडा, आदि खेलो में सभी का रोल बराबर और महत्तवपूर्ण होता हैं।

06. जंजीर, छुपनछुपाई, दौड़, खोखो, और गिल्ली डंडा, आदि खेलो में जो खेल भावना और टीम के प्रति फ़र्ज़ होते हैं वो आजकल के खेलो में कहाँ?? जो दिमागी कौशल का इस्तेमाल पुरातन और प्राचीन खेलो में होता हैं वो आजकल के खेलो में कहाँ होता हैं?? रणनीति आजकल के आधुनिक खेलो में भी बनाई जाती हैं लेकिन उसमे वो बात नहीं होती हैं।

07. खोखो को ही लीजिये हर खिलाड़ी एक्टिव रहता हैं, भागने-पकड़ने, और उठने-बैठने के इस खेल में अच्छी-खासी कसरत हो जाती हैं। क्या ऐसी कसरत आजकल के, आधुनिक खेलो में हैं??? बस खड़े रहो और जब गेंद पास आये तो थोड़ा सा हिल-डुल लो। वो भी मन हो तब। ये भी भला कोई आधुनिक खेल हुए???

08. आजकल के खेलो में आपसी सामंजस्य का नितांत अभाव हैं, जबकि प्राचीन खेलो में आपसी सदभाव, आपसी सहयोग, आपसी प्रेम-प्यार, भाईचारा, और आपसी तालमेल की भावना कूट-कूट कर भरी हुई हैं। आजकल के खेल मनोरंजक और अच्छे जरूर हो सकते हैं लेकिन प्राचीन खेलो के मुकाबले नहीं।

09. वीडियो गेम खेल-खेल कर बच्चे मोटे और थुल-थुल होते जा रहे हैं, साथ ही मोटापा-जनित रोगों से भी घिरते जा रहे हैं। साथ-साथ आँखों को भी नुकसान पहुंचा रहा हैं, जैसे धुंधला दिखना, आँखें दुखना, आँखें भारी होना, आँखों का पानी सूखना, आदि-आदि। अगर वीडियो गेम की बजाय अन्य घरेलु खेल (सांप-सीढ़ी, लूडो, चौसर, शतरंज, और कैरम, आदि) खेले जाए तो कम से कम आँखें तो बचेगी।

10. वीडियो गेम में खेलने वाला अपना ध्यान सिर्फ मोबाइल या कम्पयूटर में लगा कर रखता हैं, जबकि अन्य घरेलु खेलो में खिलाड़ी ना सिर्फ एक्टिव-क्रियाशील रहता हैं बल्कि उसका अन्य खिलाड़ियों के साथ संवाद भी कायम रहता हैं। जबकि वीडियो गेम में उसका किसी से, किसी भी रूप में संवाद नहीं होता हैं। इस तरह वीडियो गेम सामाजिक रूप से भी तोड़ रहा हैं। जबकि घरेलु खेलो से खिलाड़ी विशेषकर बच्चो का जुडाव समाज से होता हैं।

11. याद रखिये--"जितने भी आधुनिक, आजकल के खेल हैं उन सभी खेलो में खिलाड़ियों और मैदानों का पैमाना-साइज तय हैं, जिसे घटाया या बढाया नहीं जा सकता। जबकि पुराने खेलो की ऐसी कोई शर्त-बाध्यता नहीं हैं।" जब आपका बच्चा आज के, आधुनिक खेलो को खेल रहा हो तो समझ जाइए कि-"आपका बच्चा आसानी से मिलनसार, घुलने-मिलने वाला, सामाजिक नहीं बन सकता क्योंकि वो एक निश्चित सीमा से अधिक खिलाड़ियों को शामिल नहीं कर सकता।" यानी एक निश्चित सीमा के बाद वो किसी को अपना दोस्त नहीं बना सकता क्योंकि उसे जरुरत ही नहीं होगी।"

12. जबकि अगर आपका बच्चा पुरातन-पारंपारिक खेलो को खेल रहा हो तो बेफिक्र हो जाइए। आपका बच्चा सामाजिक भी होगा, मिलनसार भी होगा, देश-समाज-शहर के प्रति जागरूक भी होगा, और निश्चित रूप से उसका भविष्य सुखद भी होगा। क्योंकि पारम्पारिक खेलो में जितने खिलाड़ी-सदस्य होते हैं, उतना ही आनंद-ख़ुशी की अनुभूति होती हैं, कोई बाध्यता-कोई पाबंदी ना होने के कारण आपका बच्चा सहज रूप से उत्साहपूर्वक अन्य-अनजान (गली-मोहल्ले, अन्य कक्षायों आदि के) बच्चो को भी शामिल करना चाहेगा। जोकि, उसके सामाजिक दायरे को बढाते हुए उसे सामाजिकता का पाठ पढ़ायेगा।

13.आदि-आदि।

.

सबसे बड़ी और महत्तवपूर्ण बात-->"खेल कोई भी बुरा नहीं हैं, किसी भी खेल (चाहे वो देश का हो या विदेश का) को खेलने में कोई बुराई या आपत्ति नहीं हैं। जो दिमागी-शारीरिक मेहनत, जो कौशल, जो रणनीति, जो शिक्षा, इन आधुनिक खेलो में तलाशी जा रही हैं, वो दरअसल इनमें प्राचीन खेलो में आज भी मौजूद हैं। व्यक्तिगत रूप से भले ही ये आधुनिक खेल अच्छे हो लेकिन सामाजिक रूप से कतई अच्छे नहीं माने जा सकते। अगर आप अपने बच्चो को सुखद भविष्य देना चाहते हैं, अगर आप अपने बच्चो को मिलनसार और सामाजिक बनाना चाहते हैं, अगर आप अपने बच्चो को देश-समाज-शहर के प्रति जागरूक करना चाहते हैं, तो अपने बच्चो को पारंपरिक, प्राचीन, पुरातन खेलो की तरफ मोड़िये, उन्हें इन खेलो में निहित फायदों और गुणों से अवगत कराते हुए, इन खेलो को खेलने की प्रेरणा दीजिये।"

.

अब आपके बच्चो का, आपकी पीढ़ियों का फैसला आपके हाथो में हैं।

.

FROM =

CHANDER KUMAR SONI,

L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,

SRI GANGANAGAR-335001,

RAJASTHAN, INDIA.

CHANDERKSONI@YAHOO.COM

00-91-9414380969

CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

Monday, July 05, 2010

.
जहर का सेवन क्यों???
.
क्या आप जानते हैं कि--
आप जाने-अनजाने जहर खा रहे हैं??
आप जिस अनाज-दाल, फल-सब्जी को शुद्ध मान रहे हैं उस पर जहर लगा हुआ हैं??
जिस खाद्य पदार्थ को आप पौष्टिक मान कर खाते हैं, वो जहरीला हैं??
अपने शरीर को बनाने के लिए आप जो कुछ भी ले रहे हैं, वो बनाना तो दूर शरीर को बिगाड़ रहा हैं??
आदि-आदि।
.
नहीं-नहीं आप कुछ भी नहीं जानते हैं। आपको तो बस खा-पी कर हज़म करने से मतलब हैं, बाकी क्या हैं, क्या नहीं हैं, आप कुछ भी नहीं जानते हैं। खाया-पीया-पचाया बस यही तीन लफ्ज आप जानते हैं, और तो कुछ आपको पता ही नहीं।
.
आज अनाजो से लेकर दालो-चनो तक, फलो से लेकर सब्जियों तक हर चीज़ जहर से भरी हुई हैं। इन चीजो को जितना मर्ज़ी धो लो, रगड़ लो, चाहे कुछ भी कर लो, थोड़ा-बहुत जहरीला पदार्थ तो रह ही जाएगा। कारण......इन चीजो का उत्पादन ही जहर से किया जा रहा हैं। रासायनिक खाद ड़ाल-ड़ाल कर सारा नक्शा ही बिगाड़ दिया गया हैं। कल तक जिस रासायनिक खाद को जरुरत, मज़बूरी बता कर इस्तेमाल किया जाता था, उसी रासायनिक खाद को आज फैशन, तेज़ी से उत्पादन के लिए धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा हैं।
.
ज्यादा से ज्यादा और तेज़ी से उत्पादन करने के लिए सम्पूर्ण मानव-जाति के जीवन से ही खिलवाड़ किया जा रहा हैं। रासायनिक खाद फायदे कम नुकसान ज्यादा देती हैं, रासायनिक खाद के नुकसान ही नुकसान हैं, और लोग (किसान) सब कुछ जानते-समझते हुए भी बेरोकटोक इनका इस्तेमाल बेतहाशा कर रहे हैं।
.
रासायनिक खाद कृत्रिम तत्त्व हैं नाकि भूमि की खुराक। रासायनिक खाद भूमि को दूरगामी नुकसान पहुंचा रही हैं, किसान भले ही तात्कालिक-अल्पकालिक लाभ प्राप्त करता हो। लालचवश या देखा-देखी किसान रासायनिक खाद उपयोग में तो ला रहे हैं, लेकिन इसके अत्यधिक इस्तेमाल से जमीन कमजोर होकर बंजर हो जाती हैं। दूसरा, जल की कमी का मुख्य कारण भी रासायनिक खेती साबित हो सकती हैं, क्योंकि रासायनिक खेती से जल की आवश्यकता ज्यादा और बार-बार पड़ती हैं।
.
किसान रासायनिक खेती से उत्पादन भले ही ज्यादा लेले लेकिन होता फिर भी घाटे में ही हैं। क्योंकि रासायनिक खेती के लम्बे इस्तेमाल के कारण जमीन कठोर हो जाती हैं, जिसकी वजह से जोत-खर्च भी बढ़ जाता हैं। रासायनिक खाद से तैयार अनाज-सब्जी-फल का स्वाद काफी अलग होता हैं। जैविक खाद के मुकाबले इस खाद से तैयार सब्जी-फल आदि काफी बेस्वाद और कम पौष्टिक होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी होते हैं। कृषक को तात्कालिक लाभ भले ही हो, लेकिन इसका नुकसान भी उर्वरा शक्ति बढाने वाले जीवाणुओं के नष्ट होने के रूप में सामने आता हैं।
.
धुप और ठण्ड से बचाव भी रासायनिक खाद लेने वाले पौधे-फसल कम ही कर पाते हैं। पर्यावरण के लिए तो रासायनिक खाद हैं ही नुकसानदेह, इसमें तो रत्ती भर भी कोई शक नहीं हैं। रासायनिक खाद के हानिकारक कैमिकल लोगो को जिगर, गुर्दे, और हर्दय रोगों के साथ-साथ जाने-अनजाने कैंसर भी दे रहे हैं। जैविक खाद के तो फायदे ही फायदे हैं, कही भी, कभी भी, किसी भी रूप में जैविक खाद नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। साथ ही, रासायनिक खाद के मुकाबले जैविक खाद काफी सस्ते, किफायती, कामयाब, और लम्बे समय तक असरकारक होते हैं। जैविक खाद के कई फायदे इस तरह हैं--
पर्यावरण की रक्षा होती हैं,
मिटटी भुरभुरी होने से उसमे हवा, पानी, और प्रकाश का संचार उचित ढंग से होता हैं,
कम बारिश में पानी लम्बे समय तक सोख कर रखती हैं और ज्यादा बारिश में पानी की निकासी करती हैं,
मिटटी का कलेवर अच्छा रहता हैं,
उर्वरा शक्ति बढती हैं,
उर्वरा शक्ति बढाने वाले जीवाणुओं की पैदावार प्राकृतिक रूप से बढती हैं,
अनाज-फल-सब्जी पौष्टिक और स्वादिष्ट होते हैं,
एक बार की सिंचाई लम्बे समय तक चलती हैं,
बार-बार सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती,
कम सिंचाई के कारण पानी भी बचता हैं,
जमीन सख्त नहीं होती इससे जोत-खर्च बचता हैं,
फसल के धुप और ठण्ड से बचाव के लिए कोई ख़ास इंतजामात नहीं करने पड़ते,
प्राकृतिक रूप से भूमि की खुराक भी हैं जैविक खाद,
आदि-आदि।
.
तो क्यों किसान अपने देश के ही लोगो को जहर परोसना चाहते हैं??
रासायनिक खाद और जैविक खाद के फायदों-नुकसानों को जानते हुए भी किसान चुप क्यों हैं??
चंद लाभ के लिए, लोगो के जीवन से खिलवाड़ करना क्या उचित हैं??
.
मेरी इस ब्लॉग के माध्यम से सभी किसान भाइयो से निवेदन हैं कि-"जहां तक हो सके अपनी खेती-फसल में जैविक खाद का ही इस्तेमाल करे, और रासायनिक खाद का इस्तेमाल ना के बराबर करते हुए रासायनिक खाद के उपयोग को हतोत्साहित करे।"
साथ ही मेरी आम जनता से निवेदन हैं कि-"हमेशा यथासंभव जैविक खाद से तैयार फसल (फल-सब्जी-अनाज) ही खरीदें, इसके लिए आप सीधे उन खेतो से खरीद करे जो जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं। इससे रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने वाले हतोत्साहित होंगे।
और यदि आप किसी जैविक खाद का उपयोग करने वाले खेत या किसान के बारे में नहीं जानते तो बेहतर हैं आप उन दुकानों से खरीदी करे जिनके पास शत-प्रतिशत जैविक-प्राकृतिक खाद से तैयार माल मिले। (महानगरो-बड़े शहरों में कई दुकाने इस तरह की खुली हैं जो लिखित में, शुद्ध रूप से जैविक खाद से तैयार खाद्य पदार्थ रखती हैं।)"
.
धन्यवाद।
.
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM