ऑनर किलिंग का क्रूर से क्रूरतम सच।
संस्कृति, परिवार, धर्म, समाज के नाम पर तथाकथित ग़लत काम करने पर दोषी की ह्त्या को ऑनर किलिंग कह कर सदियों से महिमामंडित किया जा रहा हैं। पिता अपनी बेटी को, भाई अपनी बहन को, और पंचायते अपने ही समाज के लोगो को मार कर अपने को धन्य समझते हैं।
इस क्रूर से क्रूरतम व्यवहार के लिए अगर कोई दोषी हैं तो वे धर्म के ठेकेदार हैं, पर पंडे, पुजारी, मौलवी, पादरी, आदि सब बच निकलते हैं। जिन नियमो को समाज का नियम माना जाता हैं, असल में इन्हे धर्म के नाम पर ही सौपा जाता हैं। और धर्म के ठेकेदार-दूकानदार ही थोपने वालो में अग्रणी होते हैं। वे नही चाहते कि-"कोई नई पहल करे या कोई बंधी-बंधाई लीक से हट कर चले।"
सरकारे और पुलिस-प्रशासन इस क्रूर-घिनौने खेल को देखती रहती हैं, क्योंकि उसकी कोई शिकायत नही करता और ना ही कोई गवाही देता हैं। हैरत की बात तो यह हैं कि-"पुलिस महकमे में ऊपर से लेकर नीचे तक, कांस्टेबल से लेकर एस.पी. तक ऑनर किलिंग को जायज़ मानते हैं।"
विज्ञान, आधुनिक शिक्षा, और तकनीक ने बहुत से सकारात्मक परिवर्तन अपनेआप ला दिए हैं। पंडो, मौलवियों, और पादरियों का रूतबा कम हो गया हैं, उनकी पूछ-परख कम हो गई हैं। धर्म अपना अंधविश्वास बेच रहा हैं, पर उसे तर्क का सामना करना पड़ रहा हैं। क़ानून अब ईश्वर या खुदा की देन या समाज की परम्पराए नही हैं, आम आदमी के अपने बहुमत से बनाए गए हैं। इसीलिए लोकतंत्र ने धर्म की अंधेरगर्दी, गुंडाराज, और हठधर्मिता पर सबसे गहरी चोट पहुंचाई हैं।
ऑनर किलिंग इज्ज़त के नाम पर की जाती हैं। क्या इज्ज़त को लेकर सज़ा सिर्फ़ लड़कियों, युवतियों, औरतो, महिलाओं, आदि स्त्री जाति को ही दी जानी चाहिए???? इज्ज़त मिटाने, ख़राब करने, या लूटाने को लेकर पुरूष को सज़ा क्यों नही दी जाती??? क्या इज्ज़त को बचाने या बरकरार रखने की जिम्मेदारी सिर्फ़ स्त्री की ही हैं??? क्या पुरूष की कोई ड्यूटी-कर्तव्य नही हैं??
ऑनर किलिंग अब बुरी लगती हैं, अखरती हैं, पर अफ़सोस यह हैं कि-"शिकायत उनसे होती हैं, जो ख़ुद धर्म के दुकानदारों के शिकार हैं, जो उनकी कठपुतलियाँ हैं।" अगर इस तरह के अन्याय-अधर्म से बचना हैं तो धर्म की कट्टरता फैलाने वालो के ख़िलाफ़ क़ानून बनने चाहिए। सती-डायन, भागी बेटी-बहु-बीवी-बहन-माँ, आदि के रूप में स्थापित महिलाओं पर ऑनर किलिंग जैसा अत्याचार बंद होना चाहिए। सज़ा इन महिलायों को ऑनर किलिंग के नाम पर मारने वालो को नही, बल्कि इसके लिए उकसाने वालो मिलनी चाहिए। सज़ा नही कड़ी-से-कड़ी सज़ा।
धन्यवाद।
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
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SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
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Sunday, November 08, 2009
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