मेरे इस ब्लॉग का उद्देश्य =

मेरे इस ब्लॉग का प्रमुख उद्देश्य सकारात्मकता को बढ़ावा देना हैं। मैं चाहे जिस मर्ज़ी मुद्दे पर लिखू, उसमे कही ना कही-कोई ना कोई सकारात्मक पहलु अवश्य होता हैं। चाहे वह स्थानीय मुद्दा हो या राष्ट्रीय मुद्दा, सरकारी मुद्दा हो या निजी मुद्दा, सामाजिक मुद्दा हो या व्यक्तिगत मुद्दा। चाहे जो भी-जैसा भी मुद्दा हो, हर बात में सकारात्मकता का पुट जरूर होता हैं। मेरे इस ब्लॉग में आपको कही भी नकारात्मक बात-भाव खोजने पर भी नहीं मिलेगा। चाहे वह शोषण हो या अत्याचार, भ्रष्टाचार-रिश्वतखोरी हो या अन्याय, कोई भी समस्या-परेशानी हो। मेरे इस ब्लॉग में हर बात-चीज़ का विश्लेषण-हल पूर्णरूपेण सकारात्मकता के साथ निकाला गया हैं। निष्पक्षता, सच्चाई, और ईमानदारी, मेरे इस ब्लॉग की खासियत हैं। बिना डर के, निसंकोच भाव से, खरी बात कही (लिखी) मिलेगी आपको मेरे इस ब्लॉग में। कोई भी-एक भी ऐसा मुद्दा नहीं हैं, जो मैंने ना उठाये हो। मैंने हरेक मुद्दे को, हर तरह के, हर किस्म के मुद्दों को उठाने का हर संभव प्रयास किया हैं। सकारात्मक ढंग से अभी तक हर तरह के मुद्दे मैंने उठाये हैं। जो भी हो-जैसा भी हो-जितना भी हो, सिर्फ सकारात्मक ढंग से ही अपनी बात कहना मेरे इस ब्लॉग की विशेषता हैं।
किसी को सुनाने या भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए मैंने यह ब्लॉग लेखन-शुरू नहीं किया हैं। मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से पीडितो की-शोषितों की-दीन दुखियों की आवाज़ पूर्ण-रूपेण सकारात्मकता के साथ प्रभावी ढंग से उठाना (बुलंद करना) चाहता हूँ। जिनकी कोई नहीं सुनता, जिन्हें कोई नहीं समझता, जो समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं हैं, जो अकेलेपन-एकाकीपन से झूझते हैं, रोते-कल्पते हुए आंसू बहाते हैं, उन्हें मैं इस ब्लॉग के माध्यम से सकारात्मक मंच मुहैया कराना चाहता हूँ। मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से उनकी बातों को, उनकी समस्याओं को, उनकी भावनाओं को, उनके ज़ज्बातों को, उनकी तकलीफों को सकारात्मक ढंग से, दुनिया के सामने पेश करना चाहता हूँ।
मेरे इस ब्लॉग का एकमात्र उद्देश्य, एक मात्र लक्ष्य, और एक मात्र आधार सिर्फ और सिर्फ सकारात्मकता ही हैं। हर चीज़-बात-मुद्दे में सकारात्मकता ही हैं, नकारात्मकता का तो कही नामोनिशान भी नहीं हैं। इसीलिए मेरे इस ब्लॉग की पंचलाइन (टैगलाइन) ही हैं = "एक सशक्त-कदम सकारात्मकता की ओर..............." क्यूँ हैं ना??, अगर नहीं पता तो कृपया ज़रा नीचे ब्लॉग पढ़िए, ज्वाइन कीजिये, और कमेन्ट जरूर कीजिये, ताकि मुझे मेरी मेहनत-काम की रिपोर्ट मिल सके। मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आप सभी पाठको को बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद, कृपया अपने दोस्तों व अन्यो को भी इस सकारात्मकता से भरे ब्लॉग के बारे में अवश्य बताये। पुन: धन्यवाद।

Monday, June 28, 2010

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ये ऐसे हैं तो बाकी कैसे होंगे???
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इस बार मैं ऐसी बात लिख रहा हूँ, जो सुखद तो नहीं हैं लेकिन हैं कडवी सच्चाई। बहुत ही भारी मन से मैंने ये पोस्ट लिखी हैं। एक ऐसे मुद्दे पर मैं लिख रहा हूँ, जो समाज से काफी करीब से, गहराइयों से जुड़ा हुआ हैं।
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मेरा एक दोस्त हैं (गोपनीयता रखते हुए मैं उसका नाम नहीं लिख सकता) जोकि एक टांग से विकलांग हैं। पांच-छः साल तक वो एकदम ठीक था, लेकिन तभी अचानक उसे पोलियो हो गया और बड़ी मुश्किल से उसे पूर्ण-रूप से अपंग होने से बचाया जा सका। आज उसकी उम्र 24 साल हैं, वो लंगडा-लंगडा कर चलता हैं और लम्बी दुरी तय करने के लिए ट्राय-साइकल का उपयोग करता हैं। यह ट्राय-साइकल उसे बीकानेर की एक संस्था ने नि-शुल्क प्रदान की थी। अब उसकी करतूत भी जान लीजिये =
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जैसा की मैं पहले ही बता चूका हूँ कि-"वो मेरा पुराना दोस्त हैं और ट्राय-साइकल उपयोग करता हैं।" हाल ही में, वो मेरे घर आया एकदम नयी चमचमाती ट्राय-साइकल पर। मैंने उसे नयी साइकल लेने पर बधाई देते हुए उसकी चमकती-दमकती सायकल की तारीफ़ की। उसके बाद उसने मुझे जो बताया, उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।
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उसने कहा-"अरे नहीं-नहीं यार, ये सायकल मैंने खरीदी नहीं हैं। ये ट्रायसायकल तो मैंने हाल ही में लगे एक विकलांग शिविर से नि-शुल्क प्राप्त की हैं। तुझे शायद याद होगा, वो शिविर पिछले दो महीने पहले लगा था।" मैंने उससे पूछा कि-तेरे पास तो पहले से ही ट्रायसाइकल थी फिर तुने नयी क्यों ली?? और वो थी भी सही-दुरुस्त कंडीशन में??" तो वो हँसते हुए बोला-"यार वो सायकल तो मैंने दो हज़ार रूपये में किसी और विकलांग को बेच दी। दरअसल मुझे पैसो की सख्त आवश्यकता थी, तो मैंने वो सायकल अन्य विकलांग को सस्ते में दो हज़ार रूपये में ही बेच दी, नयी तीन हज़ार से ज्यादा की ही आती हैं। और हाल ही में लगे जयपुर वालो के शिविर में जाकर मैं ये नयी ट्राय-साइकल ले आया। बस इतनी सी ही बात हैं।"
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मैं बोला तो कुछ नहीं, लेकिन उसने मेरे मन में कई-अनुत्तरित सवाल छोड़ दिए। जैसे कि--
मुफ्त में मिली सायकल को इस तरह देकर उसने क्या साबित किया??
मुफ्त की सायकल को दो हज़ार में बेचकर वो सस्ती देने की बात कैसे कह सकता हैं??
जो सामाजिक-धार्मिक संस्थाएं विकलांगो की सहायता करती हैं उन्हें यह बात जानकर क्या झटका नहीं लगेगा??
इससे बेहतर तो वो किसी से उधार या क़र्ज़ ले लेता या अपनी ट्राय साइकल को गिरवी रख देता।
आजकल के घोर-कलयुगी, पापी जमाने में मुट्ठी भर लोग विकलांगो के लिए कुछ कर रहे हैं, क्या ये घटनाक्रम उन्हें हतोत्साहित नहीं करेगा???
अगर हरेक विकलांग ऐसा करने लग जायेंगे तो ये तो एक व्यापार का रूप ले लेगा। जोकि दुर्भाग्य होगा।
उन संस्थायों का क्या होगा, जो इस तरह के लोगो (विकलांगो) द्वारा आये दिन लुटते जायेंगे????
आज आम आदमी का विश्वास आये दिन झूठे-ढोंगी साधू-महात्माओं-बाबाओं द्वारा तोड़ा जा रहा हैं, तो क्या लोग विकलांगो पर विश्वास कर पायेंगे???
भिखारियों पर से लोगो का विश्वास-भरोसा पूरी तरह से तो नहीं लेकिन काफी हद तक कम जरूर हो गया हैं। कारण उनका झूठ-मूठ लंगडाना या हाथ मोड़ना या पट्टियां बांधकर कोढ़ी होने का नाटक करना, आदि।

भगवान् की दया से लोगो का विश्वास साधू-महात्माओं पर से जरूर उठ गया हैं, लेकिन विकलांगो पर अभी भी बना हुआ हैं।
बाहरी लोग या नकली लोग ऐसा करे तो और बात हैं, लेकिन जब असली लोग (विकलांग) ही ऐसा करने लगेंगे तो लोग कैसे उनपर विश्वास-भरोसा कायम रख पायेंगे???
आदि-आदि।
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मन में और भी ढेर सारे सवाल अनुत्तरित रह गए हैं, लेकिन फिलहाल इतना ही।
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धन्यवाद।
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FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
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Monday, June 21, 2010

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सट्टा-जुआ-लाटरी चिटफण्ड या चीटफण्ड????
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ज्यादा धन कमाने, जल्दी अमीर बनने या कमाई के शॉर्ट कट के रूप में लोग सट्टे-जुए, और लाटरी पर शायद ज्यादा ही विश्वास करते हैं। पता नहीं लोग मेहनत करके, इज्ज़त की रोटी की बजाय सट्टे-जुए जैसी मुफ्त (हराम) की कमाई की रोटी खाना क्यों पसंद करते हैं?? लोगो में सट्टे की इतनी बुरी लत पैदा हो चुकी हैं कि-"वे अपनी इज्ज़त, अपने मान-सम्मान को भी गंवाने को सहर्ष तैयार हो जाते हैं। इज्ज़त-मान सम्मान के बाद बाद नंबर घर के कपडे-लत्तो, और बर्तनों का आता हैं, जिसे भी सटोरिये सट्टो के अड्डो पर लुटा डालते हैं। "

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इसका मुख्य कारण 1 के बदले 90 (कुछ जगह 95) के लालच में लोगबाग बड़ी आसानी से आ जाते हैं। लोग ये भूल जाते हैं कि-वे सट्टा लगा कर गंवाएंगे ही गंवाएंगे, पायेंगे कुछ भी नहीं।" यही (लगाईवाल के हाथ कुछ ना लगना और खाईवालो का भारी कमीशन) खाइवालो की अंधी-कमाई का राज हैं, लगाईवाल के हाथ सिवाय पश्तावे के कुछ नहीं आता हैं। लेकिन ये पश्तावा लम्बे समय तक नहीं टिक पाता हैं, सटोरियों के मन में लालच का पलड़ा सदैव ज्यादा भारी रहता हैं।
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ये सब चिटफण्ड नहीं चीटफण्ड हैं। और लोग चिटफण्ड समझ कर चीटफण्ड में अपना पैसा बर्बाद कर रहे हैं। आज तक मैंने कभी किसी को सट्टे-जुए के सहारे इज्ज़तदार तो दूर की बात अमीर बनते भी नहीं देखा हैं। और जो लोग सट्टे के सहारे अमीरी तक पहुँच भी गए वे लम्बे समय तक नहीं ठहर सके। और एक और बात, कुछ लोगो के बारे में कहा जाता हैं कि-वे खानदानी अमीर और सट्टेबाज़ हैं।" तो असलियत ये हैं कि-"वे खानदानी अमीर बेशक होंगे लेकिन उनके और भी कई काम भी अवश्य होंगे, हाँ कुछ कमाई जरूर सट्टे से आती होगी, लेकिन पुरी की पुरी कमाई सट्टे से आती हो, ऐसा तो संभव ही नहीं हैं। "

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मैंने तो आज तक लगवाने वालो को ही अमीर (अस्थाई तौर पर) होते देखा हैं बाकी सभी लगाने वालो को तो मैंने रोडपति, कंगाल होते हुए ही देखा हैं। मेहनत से बड़ा और बेहतरीन जरिया कोई नहीं हैं। मेहनत-मजदूरी करके दो जून की रोटी खाना ज्यादा इज्ज़त देता हैं नाकि सट्टे-जुए से प्राप्त अनाप-शनाप धनदौलत से कोई ज्यादा इज्ज़त होती हैं। फिर भी ना जाने क्यों लोग सट्टे-जुए-लाटरी की तरफ रुख करते हैं......????

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पुलिस-प्रशासन को सटोरियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाही करनी चाहिए। जोकि महज मामूली जुर्माना या एकाध महीने की सज़ा से कही बढ़ कर हो। वैसे पुलिस-क़ानून कुछ करे या ना करे लोगो को अपने सूझबूझ से, अपने विवेक से कार्य करना चाहिए। मेहनत का कोई विकल्प नहीं हैं, मेहनत ही सबसे बड़ी और इज्ज़त दायक चीज़ हैं, ये लोगो आज नहीं तो कल समझ में आ जाएगा, लेकिन आयेगा अवश्य।

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धन्यवाद।

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Monday, June 14, 2010

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धन्यवाद अमेरिका।

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मैं एक ऐसी बात के लिए अमेरिका का धन्यवाद प्रकट कर रहा हूँ जोकि आप सोच भी नहीं सकते। तमाम राजनितिक, कूटनीतिक, आर्थिक, द्विपक्षीय, विदेश मंत्रालय, मुद्रा-विनिमय, आदि प्रचलित और आम मुद्दों से हट कर मैं अमेरिका का एक ख़ास कारण से शुक्रिया अदा कर रहा हूँ।

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मैं पीटा (पीपल फॉर दी एथिकल ट्रीटमेंट फॉर एनिमल्स) का सदस्य हूँ। वो भी तब से जब मैं स्कूल में पढता था और मेरी उम्र महज सोलह-सत्रह साल ही रही होगी। ये उस वक़्त कि बात हैं जब मेरे उम्र के किसी भी बच्चे को इन सबके बारे में कुछ ज्ञान ही नहीं होता था। मेरे पास करीब सात सालो से पीटा के ईमेल्स आते रहते हैं। और मैं करीब 99% तक ईमेल्स पर उचित कार्रवाही करता हूँ। हाल ही में आये एक ईमेल से मेरा मन अमेरिका के प्रति श्रद्धावनत को गया साथ ही भारत के प्रति थोड़ा गुस्सा, थोड़ी नाराजगी का भाव उमडा।

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उस ईमेल में एक घटना का विस्तार से वर्णन लिखा हुआ था। उस ईमेल में सभी सबूत भी पेश किये गए थे। उस ईमेल में एक खबर लिखी थी = अमेरिका के न्यूयार्क में एक गाडी वाला अपने गाडी में एक कुत्ते को लेकर बाज़ार शोपिंग करने गया था, गाडी के सभी शीशे पूरी तरह से चढे हुए थे। तभी गर्मी के कारण कुत्ते कि तबियत बिगड़ गईं और वो बुरी तरह से हांफने और गाडी के अन्दर बेचैनी से घूमने लगा। आसपास के लोगो ने तत्काल पुलिस को खबर दी। पुलिस ने भी मालिक का पता ना चलने पर गाडी के शीशे को तोड़ा और जानवरों के अस्पताल की को एम्बुलेंस बुलाकर कुत्ते को भेजा।

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हालांकि उस ईमेल में कुत्ते की मौत की दुखद खबर के साथ एक अच्छी बात भी लिखी हुई थी। वो ये की पुलिस ने उस गाडी के मालिक/ड्राइवर को लापरवाहीपूर्वक कुत्ते की ह्त्या करने के जुर्म में छ: महीने की सज़ा और एक हज़ार डॉलर (करीब पैंतालिस से पचास हज़ार रूपये) का जुर्माना भी लगाया। मुझे उस ईमेल को पढ़कर बहुत ख़ुशी हुयी। मुझे अमेरिका की पुलिस की तत्परता, वहाँ की अदालत द्वारा तुरंत फैसला देना और जानवरों के लिए अलग से हॉस्पिटल होना और एम्बुलेंस द्वारा कुत्ते को ले जाना, आदि बातों ने काफी प्रभावित किया। मुझे ख़ुशी के साथ-साथ भारत पर गुस्सा और नाराजगी भी आई। कारण =

भारत में बड़ी संख्या में जानवर (सिर्फ कुत्ते ही नहीं बिल्ली, खरगोश, जैसे कई पालतू जानवर भी) बंद गाडी में भीषण गर्मी के कारण मारे जाते हैं।

यहाँ कोई कुछ बोलता ही नहीं।

यहाँ आम आदमी इस सम्बन्ध में जागरूक ही नहीं हैं।
यहाँ की पुलिस इंसान को ही कुछ नहीं समझती कुत्ते (या अन्य जानवर) को क्या समझेंगी??

इंसानों की मौत पर भी पुलिस देरी से पहुँचती हैं, वो भी मामला बढ़ने या ज्यादा बुलाने पर।

यहाँ की एम्बुलेंस आदमी के काम आ जाए यही काफी हैं, जानवर के लिए तो हॉस्पिटल ही नहीं हैं।

हैं, पर वो भी रामभरोसे ही हैं। इंसान ही हॉस्पिटल में दाखिल हो जाए गनीमत हैं।

वहाँ तो कुत्ते को भी एम्बुलेंस में डालकर हॉस्पिटल ले जाया जाता हैं।

यहाँ चाहे जितने जानवरों की ह्त्या करदो, कोई क़ानून, अदालत, या पुलिस कुछ नहीं करेगी।

वहाँ गलती से ही कुत्ते के मरने पर भारी सज़ा और जुर्माना भुगतना पड़ गया।

वहाँ भी मुर्गे, बकरे, पाडे, भैंस, गाय, आदि जानवर भारत के मुकाबले कई गुना ज्यादा कटते हैं, लेकिन फिर भी एक कानूनी तरीके से।

भारत में तो इंसानों को मारने पर भी जवानी से बूढ़े होने पर सज़ा मिलती हैं, कई बार तो मरने के बाद भी।

वहाँ अदालत और पुलिस दोनों ने त्वरित गति से सारे काम पुरे किये, और अपराधी को सज़ा दिलवाई।

महावीर और बुद्ध के देश में क्या जानवरों पर अत्याचार ख़तम नहीं हो सकता??

क्या ऐसा भारत में हो सकता हैं???

अगर नहीं, तो क्यों नहीं हो सकता???

और अगर हाँ, तो कब???

आदि-आदि।

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बहुत सी बातें और भी मन में उठ रही हैं, लेकिन फिर कभी।

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धन्यवाद।

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Monday, June 07, 2010

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भ्रूण ह्त्या की क्या??
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अरे-अरे गलत ना समझिये, मैं अपराध वाला भ्रूण ह्त्या नहीं कह रहा हूँ और ना ही मैं किसी को भ्रूण ह्त्या करने को उकसा-प्रेरित कर रहा हूँ। मैं तो पुण्य कार्य वाला भ्रूण ह्त्या करने को कह रहा हूँ। नहीं समझे????, ज़रा नीचे पढ़ने का कष्ट कीजिये, आपको सब समझ में आ जाएगा।
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आज देश में जितनी भी समस्याएं हैं, उन सभी का अंत भ्रूण-ह्त्या में ही निहित हैं। चोरी-डकैती, लूटपाट, दंगे-फसाद, ह्त्या-बलात्कार, छेड़छाड़, गाली-गलौच, मारपीट, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार, घूस-रिश्वतखोरी आदि समस्याएं मुंह बाएं खड़ी हैं, उन सबका सफाया भ्रूण ह्त्या से ही किया जा सकता हैं। आज़ादी से लेकर अब तक, इतना लंबा समय गुज़र गया हैं, लेकिन दुर्भाग्य से कोई भी समस्या कम होने की बजाय कैंसर की तरह फैलती-बढती ही गयी हैं। कितने नेता, सामाजिक कार्यकर्ता आये और चले गए, कितने मुख्यमंत्री, प्रधानमन्त्री, और राज्यपाल, राष्ट्रपति आये और चले गए, लेकिन कोई भी समस्या रत्ती भर भी कम नहीं हुयी।
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बहुत हो गया, बहुत कुछ कर लिया, बहुत से उपाय-रास्ते पर चल लिए, बहुत से तरीके आजमा लिए, अब सिर्फ एक ही रास्ता बचा हैं। अब एकमात्र उपाय भ्रून ह्त्या का ही रह गया हैं, अगर ये उपाय असफल हो जाता हैं तो देश को कोई तरक्की नहीं करा सकता, और अगर भ्रूण ह्त्या का आखिरी उपाय सफल-कारगर होता हैं तो कोई भी देश को नंबर वन बनने से नहीं रोक सकता। अब जानिये कि-ये उपाय हैं क्या????
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कोई भी समस्या जन्मजात नहीं होती हैं, कोई भी व्यक्ति जन्म से ही अपराधी, चोर, डाकू, या भ्रष्ट, हत्यारा या बलात्कारी नहीं होता हैं। नाही भगवान् किसी को बुरा बनने के निर्देश/आदेश देता हैं और ना ही भगवान् किसी को ऐसा बनाकर भेजता हैं। बल्कि उसे ऐसा बनाने के लिए आसपास का माहौल, उस वक़्त की स्थितियां, परिस्थितियाँ, माहौल, और हालात ज़िम्मेदार होते हैं। किसी भी अपराधी को मारना-पीटना, प्रताड़ित करना, या जेलों में ठूस देने, आदि उपायों से कोई विशेष सुधार नहीं होता हैं। हाँ जब तक अपराधी जेल में बंद होता हैं, तब तक बाहरी समाज और दुनिया को अवश्य राहत मिल जाती हैं, लेकिन ये सिर्फ तात्कालिक राहत ही होती हैं, नाकि दीर्धकालिक।
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किसी को संगत तो किसी को यार-दोस्त, किसी को माँ-बाप तो किसी को नजदीकी रिश्तेदार, किसी को गरीबी तो किसी को भूखमरी, किसी को भ्रष्टाचार तो किसी को देश-समाज, किसी को देश का लचीला कानून तो किसी को अदालत या पंचायत का गलत, भेदभावपूर्ण, और अन्याय भरा फैसला, आदि-आदि। यानी कुलजमा किसी ना अपराधी के जन्म के पीछे हम लोगो, संस्थायो में से ही कोई ज़िम्मेदार होता हैं। हम ही शरीफ, सीधे-सादे लोगो को अपराध की राहो पर धकेलते हैं।
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स्कूल-कालेजो में कई मास्टरों-मास्टरनियों का गलत व्यवहार या क्रूर सज़ाएँ तो घरो में माँ-बाप या किसी रिश्तेदार का लड़ाकू या क्रूर होना या आपसी कलह का माहौल रहना। यार-दोस्तों और संगती का नशेडी होना या गुंडा-आवारा टाइप होना, किसी मुक़दमे, मामले में अदालत-पंचायत द्वारा गलत या भेदभावपूर्ण फैसलों के कारण ज़िन्दगी खराब होना। किसी का गरीबी, अशिक्षा, और भूखमरी का शिकार होना, आसपास का माहौल, गली-मोहल्ले के हालात, भ्रष्टाचार, आदि कोई एक नहीं वरन बहुत से कारण होते हैं अपराधी के जन्म के पीछे।
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हमें अपराधियों के पैदा होने पर उन्हें सुधारने के उपायों की बजाय उन्हें पैदा होने से रोकने के उपाय करने होंगे। अपराधियों को पैदा होने से रोकने के लिए हमें सीधे उन कारणों पर प्रहार करना होगा, जिनकी वजह से अपराधियों का जन्म होता हैं या शरीफ-सीधेसादे लोग अपराध की दुनिया में प्रवेश करते हैं। हमें नशे पर प्रभावी रोक लगानी होगी, हमें क़ानून को सख्त बनाना होगा (लागू भी करना होगा), हमें पंचायतो-अदालतों को और भी जवाबदेह बनाना होगा, हमें माता-पिता, रिश्तेदारों, टीचरों को, संयमशील, शांत, और न्यायमूर्ति (जो सैदेव निष्पक्ष बने रहे, जो सत्य और अहिंसा के नियम का पालन करे) बनाना होगा, हमें रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, घूसखोरी, पर सख्ती से रोक लगानी होगी, हमें गरीबी-भूखमरी, और अशिक्षा को जड़मूल से मिटाना होगा, आदि-आदि कई उपाय करने होंगे। अभी और इसी वक़्त, अविलम्ब।
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सभी समस्याओं, सभी अपराधियों के जन्म के लिए व्यवस्थागत कमियाँ हैं, जिन्हें दूर किया जाना अतिआवश्यक हैं। हम/सभी लोग, संस्थाएं प्रत्यक्ष रूप से ना सही लेकिन परोक्ष रूप से तो ज़िम्मेदार हैं ही अपराध और अपराधियों के जन्म के पीछे। अब एकमात्र उपाय भ्रूण ह्त्या का ही रह गया हैं, अगर ये उपाय असफल हो जाता हैं तो देश को कोई तरक्की नहीं करा सकता, और अगर भ्रूण ह्त्या का आखिरी उपाय सफल-कारगर होता हैं तो कोई भी देश को नंबर वन बनने से नहीं रोक सकता।


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तो फिर आप कब से शुरू कर रहे हैं अपराधियों की भ्रूण हत्याएं करनी???

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धन्यवाद।

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