इसलिए हमें ही फांसी दे दो।
जी हाँ, आज हर हिन्दुस्तानी की यही पुकार हैं। सन 1947 (आज़ादी) से लेकर आज तक भारत आतंकवाद से झूझ रहा हैं। दुनिया भर में आतंकवाद का जन्म-दाता और जड़ पाकिस्तान हैं। और पाकिस्तान भारत का ही पड़ोसी देश हैं। जाहिर हैं, आतंकवाद से सबसे ज्यादा लंबे समय और सबसे ज्यादा पीड़ित भारत ही हैं।
असल में आतंकवाद को किसी ने देखा, भुगता, और निपटा हैं, तो सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दुस्तान ने ही। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, और अन्य सभी देशो ने तो आतंकवाद का संशिप्त रूप और थोड़े समय तक ही देखा-भोगा हैं। पर भारत तो आतंकवाद के जन्म, विस्तार, फैलाव, आदि का साक्षी रहा हैं। और अभी तक का इतिहास गवाह हैं कि-"भारत ने हमेशा सारे विश्व को इस तरफ़ से आगाह किया हैं, और अपनी ओर से पकिस्तान पोषित आतंकवाद को मुँह-तोड़ जवाब दिया हैं।" यह अलग बात हैं कि-"दुनिया ने हमेशा भारत की आतंकवाद-बारे बात-चेतावनी को नज़र-अंदाज़ किया हैं।"
चाहे वह पंजाब का आतंकवाद हो या जम्मू-कश्मीर का आतंकवाद। चाहे वह पूर्वी राज्यों का नक्सलवाद हो या दक्षिणी राज्यों का लिट्टे, सभी पाकिस्तान के आतंकवाद से ही प्रेरित हैं। दुनिया भर में जितने भी अतिवादी-उग्रवादी संगठन हैं, उन सभी की जड़े किसी ना किसी रूप में पाकिस्तान में हैं।
भारत ने दुनिया के करीब सभी देशो को आतंकवाद के बारे में बहुत कहा, बहुत चेताया। पर दुनिया ने माना ही नही, दुनिया ने इसे पाकिस्तान को बदनाम करने की भारतीय साजिश करार दिया। लेकिन अमेरिका पर 9/11/2004 को हुए बड़े हमले के बाद दुनिया चेती। अब दुनिया को पता चल गया था कि-"भारत आतंकवाद-बारे झूठ नही बोल रहा था, और हिंदुस्तान आतंकवाद से सर्वाधिक पीड़ित देश हैं।"
ना जाने कितने सैनिक और आम लोग इस आतंकवाद की भेंट चढ़ गए, ना जाने कितने बच्चे अनाथ-यतीम हो गए, और ना जाने कितनी औरतें विधवा हो चुकी हैं, इस नामुराद आतंकवाद के कारण। लेकिन अब हिन्दुस्तानी जनता में भारत सरकार के प्रति बेहद गुस्सा हैं। और हो भी क्यों ना??, आख़िर उनका गुस्सा जायज़ भी हैं।
दरअसल, भारत में पहले ही आतंकवाद काफ़ी फैला हुआ हैं, सरकार वैसे भी आतंकवाद-रोधी कानूनों की पालना सख्ती से नही कर रही हैं। ऊपर से पकड़े गए आतंकवादियों को फांसी ना देना, आग में घी का काम कर रहा हैं। मुंबई में पिछले साल 26/11 को होटल ताज में हुए को लेकर काफ़ी गुस्सा हैं। लोगो ने बाकायदा सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी-अपने गुस्से को जाहिर भी किया था। लोगो ने मुंबई हमले में पकड़े गए एक-मात्र जीवित आतंक-कारी को फांसी देने की पुरजोर मांग भी की थी।
आज हर भारतीय-हर हिन्दुस्तानी की यही मांग हैं कि-"पकड़े गए सभी आतंकवादियों को फांसी दी जानी चाहिए।" आम लोगो के सब्र का बाँध टूट रहा हैं, लोगो की सहन-शक्ति जवाब देने लगी हैं। लोग अब हर हाल सरकार और अदालत से उनके लिए फांसी की सज़ा चाहते हैं। लोग अब इसमे और ज्यादा विलंब-देरी नही सह सकते हैं।
वैसे भी अफजल और कसाब का कृत्य क्षमा-योग्य नही हैं। उन्होंने जो किया हैं, उससे तो मुझे लगता हैं कि-"उन्हें नरक में भी स्थान नही मिलेगा।" कसाब का मामला तो ज्यादा पुराना नही हैं, लेकिन अफजल का मामला तो बेहद पुराना हैं। कसाब के मामले में सब कुछ हैं-गवाह हैं, सुबूत हैं, प्रूफ़ हैं। यानी वह सब हैं, जो उसे सज़ा दिलाने के लिए काफी हैं। इसीलिए कसाब का मामला भी पुराना प्रतीत होता हैं।
अगर भारतीय जनता के गुस्से से बचना हैं और हिन्दुस्तान की सरहदों अ-क्षुन्न रखना हैं, तो इन पकड़े गए दोनों आतंक-कारियों को फांसी देनी ही होगी। यही आज हर हिन्दुस्तानी और हर आतंकवाद पीड़ित लोगो की मांग हैं।
मेरी सरकार से अपील हैं कि-"हर आम और आतंकवाद पीड़ित लोगो की भावनाओ का ख्याल रखते हुए, कद्र करते हुए अफजल और कसाब को तत्काल फांसी दी जाए।"
अफजल और कसाब को फांसी देने में हो रही देरी से आम हिन्दुस्तानी खीज उठा हैं। वह अब और इंतज़ार करने की स्थिति में नही हैं। आम आदमी भारत सरकार की इसी लापरवाही-नाकारापन-और लचीलापन को देख कर क्रोधित हैं। सरकार के रवैये से आम आदमी शर्मिन्दा हो रहा हैं। हिन्दुस्तानी जनता ख़ुद को ठगा सा महसूस कर रही हैं कि-"जिनको हमने अपना प्रतिनिधि बना कर संसद भेजा हैं, वह आतंकवाद के ख़िलाफ़ कोई प्रभावी कदम नही उठा रहे हैं।"
आम-जन कि भावनाएं कविता के रूप में कुछ यूँ हैं =
अफजल-कसाब को दे दो फांसी,
अरे अफजल-कसाब को दे दो फांसी।
उनको फांसी मिलने में हो रही देरी से हम शर्मिंदा हैं,
शर्म से गडे जा रहे हैं हम सभी हिन्दुस्तानी।
तुममे में नही हो दम उन्हें फांसी देने का,
तो हमें फांसी पर लटका दो।
तुम्हारे इस लचीलेपन-ढीलेपन-और नाकारेपन को हमारे बाद वाले सदा याद रखेंगे,
अबकी दफा आना हमारे दर पर वोट मांगने।
हम सब पर माटी का क़र्ज़ हैं,
हम वह भली-प्रकार फांसी पर लटक कर चुका देंगे।
धन्यवाद।
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
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RAJASTHAN, INDIA.
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soni ji,
ReplyDeleteiss baar aapka blog dil ko chhu gaya....
sahi bhi hain aafjal oor kaasaab ko faanasi har haal or jaldi di jaani chaahhiye.