काश ये फैसला सारे देशभर में लागू हो।
गुजरात सरकार ने सभी स्थानीय (पंचायती राज, नगर पालिका, नगर परिषद्, और नगर निगम) चुनावों में मतदान करना अनिवार्य बनाने का फैसला किया हैं। यह वो फैसला हैं, जोकि काफी पहले ही लागू हो जाना चाहिए था। गुजरात सरकार का यह फैसला लोकतंत्र के लिए, असली और सच्चे लोकतंत्र की राह में मील का पत्थर साबित होगा। ऐसा मुझे विश्वास हैं।
कुछ लोगो की आदत-फितरत ही ऐसी होती हैं कि-"खुद तो किसी को वोट देते नहीं और जब काम नहीं होता या कोई समस्या आती हैं तो जनप्रतिनिधियों को उल्टा-सीधा बकने लग जाते हैं।" पहले ऐसे सिरफिरे, अंटशंट बकने वालो को वोट देना चाहिए, उसके बाद अपने जन प्रतिनिधियों से अपने वोट का हिसाब मांगते हुए, कोसना चाहिए। जब वे लोग आपसे वोट मांगने आये थे, तब तो आपने उन्हें वोट दिया नहीं। अब जब आप विकास-कार्य के लिए जायेंगे तो वे क्यों आपका साथ दे?????? क्या हक़ हैं आपका उन जनप्रतिनिधियों पर, जिन्हें आपने कुछ दिया ही नहीं???
बहुत से लोग मत/वोट देने की अनिवार्यता का विरोध कर रहे हैं। विरोधियों के तर्क कुछ इस तरह हैं =
वोट देने का टाइम नहीं हैं??
क्या मिलेगा वोट देकर?
काम तो होते नहीं हैं, क्या फायदा?
मैं दुसरे शहर में रहता हूँ। वोट देने आता तो एक या कई दिन खराब हो जाते।
ऑफिस/दूकान/बैंक/स्कूल आदि के लिए देर हो रही थी।
मेरे एक वोट से क्या बन या बिगड़ जाएगा??
आदि-आदि कई तरह की नकारात्मक और बेसिर-पैर की बातें करते हैं।
इन लोगो को ज़रा यह सोचना चाहिए कि-"जब यह लोग अपने प्रतिनिधियों को वोट ही नहीं देते हैं, तो इन्हें (लोगो को) उन्हें (जनप्रतिनिधियों को) कोसने का हक़ कैसे मिल गया??, उन्होंने आपसे वोट माँगा और आपने नहीं दिया। अब आप उनसे विकास-तरक्की मांग रहे हैं, तो वो क्यों दे?? कुछ पाने के लिए कुछ खोना ना सही, पर कुछ देना तो पड़ता ही हैं। जब आप किसी को कुछ देंगे ही नहीं, तो आपको मिलेगा कैसे?" ज़रा यह सोचिये-"जब आप वोट नहीं डालते हैं, तो कैसे बेकार-निकम्मा-अपराधी किस्म का उम्मीदवार आपकी जगह किसी और का बोगस वोट पोल करवा डालता हैं। आपके वोट ना डालने से कितना बड़ा नुक्सान हो जाता हैं, इसका अंदाजा आप सहज रूप से लगा सकते हैं। अगर आप अच्छे-काबिल-और होनहार उम्मीदवार को जीताते हैं तो आपको विकास के साथ-साथ उसे कोसने-सुनाने-बुरा भला कहने का हक़ भी स्वत्य: मिल जाता हैं।"
वैसे भी यह कौनसा हिसाब-न्याय-और मज़बूत लोकतंत्र हैं, जहां 60-70% लोगो की भागीदारी से ही चुनाव संपन्न हो जाना मान लिया जाता हैं???? बाकी के 30-40% मतदाताओं के मन की थाह भी ली जानी चाहिए। सच्चा-मज़बूत-और असली लोकतंत्र तभी आयेगा जब 90-95% मतदान होगा। बाकी के 5-10% वोट (जो नहीं डाले जा सके) भी सिर्फ उन्ही के हो जो या तो गंभीर रूप से बीमार-विकलांग हो या फिर वही हो जो बाहर (अस्थाई रूप से) रहता हो। लम्बे समय से बाहर रहने वालो के वोट ट्रांसफ़र कर दिए जाने चाहिए, ताकि पुरानी जगह का वोट बेकार ना जाए और नयी जगह वोट पोल हो सके। इससे दोनों ही स्थानों पर मत-प्रतिशत में उल्लेखनीय बदलाव (उछाल-बढ़ोतरी) देखने को मिलेगी।
काश ये फैसला सारे देशभर में लागू हो।
धन्यवाद।
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
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00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
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