.
कुछ नकारात्मकता भी आवश्यक।
.
अरे नहीं-नहीं, मैं किसी को नकारात्मक विचारों को अपनाने या सकारात्मकता को छोड़ने को नहीं कह रहा हूँ। मैं तो कुछ हद तक नकारात्मकता को सही ठहरा रहा हूँ।
.
अब आप कहेंगे, कि-"ये क्या बात हुई??, मेरा ब्लॉग सकारात्मकता का पर्याय रहा हैं, मैंने अपने ब्लॉग में सकारात्मकता को प्रोत्साहित किया हैं। आज क्या हो गया मुझे??, जो मैं नकारात्मकता को कुछ हद तक जायज़-उचित ठहरा रहा हूँ।" जी नहीं, मुझे कुछ नहीं हुआ हैं, और नाही मैं अपने असल और आधारभूत मुद्दे (सकारात्मकता) से भटक गया हूँ। मैं आज भी सकारात्मकता को लेकर दृढ़ संकल्पित-अडिग हूँ, लेकिन कुछ हद तक (ज्यादा नहीं) नकारात्मकता भी आवश्यक हैं। कैसे??? अब ये जानिये।
.
एक = जब हम कोई गाडी या अन्य कोई नया वाहन चलाना सीखते हैं, तो हमारे मन में कई तरह के अंत-शंट, उलटे-सीधे ख्याल (गिर जाना, चोट लगना, या एक्सीडेंट) आते हैं, जिसे हम भुलाकर कोई गाडी चलाना सीख पाते हैं। दोस्तों, वैसे तो ऐसे ख्यालो को नकारात्मक मानते हुए बचने की सलाह दी जाती हैं। लेकिन, ये बुरे-नकारात्मक ख्याल ही असल में हमारे गुरु साबित होते हैं। अगर कोई इन सबके बारे में नहीं सोचेगा, तो निश्चित रूप से वो गिरेगा या चोट खायेगा। संभावित खतरे का आभास होगा तभी तो प्रशिक्षु सावधानी बरतते हुए वाहन चलाना सीख पायेगा।
दो = जब हम कोई नया व्यवसाय-व्यापार शुरू करते हैं, तो हमारे जेहन-मन में कई आशंकाएं (काम-धंधा चलने या ग्राहकी आने, आदि) भी पनपने लगती हैं। और जैसे ही ये आशंकाएं हमारे मन में उभरने लगती हैं, तभी से हम उन आशंकायों को झुठलाने-निर्मूल साबित करने की कोशिशे करने लगते हैं। सोचिये, अगर आदमी के मन में व्यापार के फ़ैल होने, या ग्राहक के ना आने, या प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने, आदि के नकारात्मक विचार नहीं आयेंगे तो वो बचाव के उपाय कैसे और क्यों करेगा???
तीन = जब कोई शेयर बाज़ार, म्युचुअल फंड, या अन्य कही अपना पैसा लगाता-निवेश करता हैं, तो वहाँ भी मन में नकारात्मक ख्याल (कितनी रिटर्न आएगी?, पैसा डूबेगा तो नहीं?, पैसा बढ़ने की बजाय घटेगा तो नहीं, या कही मैं जोखिम तो नहीं ले रहा?? आदि-आदि) आते हैं। लेकिन, नकारात्मकता को कही पीछे छोड़ते हुए निवेशक पूरी सुरक्षा-गारंटी के साथ अपना पैसा लगाता हैं। अगर ये ख्याल ना आये तो निवेशक अव्वल तो पैसा ही नहीं लगाएगा और अगर लगा भी लिया तो दुसरे को डूबता देख या तो मुडके शेयर बाज़ार की तरफ रुख ही नहीं करेगा या फिर आत्म-ह्त्या जैसा घातक कदम उठा बैठेगा।
.
दोस्तों, उपरोक्त उदाहरणों मैं आप या आपका कोई जानकार भी हो सकता हैं। लेकिन, ये उदाहरण बेहद आम हैं। हर वक़्त सकारात्मकता उचित नहीं हैं, कुछ हद तक नकारात्मकता भी आवश्यक हैं, बशर्ते नकारात्मकता आप पर हावी ना हो। ज़िन्दगी का कोई भी क्षेत्र हो, नकारात्मक और सकारात्मक दोनों ही पहलु आवश्यक हैं। जीवन में दोनों ही बातें होनी चाहिए लेकिन पलड़ा-वजन सकारात्मकता का ही भारी होना चाहिए।
.
कभी-कभी अनर्गल-नकारात्मक भी सोचना चाहिए, लेकिन सिर्फ उतना जितना आवश्यक हो। हद से ज्यादा या सकारात्मकता से ज्यादा सोचना निश्चित रूप से नुकसानदेह हैं। हर विषय में सोचना जरुरी हैं।
.
धन्यवाद।
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM