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सुधरने का मौक़ा तो दीजिये।
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जी हाँ, मैं यही कह रहा हूँ, जो आपने शीर्षक में पढ़ा हैं। अव्वल तो कोई सुधरना या अपनी गलती मानना ही नहीं चाहता, और ऊपर से हम आमतौर पर सुधरने का मौक़ा किसी को देते ही नहीं हैं। मेरी बात कडवी या चुभने वाली जरूर हैं, लेकिन हैं सौलह आने सच।
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पहली बात तो आज के ज़माने में, आज के घोर कल्युग में कोई सुधरना ही नहीं चाहता और भुला-भटका कोई सुधरना चाहे तो हम उसे सुधरने नहीं देते। उसको राह दिखाने या उसका हौसला बढाने की बजाय पुराना ही याद दिलाते रहते हैं। यह बहुत ही गलत प्रवृति हैं, जिससे हमें यथासंभव बचना चाहिए।
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उदाहरण के तौर पर--कोई चोरी-चकारी करने का आदी हो और वह सुधरना या बुरी आदत छोड़ना चाहे तो हम उसे एक मौक़ा देने की बजाय सुनाते रहते हैं। यह उदाहरण जो मैंने दिया हैं, कोई ख़ास या बड़ा उदाहरण नहीं हैं, लेकिन आम-सामान्य उदाहरण जरूर हैं, जिसकी तरफ शायद ही हमने ध्यान दिया हो।
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बहुत से मामलो में तो ऐसा लगता हैं मानो लोगो ने तो जैसे शपथ ही ले ली हो कि-"किसी को सुधरने ही ना देना हो या सुधार के सारे रास्ते बन्द कर देने हो।" ये बहुत बड़ा दुर्भाग्य हैं। मसलन, जैसे किसी को अंट-शंट, उलटी-सीधी गालियाँ बकने का शौक / आदत हो और वह स्वप्रेरणा या किसी की समझाइश पर बुरी आदत को त्यागना भी चाहे तो भी ना त्याग सके। वजह.....हम उसे ऐसा करने ही नहीं देंगे। जानबूझकर उसे गालियाँ सुनायेंगे, उसे उकसाने की हाड-तोड़ मेहनत करेंगे, उसे उसका अतीत याद दिलाएंगे, तब तक-जब तक वो वापस पुराने रास्ते (गालियाँ देने) को नहीं अपना लेता। और ऐसा करके हम मानो कोई एवरेस्ट की ऊँची चोटी को छू लेते हैं।
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किसी को बार-बार सुनाना, किसी को बार-बार उसके बीते कल के बारे में बताना, या उसे ये कहना-"अब क्या हो गया तुझे??, पहले तो बहुत उछला करता था।", आदि-आदि बहुत ही निंदनीय हैं। उसे बार-बार हतोत्साहित करने का अर्थ हैं, उसके लिए सुधार का मार्ग अवरुद्ध करना। हमें उसका हौसला बढ़ाना चाहिए, उसको सुधरने के लिए प्रेरित करना चाहिए, उसे सुधरने के विभिन्न मार्ग-उपाय सुझाने चाहिए।
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जबकि हम इसके ठीक उलट करते हैं, जिसके नतीजे भी उलट ही आते हैं। समाज में बढ़ते अपराधो के लिए हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं, कोई दुर्लभ से दुर्लभतम मामलो में कोई व्यक्ति-गुनाहगार सुधरने के लिए भुला-भटका आ भी जाए तो हम ही उसके सुधार की राह में रोड़े अटकाने लगते हैं। याद रखिये, ये वक़्त बहुत ही नाज़ुक होता हैं। ऐसे वक़्त में कड़े संयम की आवश्यकता होती हैं। बैर-भाव, गलतियों-भूलो, को भुलाकर उसे माफ़ी ना सही, पर सुधरने का मौक़ा तो देना ही चाहिए।
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ये हम सब की जिम्मेदारी हैं। ऐसा करके हम ना सिर्फ समाज से अपराधो को हटा पायेंगे, बल्कि भावी (भविष्य के) अपराधियों के लिए भी सुधार का मार्ग प्रशस्त कर सकेंगे। जब हम आज के-मौजूदा अपराधियों को सुधरने की राह दिखाएँगे, तो निश्चित रूप से हम भावी पीढ़ी के अपराधियों को भी अच्छे संस्कार दे सकेंगे।
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तो फिर आज से हम पुराना याद नहीं दिलाएंगे, राह दिखाएँगे, उत्साह बढ़ाएंगे, और सुधरने का एक मौक़ा तो अवश्य देंगे, ठीक हैं ना????
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धन्यवाद।
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CHANDER KUMAR SONI,
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bilkul sahi kaha aapne..
ReplyDeletekoi sudharna chahta b hai to ye samaj sudharne deta kaha hai???
अपनी भूल स्वीकारना , भूल सुधार की ओर पहला कदम है।
ReplyDeleteक्षमा बडान को चाहिए , छोटन के उत्पाद।
सही कहा आपने , एक अवसर तो देना चाहिए ।
सही कहा आपने , एक अवसर तो देना चाहिए ।
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