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बधाई हो ईमानदारी ज़िंदा हैं।
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इस सन्डे (दो मई) को मैं अपनी पत्नी के साथ शहर के प्रमुख पार्क में घूमने गया था। वहाँ बेंच पर बैठ कर मस्ती से गप्पे मारते हुए और भयानक गर्मी को कुल्फी से मात देने की कोशिश कर रहे थे। काफी देर पार्क में बैठने के बाद हम दोनों पति-पत्नी शहर में इधर-उधर घुमते रहे। मैंने करीब एक घंटे बाद अपनी पत्नी से मोबाइल में टाइम देख कर बताने को कहा तो उसने कहा-"मोबाइल तो आपने पास हैं।" मैंने कहा-"मेरा मोबाइल तो मेरी जेब में हैं, लेकिन सीट बेल्ट के कारण जेब से निकाल नहीं पा रहा, ड्राइविंग कर रहा हूँ। तू अपने मोबाइल में देख कर बता।" तब उसने कहा कि-"मोबाइल तो मेरे पास नहीं हैं। ओह नो, मोबाइल पार्क में रह/गिर गया। जल्दी चलो शायद मिल जाए।" मेरे हाथ-पैर फूल गए, मैंने झट से गाडी भगाई, और पार्क में पहुँच कर आस-पास की सारी जगह खंगाल डाली, लेकिन कही मोबाइल नहीं दिखा। पूरे रास्ते वो भगवान् से प्रसाद चढाने की बात कहती रही और मैंने पांच सौ रूपये का इनाम देने की बात कही।
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मैंने गाडी से और पार्क पहुँचने के बाद दो बार अपनी पत्नी के मोबाइल पर फ़ोन किया, लेकिन किसी ने उठाया नहीं। हमें लगा शायद किसी ने उठाया नहीं हैं, तभी तो घंटी जा रही हैं, वरना लोग तो सबसे पहले सिम ही निकाल फेंकते हैं, यही-कही पडा होगा। पुन: ढूंढ ही रहे थे कि-पत्नी के नंबर से फ़ोन आया, मैंने उन्हें मोबाइल के बारे में कहा और उन्हें वस्तु-स्थिति (पार्क का नाम, पार्क के बेंच की दशा/दिशा) बताई ताकि उन्हें यकीन हो जाए कि-हम जेनुइन लोग हैं।
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उस अनजान व्यक्ति ने मुझे उसी रोड पर स्थित एक हॉस्पिटल के बाहर बुलाया। मैं तत्काल वहाँ पहुंचा और दुबारा फोने किया, उसने कहा कि-मैं हॉस्पिटल के अन्दर हूँ आ जाइए।" मैं भागा, वो नहीं मिला, मैंने फ़ोन किया तो उस अनजान व्यक्ति ने कहा कि-"मैं तो वही पर हूँ, आप नहीं दिख रहे। कहाँ हो आप???" मुझे शंका हुई, मुझे लगा कि-ऐसे ही भगा रहा हैं, मोबाइल तो गया समझो। फिरभी हिम्मत जुटा कर मैंने कहा कि-"मैं मेन गेट पर खड़ा हूँ, आप आ जाइए।" तभी एक देवता के रूप में एक सरदार जी आये और मोबाइल मेरे हाथ मेन पकड़ा कर जाने लगे।
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मैंने उनहे अचंबित होकर देखा और पीछे से आवाज़ लगाकर रोका और धन्यवाद दिया। वो भी हंसता हुआ जाने लगा, मैंने उन्हें रोका और मेरा परिचय पत्र (विजिटिंग कार्ड) दिया और पांच सौ का नोट भी इनाम-स्वरुप देने लगा तो इनकार में सिर हिलाते और हँसते हुए वह जाने लगा। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था, इतनी जल्दी खोया मोबाइल भी दे गया। बिना कोई बात किये, बिना कोई हाय-हेलो किये, सरदार जी ने मोबाइल पकडाया और जाने लगे। उन्होंने मेरे से बात करना या कोई परिचय प्राप्त करने या परिचय देने जैसा कुछ नहीं किया, बस मोबाइल दिया और चलते बने।
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और मोबाइल लेने के बाद घर आने तक सारे रास्ते हम उस सरदार जी को सद-दुआएं देते रहे और भगवान् को भी धन्यवाद ज्ञापित करते रहे। इस घटना ने मेरा विश्वास ईमानदारी में बढ़ा दिया हैं। जो लोग इस दुनिया से, लोगो के दिलो से ईमानदारी के खत्म होने की बात कहते हैं, या दुनिया में ईमानदारी नाम की किसी चीज़ के अस्तित्व को ही नकारते हैं, उन्हें इस घटना से सबक मिल सकता हैं। मोबाइल करीब साढ़े चार हज़ार रुपयों का था और उसकी रीसेल वैल्यू करीब दो हज़ार तो थी ही, ऐसे में कोई बेईमान भी हो सकता हैं। लेकिन सरदारजी ने अनुकरनिय उदाहरण पेश किया हैं। इस घटना से साबित होता हैं कि-"दुनिया में ईमानदारी अभी भी कायम हैं, बस आवश्यकता हैं तो बस ईमानदारी को प्रोत्साहित करने और खुद ईमानदार बनाने की।"
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धन्यवाद।
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FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
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RAJASTHAN, INDIA.
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CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
मैंने उनहे अचंबित होकर देखा और पीछे से आवाज़ लगाकर रोका और धन्यवाद दिया। वो भी हंसता हुआ जाने लगा, मैंने उन्हें रोका और मेरा परिचय पत्र (विजिटिंग कार्ड) दिया
ReplyDeleteISSE SABIT HOTA HAI KAHI KAHI IMAANDAARI AAJ BHI ZINDA HAI.........
मान ना पड़ेगा....
ReplyDeleteमोबाईल वापस मिलने की बधाई और सरदार जी को मेरी भी दुआ....
मेरा तो नाम ही आशीष है!