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प्रकृति शहरों की ओर.......
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हाल ही में मैं जिला युवा काँग्रेस के कार्यक्रमों में गया। ये कार्यक्रम राज़स्थान के विकासदूत, युवा दिलो की धड़कन, सूझवान, ऊर्जावान, और राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में था। जि.यु.काँ. के ये कार्यक्रम एक सप्ताह तक सफलतापूर्वक चला। लगातार एक हफ्ते तक चले इस कार्यक्रम की विशेषता थी इसके सभी कार्यक्रमों का ग्रामीण क्षेत्रो में होना। जि.यु.काँ.के सभी कार्यक्रमों में ग्रामीणों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और सराहा।
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लगातार सात दिनों तक चले कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी के कार्यो और आदर्शो का प्रभाव था। इन्ही कार्यक्रमों में एक कार्यक्रम वृक्षारोपण (शहर से लगभग पच्चीस किलोमीटर दूर स्थित एक गाँव में) का भी था। मैं भी इस कार्यक्रम में उपस्थित था, वहाँ जिला युवा काँग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ-साथ ग्रामीणों में भी उत्साह देखने को मिल रहा था। वहाँ वृक्षारोपण करते समय ज्यादातर ध्यान नीम-पीपल-और बरगद की तरफ था। सब तरफ एक ही बात सुनाने को मिल रही थी कि-यार बरगद देना, भाई नीम हैं तो देना, क्या पीपल खत्म हो गए??, आदि-आदि। यानी जो भी व्यक्ति वृक्ष लगा रहा था वो इन तीनो में से ही कोई एक वृक्ष मांग रहा था, मानो और कोई वृक्ष-वृक्ष ना हो।
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पहले तो एक-दो बार मुझे अटपटा लगा, लेकिन बाद में मुझे बहुत अच्छा लगा। जिन वृक्षों को शहर में लगाना तो दूर, बल्कि लगे हुओं को भी धड़ल्ले से काटा जा रहा हैं, उन वृक्षों को लगाने के लिए यहाँ (गाँव में जि.यु.काँ.के कार्यक्रम में) होड़ मच रही हैं। मेरा मन खुश हो गया, संयोग से उसी दिन बेहद हलकी-हलकी बारिश भी हो रही थी। जिसकी वजह से लोगो को भीषण गर्मी से निजात भी मिल गयी थी और वृक्षारोपण के कार्यक्रम के लिए अनुकूल माहौल भी बन गया था।
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इस कार्यक्रम के बाद मेरे मन में कुछ सवाल उठ रहे थे, जिनके जवाब ग्रामीणों ने तो बेहद सरलता से और विस्तार से दे दिए हैं। अब देखना ये हैं कि-क्या शहरी लोग मेरे सवालों का जवाब दे पाते हैं या नहीं और अगर दे पाते हैं तो कब तक?? कुछ सवाल =
क्या वृक्षारोपण अभियान/कार्यक्रम शहरो में नहीं हो सकता?
क्या शहरो में पहले से लगे वृक्षों की रक्षा नहीं की जा सकती??
क्या शहरो में लगे वृक्षों को काटने से नहीं बचाया जा सकता??
क्या वृक्षों के अवैध कटान के लिए ज़िम्मेदार भू-माफिया और वन-माफिया पर सख्ती नहीं बरती जा सकती??
क्या शहरों को भी गांवो की तरह हरा-भरा और खुशहाल नहीं बनाया जा सकता?
आदि-आदि।
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जिला युवा काँग्रेस ने पर्यावरण संरक्षण की ओर कदम बढाते हुए गाँव में वृक्षारोपण किया क्योंकि इस बार के सभी कार्यक्रम (गहलोत जी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में) हमें गाँव में ही करने थे। लेकिन, शहरी व्यक्ति दूर-दराज जाने की बजाय अपने घर के लॉन-पार्क में, या घर के बाहर खाली पड़ी जमीन पर, या अन्य जगह पर एक वृक्ष भी तो लगा सकता हैं। आप आज नहीं तो कल पर्यावरण के महत्तव को समझेंगे, लेकिन समझेंगे जरूर। इसलिए, देर से समझने की बजाय अभी समझ जाइए ओर उचित स्थान देख कर कम से कम एक वृक्ष तो लगा ही डालिए।
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धन्यवाद।
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FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
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00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
क्या वृक्षारोपण अभियान/कार्यक्रम शहरो में नहीं हो सकता?
ReplyDeleteक्या शहरो में पहले से लगे वृक्षों की रक्षा नहीं की जा सकती??
क्या शहरो में लगे वृक्षों को काटने से नहीं बचाया जा सकता??
क्या वृक्षों के अवैध कटान के लिए ज़िम्मेदार भू-माफिया और वन-माफिया पर सख्ती नहीं बरती जा सकती??
क्या शहरों को भी गांवो की तरह हरा-भरा और खुशहाल नहीं बनाया जा सकता?
ho to sab kuch sakta hai...
par sarkar dhayn hi nahi deti aur janta sochti nahi........
मित्र,
ReplyDeleteटेम्पलेट बदलिये. कुछ पढ़ने में अटपटा है. शायद एलाइनमेन्ट या रंग...
वैसे अनेक शुभकामनाएँ.
प्रशंसनीय प्रयास।
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