.
क़ानून के ऐसे सकारात्मक दुरूपयोग से मैं सहमत।
.
हैरान रह गए ना, शीर्षक पढ़ कर। मैं किसी भी तरह के क़ानून का उल्ल्लंघन नहीं करता हूँ और ना ही किसी को ऐसा करने की सीख/प्रेरणा दे रहा हूँ। वैसे तो मैं नियम-कायदों और कानूनों का पालन करने वाला व्यक्ति हूँ, मैं जानबूझ कर क़ानून तोड़ने जैसा कार्य नहीं करता हूँ। जाने-अनजाने, भूलवश ऐसा हो तो और बात हैं। लेकिन इस बार बात ही कुछ ऐसी हैं, जो मैं कह रहा हूँ कि-"क़ानून के ऐसे सकारात्मक दुरूपयोग से मैं सहमत।" आप भी वाक्यांश जानेंगे तो आप भी कहेंगे-"क़ानून का ऐसा दुरूपयोग तो होना ही चाहिए।"
.
वाक्यांश यह हैं = हमारे किसी काफी दूर के रिश्तेदार की बेटी (जिसे मैं जानता तो नहीं, पर सुना हैं) की शादी कुछेक साल पहले हुई थी। उसका पति खूब शराब पीया करता था, वो अव्वल दर्जे का शराबी था। कमाई करने, बीवी और घरवालो की तरफ ध्यान देने की तरफ से लापरवाह था। बीवी बहुत समझाती पर कमाई करने और शराब छोड़ने की उसने रत्ती भर भी कोशिश नहीं की। कालान्तर में एक बेटी भी हो गयी, बेटी के होने के बाद उसके सुधरने की उम्मीद जगी थी। पर अफ़सोस, ऐसा ना हो सका, सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया।
.
वो शराबी सारे दिन घर पर पडा रहता या मोहल्ले में इधर-उधर ताश-जुआ खेलता रहता। सारा का सारा पैसा शराब में उड़ा डालता, अगर थोड़े-बहुत रुपये बच जाते तो उसे जुए-सट्टे में बर्बाद कर आता। पत्नी बहुत समझाती पर उसके कान में जू तक ना रेंगती, आये दिन घर में तनाव-क्लेश का माहौल बना रहता। जब उसकी बीवी बुरी तरह दुखी होकर उस पर ज्यादा दबाव बनाती या लताडती तो वो मारपीट पर उतारू हो जाता। उसके दिल में घर में छोटी नन्ही-बेटी की लिहाज़ करने जैसी कोई बात नहीं थी। उसे तो सिर्फ और सिर्फ शराब ही दिखती थी।
.
बेहद दुखी हो गयी थी उसकी बीवी। समझा-समझा कर थक चुकी थी उसकी बीवी, दारु-दारु-और सिर्फ दारु ही उसके पति की ज़िन्दगी रह गयी थी। बहुत बार रिश्ते-नातेदारों की पंचायत भी बैठी, लेकिन उसके पति ने किसी भी पंचायत के फैसले को नहीं माना। अब उस औरत के ज़िन्दगी में आये दिन मारपीट-गालीगलौच होना, लड़ाई-झगडा, तनाव ही रह गया था। कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था उसे, एक तो कम पढीलिखी थी और दूसरा एकदम निम्न-वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी। दूसरी शादी करने या अपने पति को छोड़ कर चले जाने की बात तो स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी। यही वजह थी की-"किसी भी पंचायत में इन दो बातो की तरफ तो सोच-विचार ही नहीं किया गया।" बेचारी हर बार पंचायत के सफल होने की प्रार्थना करती लेकिन ना जाने कब भगवान् उसकी पुकार सुनता और कब पंचायत सफल होती???
.
उसके माँ-बाप, परिजन, शुभचिंतक सभी दुखी थे। कुछ किया तो जा नहीं सकता था, इसलिए सभी उसका हौसला बढाते और भगवान् में आस्था बनाए रखने की नसीयत देते। लेकिन, इन हौसलों और आस्था मात्र से भला कभी कुछ हुआ हैं??? हौसला और आस्था भी तभी काम आते हैं, जब लगनपूर्वक प्रयास किये जाए। बैठे-बिठाए नातो हौसला काम देता हैं और नाही आस्था। उसका दिमाग खराब हो चुका था। आलसी और शराबी पति से छुटकारा तो पाया नहीं सकता था लेकिन सुधारा तो जा सकता था। बस, इसी दिशा में उसका दिमाग चल रहा था। दिमाग चल रहा था, दिमाग कोई रास्ता ढूँढने में लगा हुआ था, तभी..........तभी.........
.
तभी उसके दिमाग में एक विचार कौंधा। यह विचार दिमाग में आते ही, उस दुखियारी की बांछे खिल उठी। बिना किसी को अपना विचार-उपाय बताये, बिना किसी से (यहाँ तक की अपने माँ-बाप से भी नहीं) चर्चा किये पहुँच गयी अपने आलसी पति के कमरे में। चढ़ी दोपहरी में उसका पति अपने कमरे में दारु पीने में लीन था, इस तरह बेधड़क अपनी बीवी को कमरे में घुसता देखना उसके लिए दुनिया के किसी आठवे अजूबे से कम ना था। कभी बिना दरवाज़ा खटखटाए उसकी बीवी उसके कमरे में कभी घुसी ही नहीं थी, आखिर शान्ति-तसल्ली के साथ दारु जो पीता था.....तभी तो वह हैरान होकर, अवाक होकर अपनी बीवी को कमरे में आते देख रहा था।
.
उसकी बीवी आते ही उसको सुनाने लगी-"कोई काम-धाम तो करते नहीं, सारे दिन दारु पीते रहते हो। अपनी कमाई की दारु पियो तो मुझे कोई ऐतराज़ नहीं होता, लेकिन तुम तो मेरी मेहनत के पैसे दारु पर लगा रहे हो। बहुत हो लिया, अब और ऐसा नहीं चलेगा, कमाई करके लाओ तो मानु, मुफ्त की दारु अब और नहीं मिलेगी। यह भी भला कोई तरीका हैं मैं दिनभर सिलाई-कढाई करके पाई-पाई जोडू और तुम शाम को आकर मेरे पैसे दारु-सट्टे-जुए में लुटा दो। मेरा नहीं सोचा, कोई बात नहीं, सहन कर लिया। अब बेटी भी हैं, इसके भविष्य, इसकी पढ़ाई-लिखाई की अब तो सोचिये, पहले बच्ची थी अब स्कूल जाने लायक हो गयी हैं, इसको पढ़ाना भी तो हैं। कब तक सारे दिन घर पड़े-पड़े दारु पीते रहोगे???? अब ऐसा हरगिज नहीं होगा, कमाई करो तभी दारु पीने दूंगी, वरना....."
.
अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि-तभी जोरदार चांटा उसके गाल पर पडा और उसके शराबी पति के यह शब्द उसके कान में गूंजे-"क्या वरना?, क्या कर लेंगी तू??, क्या औकात हैं तेरी??, तू (गाली-गाली-गाली) अपने आप को समझती क्या हैं??, तेरी कमाई और मेरी कमाई में कोई फर्क नहीं हैं, समझी??, मेरी मर्ज़ी जो चाहूँगा करूंगा तू (गाली) कौन होती हैं रोकने वाली??, अगर मैं तुझे ब्याह के ना लाता तो तू कही (गाली) पर बैठी होती। आदि-आदि।" आये दिन मारपीट सहने की आदि हो चुकी पत्नी ने शायद पूरी तैयारी कर रखी थी, तभी तो उस पर इस बार की मारकुटाई का कोई प्रभाव नहीं पडा और उसने कह डाला-"अगर तुमने शराब ना छोड़ी और कमाई करना शुरू नहीं किया तो मैं तुझे अन्दर करवा दूंगी।" उसके पति के तेवर अभी भी नरम नहीं पड़े थे, एक और चांटा उसे जड़ा और घर से निकल जाने का फरमान सुना दिया। उसकी पत्नी भी शायद आखिरी लड़ाई-आर या पार करने की ठान चुकी थी, तभी तो उसने अपना उपाय बेझिझक कह दिया-"मैं इस घर से निकलूं या ना निकलूं, तुझे जेल में डलवा दूंगी। मैं तेरे खिलाफ दहेज़ मांगने और मारपीट करने का मुकद्दमा दर्ज करा दूंगी, वहाँ बैठा चक्की पीसते रहना। ऐसी गत करुँगी, कि-"दुनिया के सारे पति शराब और आलस से कोसों दूर हो जायेंगे।" अभी भी मान जा, कमाई करने की और शराब छोड़ने की तरफ ध्यान दे ले, वरना अन्दर जाने के लिए तैयार हो जा।"
.
ठीक ऐसी ही क्लास उसने अपने पति की दो-चार बार और लगाईं और लड़ाई जीतने में कामयाब रही। आज उसका पति ना सिर्फ आलस्य त्याग कर अच्छी-खासी कमाई कर रहा हैं, बल्कि उसने शराब भी लगभग छोड़ ही दी हैं। इतना ही नहीं अब उनके एक बेटा भी हैं, और दोनों बच्चे शहर के महंगे, जाने-माने स्कूल में पढ़ रहे हैं। उसके पति की आय अब इतनी हैं कि ना सिर्फ उनके घर का खर्च आराम से निकल जाता हैं बल्कि काफी पैसा बचत खातो और विभिन्न स्थानों पर निवेश भी कर रखा हैं। और जब इतना सब हो तो, पत्नी को काम करने कि क्या आवश्यकता हैं? बस, अब तो उसका एकमात्र काम घर संभालना, बच्चो को पढ़ाना, और "प्रिय" पतिदेव का ख्याल रखना ही रह गया हैं।
.
अभी कुछ दिनों पहले उनका कई सालो बाद हमारे घर आना हुआ। मेरी मम्मी ने, हैरानी जताते हुए, जब उनके इस हौसले और कदम की तारीफ़ की, तो उनका जवाब और भी हैरानी पैदा कर गया। उनका जवाब था-"अरे भाभी जी, इसमें कोई हौसला-वौसला जैसा कुछ भी नहीं था। मैं गुस्से में थी, इसलिए उनसे लड़ पड़ी, और लड़ाई-लड़ाई में मैंने उन्हें अपने प्लान के मुताबिक़ लपेट लिया। अक्सर गुस्से में हम लड़ पड़ते थे, इसलिए इस बार भी गुस्सा होकर लड़ रहे थे। हर बार लड़ाई में मैं उन्हें कुछ-ना-कुछ कहती थी, इस बार भी मैंने यह सब कह दिया और काम बन गया।" अब तक मम्मी को सारी बात समझ में आ चुकी थी, मम्मी बोली-"इस बार की कही बात असर कर गयी, अगर हर बार की तरह यह बात भी काम ना आती तो तेरा घर-बार-परिवार सब छुट चुका होता। तू बर्बाद हो चुकी होती......"
.
तो यह था वाक्यांश। अब तो आप सबको समझ में आ गया होगा कि-"कैसे क़ानून के दुरूपयोग ने एक औरत के जीवन को नरक-तबाह होने से बचा लिया???" दोस्तों मैं क़ानून के दुरूपयोग के सख्त खिलाफ हूँ, आये दिन सुनाने-पढने-देखने को मिलता हैं कि-"दहेज़-मारपीट, आदि कानूनों का दुरूपयोग हो रहा हैं, इस लड़की ने इसे फंसा दिया या इस औरत ने क़ानून का दुरूपयोग करके इस लड़के की ज़िन्दगी तबाह कर दी, आदि-आदि।" लेकिन कही भी मैंने दहेज़-मारपीट क़ानून के सदुपयोग की बात नहीं सुनी हैं। कुछेक जगह सदुपयोग बेशक हुआ हो, लेकिन अमूमन इस क़ानून का उपयोग दुसरे को दबाने-तबाह करने में ही किया जाता हैं। अपने हिन्दुस्तान की यही तो कमी हैं, इसके क़ानून में कई लूप-होल्स (छिपे-छिद्र) हैं, यहाँ क़ानून लागू तो कर दिए जाते हैं, लेकिन उस क़ानून के दुरूपयोग को रोकने के कोई प्रभावी उपाय नहीं किये गए है। यही वजह हैं कि-"यहाँ सभी कानूनों में से सबसे ज्यादा दुरूपयोग दहेज़ क़ानून का ही होता हैं।"
.
मुझे डर हैं कि-"कही इन दहेज़ कानूनों का दुरूपयोग इतना ना बढ़ जाए कि-"सरकार को यह क़ानून रद्द ही ना करना पड़ जाए" और औरते फिर से बिन-क़ानून के लाचार हो जाए।" भगवान् करे ऐसा ना हो कि-"बिना क़ानून के औरते 19वीं सदी की स्थिति में पहुँच जाए और फिर औरतो पर जुल्मोसितम का युग लौट कर पुन: आ जाए।"
.
मुझे दहेज़-मारपीट क़ानून का ऐसा सकारात्मक दुरूपयोग मंजूर हैं, मैं कानून के ऐसे दुरूपयोग से सहमत हूँ। तो आइये आप और मैं मिलकर औरतो से यह आह्वान करें कि-"कीजिये क़ानून का ऐसा सकारात्मक दुरूपयोग, तभी सभी बुरे-बिगडैल पति सुधर कर, हदों में रहेंगे। तभी यह क़ानून टिका-कायम रहेगा। वरना जिस हिसाब से इस क़ानून का दुरूपयोग बढ़ रहा हैं, उस हिसाब से यह क़ानून जल्द ही वापस-समाप्त होता लग रहा हैं।"
.
धन्यवाद।
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
ये तो सौभाग्य रहा की खाली धमकी से ही काम चल गया। वर्ना शराबी को ठीक करना इतना आसान नहीं होता।
ReplyDeleteकाननों का दुरूपयोग भी होता तो है, लेकिन इस केस में तो और भी रास्ते रहे होंगे कानून के सदुपयोग के ।
आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें।
मैं भी सहमत हूँ.
ReplyDeleteसमस्या का हल आसानी से हो गया.
आपको होली की बधाई.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteनमस्कार! आपका सुझाव मिला! आभार! हींग को अंग्रेजी में ASAFOETIDA कहते है !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुतिकरण । साधुवाद !
ReplyDelete