मेरे इस ब्लॉग का उद्देश्य =

मेरे इस ब्लॉग का प्रमुख उद्देश्य सकारात्मकता को बढ़ावा देना हैं। मैं चाहे जिस मर्ज़ी मुद्दे पर लिखू, उसमे कही ना कही-कोई ना कोई सकारात्मक पहलु अवश्य होता हैं। चाहे वह स्थानीय मुद्दा हो या राष्ट्रीय मुद्दा, सरकारी मुद्दा हो या निजी मुद्दा, सामाजिक मुद्दा हो या व्यक्तिगत मुद्दा। चाहे जो भी-जैसा भी मुद्दा हो, हर बात में सकारात्मकता का पुट जरूर होता हैं। मेरे इस ब्लॉग में आपको कही भी नकारात्मक बात-भाव खोजने पर भी नहीं मिलेगा। चाहे वह शोषण हो या अत्याचार, भ्रष्टाचार-रिश्वतखोरी हो या अन्याय, कोई भी समस्या-परेशानी हो। मेरे इस ब्लॉग में हर बात-चीज़ का विश्लेषण-हल पूर्णरूपेण सकारात्मकता के साथ निकाला गया हैं। निष्पक्षता, सच्चाई, और ईमानदारी, मेरे इस ब्लॉग की खासियत हैं। बिना डर के, निसंकोच भाव से, खरी बात कही (लिखी) मिलेगी आपको मेरे इस ब्लॉग में। कोई भी-एक भी ऐसा मुद्दा नहीं हैं, जो मैंने ना उठाये हो। मैंने हरेक मुद्दे को, हर तरह के, हर किस्म के मुद्दों को उठाने का हर संभव प्रयास किया हैं। सकारात्मक ढंग से अभी तक हर तरह के मुद्दे मैंने उठाये हैं। जो भी हो-जैसा भी हो-जितना भी हो, सिर्फ सकारात्मक ढंग से ही अपनी बात कहना मेरे इस ब्लॉग की विशेषता हैं।
किसी को सुनाने या भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए मैंने यह ब्लॉग लेखन-शुरू नहीं किया हैं। मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से पीडितो की-शोषितों की-दीन दुखियों की आवाज़ पूर्ण-रूपेण सकारात्मकता के साथ प्रभावी ढंग से उठाना (बुलंद करना) चाहता हूँ। जिनकी कोई नहीं सुनता, जिन्हें कोई नहीं समझता, जो समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं हैं, जो अकेलेपन-एकाकीपन से झूझते हैं, रोते-कल्पते हुए आंसू बहाते हैं, उन्हें मैं इस ब्लॉग के माध्यम से सकारात्मक मंच मुहैया कराना चाहता हूँ। मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से उनकी बातों को, उनकी समस्याओं को, उनकी भावनाओं को, उनके ज़ज्बातों को, उनकी तकलीफों को सकारात्मक ढंग से, दुनिया के सामने पेश करना चाहता हूँ।
मेरे इस ब्लॉग का एकमात्र उद्देश्य, एक मात्र लक्ष्य, और एक मात्र आधार सिर्फ और सिर्फ सकारात्मकता ही हैं। हर चीज़-बात-मुद्दे में सकारात्मकता ही हैं, नकारात्मकता का तो कही नामोनिशान भी नहीं हैं। इसीलिए मेरे इस ब्लॉग की पंचलाइन (टैगलाइन) ही हैं = "एक सशक्त-कदम सकारात्मकता की ओर..............." क्यूँ हैं ना??, अगर नहीं पता तो कृपया ज़रा नीचे ब्लॉग पढ़िए, ज्वाइन कीजिये, और कमेन्ट जरूर कीजिये, ताकि मुझे मेरी मेहनत-काम की रिपोर्ट मिल सके। मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आप सभी पाठको को बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद, कृपया अपने दोस्तों व अन्यो को भी इस सकारात्मकता से भरे ब्लॉग के बारे में अवश्य बताये। पुन: धन्यवाद।

Monday, October 18, 2010

.
इन मासूमो का क्या कसूर???
.
मुझे ये समझ में नहीं आता हैं कि--"बड़ो की लड़ाई में बच्चे (नासमझ या 15 साल से कम उम्र के) क्यों पिस जाते हैं?? माता-पिता की आपसी लड़ाई-झगडे-तनाव का बच्चो पर बहुत बुरा असर पड़ता हैं। बड़े लोगो की लड़ाई में भला बच्चो का क्या काम?? घर--परिवार के बड़े लोगो को सौ तरह की परेशानियां, टेंशन, वगैरह होती हैं, उनमे बच्चो (नासमझ या 15 साल से कम उम्र के) को शामिल करना या घसीटना क्या उचित हैं?? चाहे वे आर्थिक परेशानियां हो या धार्मिक (किसी विशेष रीति-नीति को मानने या ना मानने को लेकर) तनाव हो, चाहे वे पैसे के लेन-देन को लेकर हो या संपत्ति विवाद, पति-पत्नी के आपसी, निजी झगडे हो या सास-ससुर को लेकर तनाव, चाहे वे देवरानी-जेठानी को लेकर टेंशन हो या भाई-भाभी को लेकर मनमुटाव, और चाहे बच्चो को लेकर (लालन-पालन को लेकर या किसी के द्वारा डांट या मार देने पर) आदि-आदि।
.
कोई भी, जैसा भी, जिससे भी, और जितना भी विवाद-तनाव क्यों ना हो, बच्चो को यथासंभव इन सबसे दूर ही रखा जाना चाहिए। बच्चो (नासमझ या 15 साल से कम उम्र के) के सुखद भविष्य के लिए उन्हें इन सभी नकारात्मक, बुरी, और बोझिल मुद्दों-बातों से हर हाल में ही दूर रखना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से, होता ठीक उलटा ही हैं। जो नहीं होना चाहिए, वो जानते-बूझते हुए किया जाता हैं। दूर-दूर से मौजूद (कमरों में, घर में या कभी-कभी घर से बाहर से भी) बच्चो को पुकार-पुकार कर बुलाया जाता हैं। कभी गवाही के नाम पर तो कभी पोल खोलने के नाम पर तो कभी हाँ-ना भरने के नाम पर, और तो और कभी-कभी तो उन्हें सारी हदें पार करते हुए, उन्हें (बच्चो को) पूरी कहानी (स्कूली-शैक्षिक कहानी नहीं) विस्तार से सुनाने के नाम पर बुला लिया जाता हैं।
.
ये अभिभावक लोग जाने-अनजाने इन मासूमो (नासमझ या 15 साल से कम उम्र के) के साथ कैसा क्रूर खेल खेल जाते हैं??, इसका उन्हें (माता-पिता या अभिभावकों को) जब तक अहसास होता हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती हैं। बच्चो में बुरे संस्कार डल चुके होते हैं, इतिहास गवाह हैं और खुद विज्ञान भी इस बात को मानता हैं कि-"लड़ाई-दंगा, उठापटक, हिंसा, तनाव, और टेंशन से गुजरने वाले बच्चो पर बेहद बुरा असर पड़ता हैं। उनके भी भविष्य में हिंसक और तनावग्रष्ट होने की संभावना अधिक रहती हैं। बड़े होने प वे काफी जिद्दी, उद्दंड, गुस्सैल, और नकारात्मक विचारों वाले साबित हो सकते हैं। विवाह होने के बाद ये संभावना भी प्रबल रहती हैं कि-"उनका परिवार, बीवी-बच्चे भी वो सब झेल सकते हैं जो उन्होंने झेला होता हैं। क्योंकि उन्हें ये सब जायज़ और उचित प्रतीत होता हैं। इस तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी ये समस्या आगे हस्तांतरित होती जाती हैं।"
.
हैरानी तो तब होती हैं जब बच्चो (नासमझ या 15 साल से कम उम्र के) की लड़ाई में बड़े भी शामिल हो बैठते हैं। बड़ो की लड़ाई-तनाव में बच्चो का शामिल होना जितना नुकसानदेह हैं उससे कहीं ज्यादा नुकसानदेह बच्चो की लड़ाई में बड़ो का शामिल होना हैं। स्कूल में या गली-मोहल्ले में जब बच्चा किसी अन्य से लड़कर घर आता हैं तो हर बार तो नहीं, पर कभी-कभी माता-पिता भी उन बच्चो को डांटने (कभी-कभार पीट तक देने) या उनके माँ-बाप से उलझ बैठते हैं। ऐसा करके वे अपने बच्चो को एकांगी बना रहे होते हैं क्योंकी बच्चा तो स्कूल-मोहल्ले में बदनाम हो जाता हैं और अन्य अभिभावक अपने-अपने बच्चो को उस बच्चे (जिसके अभिभावक आकर लड़े हो) के साथ ना खेलने और दूर रहने की हिदायत दे देते हैं। और स्कूल में भी सहपाठी नाराज़ हो जाते हैं। इन सभी घटनाक्रमों से बच्चा एकांगी हो जाता हैं, उसमे मिलनसारिता की भावना का विकास नहीं हो पाता या खत्म हो जाती हैं। मिलनसारिता के अभाव में बच्चे की तरक्की के रास्ते भी सीमित या बंद हो जाते हैं।
.
बड़ो की लड़ाई में बच्चो को किसी भी हाल में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। यदि बच्चा (नासमझ या 15 साल से कम उम्र के) तनाव के माहोल में आपके निकट भी हो तो उसे कहीं दूर, खेलने, या पढने भेज देना चाहिए। बच्चा किसी एक का नहीं होता हैं, वो सबका होता हैं। पहली बात तो उसमे सही-गलत की समझ भी पूरी नहीं होती हैं और दूसरी बात वो किसका पक्ष ले??, किसी एक का पक्ष ले तो फंसा और दुसरे का पक्ष ले तो भी फंसा, इधर कुंवा और उधर खाई वाली विकट-स्थिति आ जाती हैं मासूम के आगे। बेचारा, मैदान छोड़कर (यानी बिना कोई पक्ष लिए या जवाब दिए) भी तो नहीं जा सकता। बच्चा अगर 15 साल से बड़ा या समझदार हैं तो और बात हैं लेकिन, फिर भी उसे आपसी झगड़ो-तनावों, चिंताओं से अवोइड-इग्नोर (बचना) करना चाहिए।
.
बच्चा जिस माहोल में पलेगा-बढेगा, वैसे ही उसके संस्कार होंगे। अगर वो लड़ाई-झगडा, दंगा-फसाद, मार-पी, तनाव, टेंशन, आदि माहोल में रहेगा तो उसे वो माहोल अजीब नहीं लगेगा। भविष्य में वो बच्चा वोही सब करेगा जो उसने अपने बाल्यावष्ठा में देखा होगा। फिर उसे ये सब करने में कोई झिझक या डर या नफरत नहीं होगी, वो इसे सामान्य और साधारण सी बात मानने लगेगा, जिससे ये तनाव, ये कारात्मक माहोल आगे-से-आगे, पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता जाएगा। अच्छा खानदान या घराना उसे ही कहा जाता हैं जहां पीढ़ी-से-पीढ़ी अच्छे संस्कार चले आ रहे हो। अगर आप गलत हो जायेंगे तो घराने का नाम लुप्त-ख़त्म हो जाएगा। फिर आप या आपके नीचे की पीढ़ी जब अच्छा प्रयास करेगी तो वो घराना नहीं बल्कि मात्र अच्छे परिवार का ही नाम कर पाएंगी। अच्छा घराना या खानदान बनाने के लिए पुन: पीढ़ियों तक अच्छा बना रहना पडेगा, यानी की मतलब साफ़ हैं। उजाड़ना हो तो मात्र एक ही पीढ़ी काफी हैं और बनाना या विकसित करना होतो कई पीढियां खपानी-लगानी-गुजारनी पड़ती हैं।

.
तो आपका क्या फैसला हैं??, जायेंगे बच्चो के बीच या उन्हें खेलने-कूदने-मौजमस्ती मारने देंगे??
.
धन्यवाद।
.
FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

5 comments:

  1. आपका कहना सही है । घर के माहौल का असर बच्चों पर पड़ता ही है । बच्चे के अविकसित मन पर प्रभाव भी जल्दी पड़ता है । इसलिए बच्चों के सामने यथा संभव कोई ऐसी बात या काम नहीं करना चाहिए जो उसके लिए उपयुक्त न हो ।

    ReplyDelete
  2. yah to gujre zamae se hi chala aa rah ahai..
    Maa Baap ke bich koi an ban ya ladai jhagde ka sidha asar unse masoom bachho par hi padta aaya hai.
    jisme unka koi karoor nahi hai
    pata nahi maa baap kab is baat ko samjhenge
    ki unhe apni apsi unban ko apne hi paas rakhe
    agar koi bhi baat hai to use aaps me hi suljha le.
    taki iska parbhav bachho par na pade
    isi parkar ki samasyao ke karan bancha apna mansik santulan kho dete hai
    jo bad me badi samsya ban jati hai...

    Adarniya soni ji
    aapka parsar bahut hi srahniya hai

    ReplyDelete
  3. घर प्रथम पाठशाला है..इसका प्रभाव तो बच्चों पर पड़ना ही है..यथा संभव बच्चों को झगड़े से दूर ही रखना चाहिए..जहां घर का माहौल ठीक न हो वहाँ बच्चों को हो सके तो छात्रावास में ही डाल देना उचित है।

    ReplyDelete
  4. bilkul yehi hota hai, bachhe bilkul saaf man ke hote hai or kisi bhi achi ya buri baat ka un par bahut jaldi asar padta hai...

    Mere blog par bhi sawaagat hai aapka.....

    http://asilentsilence.blogspot.com/

    http://bannedarea.blogspot.com/

    Music Sunne or Download karne ke liye Visit karein...
    Download Direct Hindi Music Songs And Ghazals

    ReplyDelete
  5. Aap ki baat se sahmat hun main ... bachhon ko jitna ho sake aise maahol se door rakhna chaahiye ... unke vokaas ke liye ye bahut jaroori hai ...

    ReplyDelete

सुस्वागतम,
मुझे आपका ही इंतज़ार था,
कृपया बेझिझक आप अपने अच्छे-बुरे, सकारात्मक-नकारात्मक, जैसे भी हो,
अपने विचार-सुझाव-शिकायत दर्ज करे.
मैं सदैव आपका आभारी रहूंगा.
धन्यवाद.