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हम राजनीति क्यों नहीं करते???
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मेरा सवाल गलत नहीं हैं. नाही मेरे इस सवाल को लेकर किसी को कोई आपत्ति होनी चाहिए. मुझे समझ में नहीं आता हैं कि-
हम लोग घरो में राजनीति (लड़ाई-झगडे या नीचा दिखाकर) करते हैं,
हम लोग दफ्तरों में अपनी धाक जमाने के लिए राजनीति (दूसरो को गलत साबित करने या बॉस से नजदीकियां बढ़ाकर) करते हैं,
हम लोग सरकारी दफ्तरों में अपना काम निकलवाने के लिए राजनीति (सिफारिशें या चालाकी) करते हैं,
यहाँ तक कि हम लोग मित्रमंडली में भी राजनीति करने से बाज़ नहीं आते,
हम लोग अपने-पराये की राजनीति खेलते हैं,
हम लोग तेरा-मेरा की राजनीति करते हैं,
हम लोग निर्जीव सामानों, चीज़ों को भी पाने के लिए राजनीति करते हैं,
हम लोग गाडी, वाहन चलाते वक़्त भी राजनीति (किसके आगे या पीछे चले, किसे आगे जाने दे और किसे रोकें) करते हैं,
हम हर जगह, हर वक्त, हर किसी के साथ राजनीति खेलते हैं,
आदि-आदि.
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लेकिन दुर्भाग्य से हम राजनीति इनके लिए बिलकुल नहीं करते =
देश के लिए,
राज्य के लिए,
पढ़ाई के लिए,
रोजगार के लिए,
रोटी, अन्न, अनाज के लिए,
स्वच्छ पेयजल के लिए,
गली-मोहल्लो और शहर की साफ़-सफाई के लिए,
राष्ट्रभाषा हिन्दी को अंग्रेजी से बचाने के लिए,
धर्म के लिए,
समाज के लिए,
न्याय-इन्साफ के लिए,
भ्रष्टाचार-रिश्वतखोरी के खिलाफ,
आदि-आदि
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जब हमें व्यक्तिगत तौर पर कभी कोई दिक्कत आती हैं तभी हम कुछ करते हैं, वरना नहीं. हमारे खुद के घर-दूकान के बाहर गन्दगी या नाली जाम होती हैं तभी हम जागते हैं वरना नहीं. क्यों???
आपकी अपनी भाषा हिन्दी पर आज अंग्रेजी हावी हो रही हैं तो भी आप चुप हैं. कुछ करते क्यों नहीं??? अपने बच्चो को हिन्दी माध्यम स्कूलों में बेशक ना डालिए पर संस्कारित तो कीजिये, उनसे कम से कम घर पर भी तो अंग्रेजी मत बुलवाइए. करियें कुछ??
हर सरकारी विभाग-दफ्तर में भ्रष्टाचार हैं और आप चुप क्यों हैं?? भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में शिकायत दर्ज कराइए या किसी ऐसी सिफारिश का सहारा लीजिये जो वो कर्मचारी या अधिकारी रिश्वत मांगने की जुर्रत भी ना करे.
जाति-धर्म की राजनीति को आप कुछ लोगो के कहने मात्र से गलत समझने लगे हैं. क्यों?? ये बेहद शर्म की बात हैं. मत भूलिए, आज सभी जातियों और सभी धर्मो में छोटी-बड़ी बुराइयां व्याप्त हैं. वोटो की राजनीति चाहे ना करे पर उन कुरीतियों और बुराइयों को तो मिटाने के लिए तो राजनीति कर ही सकते हैं. नेता बनकर आप अच्छी सलाह-राय तो दे ही सकते हैं. अधिकांशत: नेता लोग ही समाज, जाति, और धर्म को अच्छी सीख-राह दे सकते हैं. क्योंकि हर समाज या जाति में साधू-संतो का होना संभव नहीं हैं. ऐसे में नेता ही बेहतरीन विकल्प हैं.
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ये दुखद हैं कि-आप ऊपर दी गयी पहली सूची के लिए तो दिलोजान से राजनीति कर रहे हैं पर दूसरी सूची के लिए आप सपने में भी राजनीति नहीं करते. क्यों???
राजनीति का अर्थ वोटो की राजनीति करना बिलकुल भी नहीं हैं. राजनीति करने का अर्थ हैं अपना प्रभाव बनाना, अपना रूतबा, अपनी ताकत को बढ़ाना. आप राजनीति से नफरत मत कीजिये. अगर आपको कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं तो सिर्फ निम्नलिखित दो रास्ते तो अवश्य ही बेहिचक अपनाइयेगा =
पहला, सूचना का अधिकार अधिनियम = प्रति सूचना मात्र दस रूपये का खर्चा ही आयेगा. किसी भी भी विभाग से, किसी भी तरह की, कोई भी सूचना, कहीं भी, कभी भी मांग लीजिये. आपको एक महीने के अन्दर-अन्दर सूचना अवश्य मिल जायेगी. अगर एक महीने के बाद भी आपको वांछित सूचना ना मिले तो आप अपील भी कर सकते हैं. जिसपर उन्हें (जिनसे आपने सूचना चाहि होगी) भारी जुर्माना भी लगेगा. सबसे बड़ी बात, झूठी सूचना लिखित में कदापि नहीं दी जा सकती, मुहं-जबानी बेशक दी जा सकती हैं. इसलिए अपने इस धारदार हथियार का खुलकर उपयोग कीजिये.
दूसरा, जनहित याचिका = आप किसी भी मुद्दे को लेकर अपने क्षेत्राधिकार के हाईकोर्ट (उच्च न्यायालय) भी जा सकते हैं. आपको ना स्टाम्प पेपर की आवश्यकता हैं, ना किसी वकील को करने की, और ना ही वकालत वाली उलझन भरी भाषा को जानने, सीखने-समझने की. आपको तो बस, साधारण हिन्दी (या आपकी अपनी भाषा) में एक पत्र ही लिखना होगा. उस पत्र के साथ, आपको किसी भी अखबार में छपी किसी खबर की या सूचना के अधिकार के माध्यम से मिली किसी सूचना की तीन-तीन प्रतियों को हाईकोर्ट भेजना होगा. उसके बाद, सारी कार्रवाही हाईकोर्ट (उच्च न्यायालय) करेगा. आपको ना तो अदालतों के चक्कर काटने होंगे, नाही अदालत और विभाग के बीच आप पीसेंगे. आपको तो कही भी नहीं रखा जायेंगा मतलब केस-मुकद्दमा हाईकोर्ट बनाम दफ्तर-विभाग होगा. आपको तो बस, ऊपर बताया गया छोटा सा और आसान सा काम करना होगा.
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मैं ऐसे कई लोगो को निजी तौर पर जानता भी हूँ. और भी ना जाने कितने लोग ऐसे हैं जो वोटो की राजनीति नहीं करते और नाही कभी कोई चुनाव लड़ते हैं, लेकिन अपने आसपास, गली-मोहल्लो और शहर की समस्याओं को उठाते रहते हैं. कभी कहीं तो कभी कहीं, आज इधर तो कल उधर, यानी लोगो की समस्याओं को उठाने और आम आदमी को जगाने (जागरूक करने) में हमेशा आगे (तत्पर) रहते हैं. ये असल में समाजसेवी होते हैं, ये सज्ज़न लोग होते हैं, लेकिन पुकारे नेता ही जाते हैं.
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आप नेता ही पुकारे जाओ लेकिन वोटो वाले नहीं. आप राजनीतिक कहलाओ पर वोट वाले नहीं. क्या ख़याल हैं आपका??? करेंगे राजनीति???
राजनीति आपकी राह देख रही हैं, आइये राजनीति में.
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FROM =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
SRI GANGANAGAR-335001,
RAJASTHAN, INDIA.
CHANDERKSONI@YAHOO.COM
00-91-9414380969
CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
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दीपावली की शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteaapke vicharon ka main tahe dil se swagat karti hun.aapke sawal apni jagah bilkul sahi hai jab apne par padti hai tabhi aankhen khulti hai.
ReplyDeletemeri taraf seaapkodeep-parv v- bhai duuj ki hardik shubhkamna----
poonam
कबिरा इस संसार में भांति-भांति के लोग।
ReplyDeleteअगर लोग देश की उन्नति के लिए राजनीति करने लगें तो देश का कल्याण हो जाय !
ReplyDeleteअच्छा लेख है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
वर्त्तमान सन्दर्भों में बहुत सी बातों रेखांकित करता हुआ अच्छा आलेख
ReplyDeleteबड़े दिनों की अधीर प्रतीक्षा के बाद आज आपका आगमन हुआ है